कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा, के अंगद को जबरदस्ती आनंद उसके जीजा जी के पास ले जाता है और अंगद की उसके जीजा के साथ बहस चल रही थी…
अब आगे…
अंगद इन लोगों से बात करना नहीं चाह रहा था… इसलिए वह वहां से जाने लगा कि, तभी
आनंद के जीजा (महेंद्र): अरे मास्टर जी..! काहे इतने जल्दी में हो…? हमरी एक बात सुन कर चले जाना… सुना है, इस कस्बे में बच्चों को पढ़ाने आए हो… इसलिए बस उसी पर ध्यान दो… ज्यादा यहां के लोगों के बारे में जानने की जरूरत नहीं… और ना ही यहां के लोगों से घुलने मिलने का जरूरत है… बस अपना काम करो और सीधा घर… और अगर तुम्हें बोरियत महसूस हो, तो मौज मस्ती का इंतजाम हम कर देंगे… आखिर जवान हो, किसका मन नहीं करता..?
अंगद: मन तो मेरा अभी भी बहुत कुछ कर रहा है… पर जरूरी नहीं वह उसी वक्त किया जाए… और रही बात मेरा यहां के लोगों से मिलना… वह मैंने पहले ही कहा था कि, मैं अपनी मर्जी का मालिक हूं… मेरा जो मन करेगा मैं वह करूंगा… और आगे से मुझे यहां जबरदस्ती लाने का कभी सोचिएगा मत… चलता हूं…
यह कहकर अंगद वहां से निकल गया..
आनंद: यह क्या जीजाजी..? जाने क्यों दिया इसे..? इसे यही मारकर गाड़ देना चाहिए था… जबान कैंची की तरह चलती है इसकी…
जीजा: सब्र करो साले साहब..! हर काम यू जोश में नहीं होता… अभी-अभी आया है इस कस्बे में… हमारे बारे में ठीक से जानता नहीं… कोई बात नहीं जो यह हमारे बारे में नहीं जानता, उसे बता देंगे.. वह भी अपने तरीके से…
यह कहकर दोनों हंसने लगते हैं…
अगले दिन अंगद स्कूल से लौटते वक्त, विभूति की दुकान पर बैठा चाय पी रहा था… पर विभूति ने पहले ही उसे इशारे में समझा दिया था, कि वह आनंद और उसके लोगों के बारे में कुछ ना पूछे, क्योंकि इससे वह बिभुति को परेशान करना शुरू कर देंगे…
अंगद चुपचाप चाय की चुस्कियां ले रहा था, कि तभी सुरैया की दादी दौड़ती हुई विभूति की दुकान पर आई…
विभूति: का हुआ माई..? इतना परेशान काहे हो…?
माई: अरे विभूति..! सुरैया का कछु पता नाहीं चल रहो है… सुबह से निकलत है, तो दोपहर तक को घर खाना खाने जरूर आवत है… पर अब तो शाम हुई गवा, पर ऊ लड़की का कोनू पता नाहीं… सोचत रहे कि वह तो अब पगली है, ऊपर से पेट से.. उ का कौनो खतरा नाही… पर अब डर लाग रहो हैं…
अंगद: क्या…? सुरैया नहीं मिल रही है..? दादी…! चलिए हमें थाना चलना पड़ेगा…
दादी: नाही… नाहीं…. थाना-वाना का चक्कर मां ई बुढ़िया को मत घसिट…. किस्मत तो ई लड़की का खराब है… पैदा होत अपनी माई के निगल गयो, फिर पिता के और अब हम का खाई के ई लड़की के चैन मिली…
अंगद: ऐसा क्यों कह रही हो दादी.? बिचारी पर तो पहले से ना जाने कितने आफत गिर पड़े हैं… ऊपर से दिमागी हालत भी ठीक नहीं… मुझे तो तरस आता है बिचारी पर…
दादी: जो भी हो मास्टर जी..! हमका थाना वाना मां जाना नाही… इधर-उधर देखत है.. ना जाने कहीं सो गई होगी… कोई टूटा फूटा खंडहर मां जाकर देखें पड़ी..
अंगद को दादी के इस बात से कुछ याद आ जाता है और वह दौड़ता हुआ उसे टूटे कमरे में जाता है… जिसके बारे में सुरैया बात कर रही थी…
और अंगद का अनुमान सही निकला… सुरैया उसी टूटे कमरे में अधनंगी अवस्था में पड़ी मिली… वह बेहोश थी.. अंगद ने उसे होश में लाया.. होश में आने के बाद वह कहती है.. छोड़ दो मुझे..! छोड़ दो मुझे…! सजा मत दो मुझे..!
अंगद उसे उठाकर बाहर ले आता है… सुरैया की ऐसी हालत देखकर उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं.. और वह सुरैया से कहता है… मैं वादा करता हूं सुरैया..! आज के बाद से तुम इस तकलीफ से कभी नहीं गुजरोगी… मुझे माफ कर दो जो आनंद के बारे में जानते हुए भी, मैं तुम पर अपनी नज़र नहीं रख पाया… पर अब उस दरिंदे को सजा भी दिलवाऊंगा और तुम्हें इंसाफ भी…
उसके बाद अंगद सुरैया को उसके घर छोड़ आता है और उसकी दादी को कहता है… दादी..! कुछ भी हो जाए, इसे घर से बाहर निकलने मत देना… कम से कम कुछ दिनों तक…
दादी: मास्टर साहब ! हम अपना गुजारा करनो का लिए छोटा सा दुकान चलात है… अब हम दुकान संभाले या इसको..
अंगद: वैसे दादी… एक सवाल पूछूं..? थोड़ा निजी है…
दादी: हां पूछो मास्टर साहब..?
अंगद: इसकी ऐसी हालत.. ऊपर से यह गर्भवती… तो क्या आप लोगों ने इसे इस बच्चे से छुटकारा दिलवाने की कभी नहीं सोची..? हां मानता हूं, यह पाप है… पर जैसी इसकी हालत है, तो फिर इस हाल में यह पाप नहीं, पुण्य कहलाता…
दादी: अब हम तोका का कहे मास्टर साहब..? समझ लो हमार बिटवा के साथ हमार सारी खुशियां भी चल गवा… इ गर्भवती हुई, जब इ बात हम का पता चललो, तब तक बहुत देर हुई गवा… माखन तो अब दुनिया में ना रहो, जो एके शहर ले जाकर गर्भपात करातो और देरी की वजह से दाई ने भी मना कर दियो..
अंगद: तो क्या दादी…? आपको भी पता नहीं, इस की ऐसी हालत की वजह..?
दादी: जो पूरे गांव को पता है, उही हमका भी पतो है मास्टर साहब… बाकी का सच तो माखन अपने साथ ले गवा… और ई जानत है.. पर एकर हालात तो तुम देख ही सकत हो…
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दर्द की दास्तान ( भाग-8 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi