कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा के, विभूति जाते-जाते अंगद को चेतावनी देता है और कहता है… सुरैया से शादी उसकी सबसे बड़ी भूल साबित होगी..
अब आगे..
अगले दिन अंगद जब स्कूल जाता है, वह यह देखकर हैरान हो जाता है कि, कक्षा में एक भी बच्चा नहीं आया… वह समझने की कोशिश कर रहा था कि इन सब की वजह क्या हो सकती है..? कहीं कल जो विभूति कह रहा था यह इसी की शुरुआत तो नहीं..? यह सब सोचते हुए अंगद स्कूल के बरामदे में बैठ जाता हैं…
काफी देर तक इंतजार करने के बाद, वह वहां से निकल जाता है… और विभूति की दुकान पर पहुंच जाता है… हालांकि उसे अच्छे से पता था की, विभूति उसकी कोई भी बात का जवाब नहीं देगा.. पर वह जो देखता है विभूति की दुकान पर, उसकी उम्मीद उसे नहीं थी…
वह देखता है विभूति की दुकान पर, आनंद अपने कुछ आदमियों के साथ पहले से बैठा चाय पी रहा है… अंगद को देखकर आनंद कहता है… आओ..! आओ..! बंधु..! अरे विभूति..! इसे भी चाय दो….
विभूति: नहीं..! चाय खत्म हो गई है…
आनंद: अरे विभूति…! ऐसे कैसे खत्म हो गई…? दुकान में भी चाय खत्म होती है क्या भला..?
विभूति का रुखा व्यवहार देख, अंगद को समझते देर नहीं लगी के यह सब आनंद का ही प्रभाव है… इसलिए वह वहां और नहीं रुका और सीधा सुरैया की दादी के पास चला गया… वह वहां परेशान उदास होकर जब पहुंचता है… तो सुरैया की दादी उससे पूछती है.. का बात है बबुआ..? परेशान दिखाते हो..? सुरैया से कौनो गलती हो गई का..?
अंगद: नहीं दादी.. सुरैया से कोई भी गलती नहीं हुई… मुझे तो आपसे एक बात पूछनी थी… यह विभूति का मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा… अब तक तो वह मुझे सुरैया की सारी कहानी बताता रहा… पर जब से मैंने सुरैया से शादी की है, उसके तेवर ही बदल गए हैं… एक तो वह सीधे मुंह मुझसे बात नहीं करता… ऊपर से धमकी और चेतावनी दिए जा रहा है.. कुछ समझ नहीं आ रहा है..?
दादी: बबुआ..! मैंने तुमई पहले ही कहा था, के इहां के लोगन पर भरोसा मत करनो… सब दुई मुँहा सांप है… जब तक तुम इनके फायदो से लिए हो, तब तक इ तुमरी हर बात को मानेंगे… पर जहां इन्हें अपनो फायदा ना दिखो.. वहां इ अपन पीठ दिखा देवे हैं… सुरैया को साथ, हमार बिटवा के साथ का हुआ..? इ इस कस्बा में सभई को मालूम है… पर फिर भी उ मास्टरवा का आवभगत करनो मांउ विभुति कोई कमी नाहीं करतो है… अगर ओका अपन बेटी सलामत रखने के लिए, सुरैया की बलि भी देनो पड़े, तो हंसते-हंसते कर देई…. एही लिए माखन जरा सा भी पसंद ना करतो रहे एके…. हम तो यहां तक सुने हैं कि, इ आनंद को लड़कियां भी ला कर देतो है.. पर इस बात का सबूत कछु ना है… यही लिए हमार जुबान पर भी ताला है…
अंगद: बस..! अब बहुत हो गया, यह चूहे बिल्ली का खेल… अब मुझे पूरा राज़ जानना ही पड़ेगा और इसके लिए मुझे सबसे पहले सुरैया को ठीक करना पड़ेगा… क्योंकि एक वही है, जिसने सब कुछ अपनी आंखों से देखा है…
दादी: बबुआ..! पता नाहीं सुरैया कभी ठीक हो भी पाएगो या नाहीं… पर जब तक उ पागल है.. बस तभई तक जिंदा भी है… जिस दिन उ ठीक हो जावेगी, इ लोग ओके मार देवेंगे…
अंगद: दादी..! ऐसे कैसे मार देंगे..? मैंने सारी योजना बना ली है… मैंने सुना है, ऐसे मरीज जिनकी दिमागी हालत किसी घटना के वजह से बिगड़ जाती है… उसके सामने अगर वहीं घटना दोहराई जाए तो, उससे उसके आहत जगह पर वापस से चोट लगती है… और वह सामान्य हो जाते हैं… हां… यह 100% काम करेगा या नहीं..? यह तो कह नहीं सकते.. पर कोशिश तो करनी ही पड़ेगी…
दादी: पर इ सब इतनो आसान ना होगा..? घटना को फिरई से दोहराना और उ भी तब..? जब उ आनंदवा और विभूति की नजर तुमहई पर है…
अंगद: दादी..! समझ लीजिए सब मैंने तय कर लिया है.. बस अब इसे अंजाम तक ले जाना है… एक बार सुरैया ठीक होकर अपनी पूरी कहानी बता दे… फिर ना तो यह अंगद बचेगा, ना विभूति और ना ही उसका कोई जीजा…
तो क्या करता है अंगद सुरैया को ठीक करने के लिए..? जानेंगे आगे..
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दर्द की दास्तान ( भाग-11 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi