कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा के, विभूति अंगद को सुरैया की कहानी बता रहा होता है, कि तभी अंगद को विभूति से आनंद के आने का पता चलता है..
अब आगे…
अगली सुबह स्कूल जाने से पहले अंगद विभूति की दुकान पर आता है…
विभूति: मास्टर जी..! आज आने वाले हैं आनंद और उसके जीजा…
अंगद: विभूति..! कल तुमसे एक बात पूछना भूल ही गया था… यह जो आनंद है, यह यहां से गया क्यों था और अब आ ही क्यों रहा है…? मतलब जिस तरह का आदमी वह था, इतनी आसानी से यहां से चला गया..? यह बात कुछ समझ नहीं आई..?
विभूति: किसने कहा, आपसे…? कि आनंद यहां से चला गया…? शारीरिक तौर पर जरूर चला गया, पर अब भी वह और उसके आदमी यहां की सारी खबर रखते है… और मौज मस्ती के लिए चले भी आते हैं… अब हम तो उनसे लड़ने में सक्षम नहीं है, इसलिए हमने बीच का रास्ता ही निकाल लिया… हम इस कस्बे में अपनी बेटियों को पढ़ाते नहीं और कम उम्र में ही ब्याह देते हैं, ताकि इन भेड़ियों की नज़र हमारी बेटियों की तरफ ना पड़े…
अंगद: पर ऐसे तो तुम लोग अपनी बेटियों के साथ ज्यादती कर रहे हो… एक तो उनसे शिक्षा का अधिकार छीन रहे हो… ऊपर से इतने कम उम्र में शादी…?
विभूति: कम के कम सुरैया की जैसी तो हालत नहीं होगी… अच्छा मास्टर जी..! एक और जरूरी बात… जब वह लोग आंएगे आपसे मिलेंगे तो जरूर… उनसे कुछ ऐसी वैसी बात मत कर देना… जिससे हम मुसीबत में पड़ जांए…
अंगद: देखो विभूति..! यह तो तुम भी जानते हो.. अन्याय मुझसे बर्दाश्त नहीं होता…. तब तक ही मेरी जुबान बंद रहेगी, जब तक कि मैं कोई अन्याय नहीं देखता…
विभूति: जो भी हो मास्टर जी..! हमरा नाम नहीं आना चाहिए… वरना अगला माखनलाल कहीं हम ही ना बन जांए…
उसके बाद अंगद स्कूल चला जाता है… अंगद कक्षा में बच्चों को पढ़ा ही रहा होता है कि, आनंद एकाएक अंदर आ जाता है और कहता है… ऐ बच्चा लोग…! सब घर जाओ… छुट्टी हो गई…
इससे पहले अंगद कुछ बोल पाता य… सारे बच्चे दौड़ते हुए कक्षा से बाहर चले गए…
अंगद: यह क्या मजाक था…? कौन है आप..? जिसने इस तरह चलती कक्षा को रोक दिया…?
आनंद: यह जाकर इस कस्बे के लोगों से पूछ…!
अंगद: क्यों..? आपकी बातें सुनकर ऐसा तो नहीं लगता..? के आप गूंगे हैं… फिर आप ही बता दीजिए कि आप कौन हैं…?
आनंद: बहुत ज्यादा जोशीला लगता है… जब मेरे बारे में पता चलेगा ना सारा जोश हवा हो जाएगा…. मैं आनंद हूं… यह ही नहीं, आसपास का पूरा इलाका मेरे जीजाजी के अंदर है… सुना था, इस कस्बे में कोई नया मास्टर आया है… इसलिए तुझसे मिलने चला आया… चल मेरे साथ… जीजा जी बुला रहे हैं…
अंगद: आपके जीजा जी जो कोई भी हो, पर मैं अपनी मर्जी का मालिक हूं… मेरा जहां मन करता है, मैं वही जाता हूं… फिलहाल मेरा मन आपके साथ चलने को नहीं है… तो आपके जीजा जी से फिर कभी मुलाकात होगी…
आनंद: तुझसे पूछा नहीं है, बताया है… सीधे तरीके से चल…. वरना जबरदस्ती करना हमें आता है… यह कह कर कुछ लोग अंगद को दोनों तरफ से पकड़ कर उसे आनंद की गाड़ी में जबरदस्ती बिठा देते हैं… जब यह सभी रास्ते से जा रहे होते हैं, आनंद ने अचानक से गाड़ी रोकने को कहा.., फिर वह गाड़ी से उतरकर कहीं जाने लगता है…. अंगद अपनी भौहें सिकुड़ कर, वह कहां जा रहा है..? यह देखने लगता है…
आनंद सुरैया के पास जा रहा था.. वह सड़क के किनारे ही बैठी थी… आनंद उसके पास जाकर उससे गंदी तरीके से छूना चालू कर देता है… जिसे देख अंगद का पूरा बदन गुस्से से जल जाता है… पर वह कर कुछ नहीं पाता… क्योंकि दो लोग उसे पकड़े हुए थे… थोड़ी देर बाद, आनंद वापस गाड़ी में आकर बैठ जाता है और गाड़ी चल पड़ती है…
गाड़ी जहां रूकती है, वहां अंगद को जबरदस्ती पकड़कर अंदर ले जाया गया…
आनंद के जीजा (महेंद्र ): अरे भाई..! यह तो मास्टर जी हैं… यह तो गुरुजी है… और गुरुजी से भला कोई ऐसा बर्ताव करता है..?
अंगद: जो कभी गुरु का महत्व नहीं समझा, उन लोगों से और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं…? गुरु शब्द ही आप लोगों में मुंह से सुनना गुरु का अपमान करना है… फिर इस अपमान की क्या बात..?
महेंद्र: हम आपको इज्जत दे रहे हैं और आप हमारी बेइज्जती किए जा रहे हैं…
अंगद: इज्जत..? वह भी आप लोग से…? सुनिए..! मेरा समय बहुत कीमती है, जो मैं आप लोगों के लिए गवाना नहीं चाहता… मैं चलता हूं….
पर क्या अंगद वहां से चला जाता है…? या फिर कुछ और ही घटता है वहां…? जानिए आगे….
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दर्द की दास्तान ( भाग-7 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi