अलग सा रोमांच – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  रामेश्वर दयाल जी के लिये यह झटका कोई कम नही था,उनके जैसे जीवट वाला व्यक्ति न होता तो उन्हें हार्ट अटैक ही हो जाता।66 वर्ष की उम्र में 35 वर्षीय बेटे तरुण की कोरोना में मृत्यु हो जाना,एक असहनीय दर्द था।32 वर्षीय उनकी बहू रागिनी और 8 वर्षीय पोते दीप का चेहरा उनके सामने से हट ही नही रहा था।किसी प्रकार टैक्सी करके गोरखपुर से वे अपनी पत्नी सुनीता के साथ दिल्ली आये, फिर भी बेटे का मुँह तक न देख सके।इससे बड़ा गम किसी बाप के जीवन मे आ जाये तो उसकी बेबसी को समझा जा सकता है।

       गोरखपुर के रहने वाले रामेश्वर जी सरकारी विभाग में कार्यरत रहे,नौकरी के समय गोरखपुर में ही अपना एक अच्छा सा घर बना लिया था।रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलती ही थी।एक ही बेटा था तरुण जिसे शिक्षा दिलाने में कोई कसर उन्होंने नही छोड़ी थी।तरुण भी मेधावी निकला।शिक्षा पूर्ण करके तरुण का जॉब दिल्ली में लग गया।

अच्छी खासी सैलरी उसे मिलने लगी।पूरी तरह वह आत्मनिर्भर हो गया था।अब रामेश्वर दयाल जी की जिम्मेदारी थी तरुण की शादी करने की।दिल्ली के पास ही स्थित नोयडा में रहने वाले परिवार की रागिनी उन्हें पहली नजर में ही भा गयी।तरुण की सहमति से दोनो की शादी शुभ मुहर्त में सम्पन्न करा दी गयी।

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रामेश्वर जी ने एक ठंडी सांस ली कि चलो आज अपनी जिम्मेदारी पूर्ण हो गयी।बेटे को पढ़ा लिखा दिया,उसकी बढ़िया नौकरी भी लग गयी और बेटे की शादी भी करा दी,बहू भी पढ़ी लिखी और सुगढ़,सुंदर थी।रामेश्वर जी अपने अब तक के जीवन से पूर्ण संतुष्ट थे।अब रामेश्वर जी वर्ष में कम से कम दो बार दिल्ली अपने बेटे बहू के पास रहने को अवश्य आते।

जब पोता हुआ तो उसका नाम रखा दीप।रामेश्वर जी जब भी दिल्ली आते तो तरुण सदैव कहता पापा  आपने सब जिम्मेदारियां निभा ली हैं,अब आपको कुछ करने की  जरूरत नही है,आप दिल्ली ही आ जाओ,मुझे भी तो अपनी सेवा करने का अवसर दो।रामेश्वर जी कहते बेटा जब मन करता है तभी आ तो जाते हैं तेरे पास।फिर बुढापे में तेरे पास ही तो रहना है।तरुण का इस प्रकार आग्रह उनका सीना चौड़ा कर देता।

       रामेश्वर जी ने निश्चय कर लिया कि वह अब तरुण के पास ही दिल्ली रहा करेंगे,पर कोरोना महामारी फैल गयी,इसलिये उन्हे अपना विचार त्यागना पड़ा।लेकिन भाग्य को तो कुछ और ही  मंजूर था,कोरोना महामारी उनके तरुण को ही लील गयी।बदहवास से रामेश्वर जी दिल्ली किसी प्रकार पहुँचे।

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       तरुण तो चला गया उसके एवज में कंपनी ने रागिनी को नौकरी दे दी।महामारी की समाप्ति तक उसको घर से ही कार्य करना था।कार्य भले ही घर से हो पर समय तो पूरा देना ही होता है।सब स्थिति को समझ रामेश्वर जी एवम उनकी पत्नी सुनीता ने दिल्ली में ही बहू के साथ रहकर उसका सहयोग करने का निर्णय कर लिया।अब दीप की पूरी जिमनेदारी रामेश्वर जी एवम सुनीता ने संभाल ली।साथ रहते रहते एक बात रामेश्वर जी को सालती कि रागिनी की अभी उम्र ही कितनी है,कुल 32 वर्ष,इस उम्र में वैधव्य को झेलना,उन्हें कष्टकर लगता।

       एक दिन हिम्मत करके उन्होंने रागिनी से अपने मन की बात कह ही दी।रामेश्वर जी बोले बेटा रागिनी तरुण के जाने के बाद तुम्हारा अकेलापन खलता है हमे।बेटा तुम दूसरी शादी कर लो। और हाँ बेटा दीप की चिंता मत करना,हम है ना,उसे हम संभाल लेंगे।

      अपने ससुर के मुँह से ये शब्द सुन रागिनी फफक पड़ी।बोली पापा,तरुण तो मुझ अभागिन को छोड़ कर चले गये,अब आप भी मुझे पराया करने चले हैं।

    नही नही मेरी बच्ची,हमसे तेरा अकेलापन नही देखा जाता।

       मैं अकेली कहाँ हूँ पापा, मेरे साथ तरुण की यादे हैं, उनकी निशानी दीप है और आप है पापा मम्मी है, मैं अकेली कहाँ हूँ?पापा तरुण की तमाम जिम्मेदारी मुझे दे दो पापा।

     अवाक से रामेश्वर जी रागिनी का मुख देखते रह गये, उन्होंने अपनी पत्नी सुनीता से कहा भागवान देख तो अपना तरुण तो सामने खड़ा है।उनकी आंखों से आंसू तो बह रहे थे,पर अपने बेटे का इस रूप में आना उन्हें रोमांचित भी कर रहा था।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित।

*#जिम्मेदारियां कभी खत्म नही होगी* साप्ताहिक वाक्य पर आधारित कहानी:

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