पटरी वाली शॉपिंग – सविता गोयल : Moral Stories in Hindi

” बहू तुम अभी तक तैयार नहीं हुई!! जल्दी करो, बाजार में बहुत भीड़ रहती है इस समय। बहुत सी खरीदारी करनी है आज – दीये, गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां, कपड़े,सजावट का सामान….”

” हां मम्मी जी… लेकिन आजकल बेकार में इतना घूमने की क्या जरूरत है? सबकुछ तो आनलाइन मिल जाता है आजकल.. नहीं तो शापिंग मॉल में चलते हैं वहां एक जगह हीं सारा सामान मिल जाएगा। बेवजह इतनी गर्मी में जगह जगह घूमते रहो …” ,, रूचि ने फोन पर उंगलियां चलाते हुए कहा।

” नहीं बेटा, मैं हमेशा बाजार से हीं सामान लाती हूं… अच्छा लगता है… तूं भी चल, तुझे भी मजा आएगा।”

” लेकिन मम्मी जी …..” रूचि ने फिर बात काटते हुए कहा।

” बेटा.. ,कल तुम हीं तो कह रही थी ना कि आजकल त्यौहारों पर पहले जैसी रौनक नहीं होती…. बेटा त्यौहारों की रौनक तो हमसे हीं होती थी ना….. जब हम घर से बाहर नहीं निकलेंगे तो बाजार से चीजें कौन खरीदेगा? ये पटरी वाले और लोकल दुकान वाले त्यौहारों पर अपनी दुकानें सामान से भर लेते हैं

क्योंकि इन्हीं मौकों पर उन्हें कुछ ज्यादा आमदनी की आस होती है जिससे वो भी अपने परिवार के साथ त्यौहार मना सकें… इन पटरी वालों से हम मोल भाव करके भी सामान ले सकते हैं लेकिन आनलाइन तो एक रुपए की भी गुंजाइश नहीं होती। जितना मांगते हैं देना पड़ता है। अब चलो भी… “

 सासु मां की बातें सुनकर रूचि भी तैयार हो गई। दोनों सास बहू सबसे पहले पटरी पर लगी दुकानों पर दीये और मिट्टी की मूर्तियां पसंद करने लगीं।

“भईया , ये दीये कैसे दिए? ” रूचि ने एक छोटे से लड़के से पूछा जो दीये बेच रहा था।

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” दीदी दस रूपए के दस “

” मम्मी जी, ये तो बहुत सस्ते हैं” रूचि ने फुसफुसाते हुए कहा।

तनुजा जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। ,” तो फिर ले लो बहू जितने भी चाहिए।”

रूचि ने फटाफट सौ दीये ले लिए। वहीं पास में रखे मिट्टी के छोटे छोटे बर्तनों का सेट देखकर रूचि के चेहरे पर मुस्कान छा गई, ” मम्मी जी, वो बर्तनों का सेट देखो.. जब मैं छोटी थी तो इनसे बहुत खेलती थी।”

” तो फिर ले लो बहू, खेलना ना सही सजावट के लिए तो रख हीं सकते हैं ना। आजकल के बच्चों को तो मोबाइल में गेम खेलने से हीं फुर्सत नहीं।”

रूचि ने वो सेट भी खरीद लिया। सजावट के लिए रखी तरह तरह की झालरें और दीया स्टेंड भी बहुत आकर्षक लग रहे थे। आज तो दोनों सास बहू ने ढेर सारी शापिंग की थी और चेहरे पर जो चमक थी वो सच में दीए की रौशनी सी थी। ऐसी संतुष्टि आनलाइन में भला कहां मिलती है।

रूचि के लिए सच में आज की पटरी वाली शापिंग यादगार बन गई थी । आज के बाद उसने तय कर लिया कि त्यौहारों की खरीदारी वो लोकल मार्केट से हीं करेगी।

लेखिका : सविता गोयल

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