“देखिये, दहेज के हम सख्त खिलाफ हैं। शादी तो आप अच्छी करेंगे ही।हमारी तरफ के लगभग दोसौ बराती रहेंगे। आप अपनी बेटी को पंद्रह तोले सोना दें। बाकी जो अपने दमाद को आप देना चाहें आपकी मर्जी।” विकास के पापा जगत नारायण जी बोले।
“—————” ममता के पापा त्रिभुवन जी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। मानो वे किसी और बात का इंतजार कर रहें हों। उन्हें बड़ा तजुर्बा था शादी के लिए बातों का क्योंकि उन्होंने अपनी दो बहनों की शादियां की थी ।उन्हें कुछ और डिमांड्स आने की उम्मीद थी। जिसका उन्हें इन्तजार था वही बात सामने आ ही गई। जगत जी बोले,
अरे ! एक बात तो हम कहना ही भूल गए कि बेटे की बड़ी इच्छा थी कि वो अब नई कार चलए। पुरानी कर चला-चला कर वो बोर हो गया।”
जगत जी की बात सुनकर कुछ देर फिर सन्नाटा रहा। फिर जगत जी ने ही शांति भंग की और बोले,
“अरे ! आप लोग इतने शांत क्यों हो। कुछ तो बोलिये।”
कुछ खामोशी के बाद ममता बोली,
“विकास जी आप एकदम खामोश हैं। ये तो पापाजी ने अपनी डिमांडस रखीं हैं आप भी तो कुछ बोलिये।
विकास हड़बड़ाया सा बोला,
अरे -वो हाँ – वो नहीं, वो पापा जी ने बोल ही दिया है और कुछ होगा तो मैं सोच कर बता दूंगा। वैसे मेरी इच्छा मोटरबाइक की भी थी।
ममता को इस बात का अंदाजा था कि इस तरह के लालची लोग धीरे-धीरे खुलते हैं। फिर फैलते चले जाते हैं। वो बोली,
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“विकास जी, आपका पैकेज कितने का है ? वो हड़बड़ाकार बोला,
“वो-वो पंद्रह लाख का।
कुछ देर फिर चुप्पी छा गई।कुछ देर में ममता बोली,
“अरे! विकास जी आपने पूछा नहीं कि मेरा पैकेज कितने का है ?
“हाँ जी कितने का है जी ?
” जी पच्चीस लाख का।”
दोनों ,बाप बेटे के मुंह पर हवाइयां उड़ने लगीं।
तभी विकास बोला,
“कुछ भी, तुम कुछ भी बोलो और हम मान लें।”
“नहीं, सबूत देख कर तो मानोगे न कह कर ममता ने अपने सेलेरी का एस एम् एस बता दिया। अब बताइये इस तरह तो हमें ही आपसे दहेज मांगना चाहिए।”
जगत जी बिफर कर बोले त्रिभुवन जी ये क्या मजाक है। क्या आपने हमें बेज्जत करने के लिए बुलाया था ?” त्रिभुवन बोलते इससे पहले ही ममता बोल उठी,
“अंकल जी, शुरुवात किसने की ? ये आपने शुरुवात में ही कहा था कि आप दहेज के सख्त खिलाफ हैं और फिर एक के बाद एक लाखों की मांगे रखते गए। क्या ये सबसे बड़ा “मजाक” नहीं ?
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श्याम आठले