दर्द की दास्तान ( भाग-5 ) – रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

कहानी के पहले भाग के अंत में आपने पढ़ा, के विभूति, अंगद को सुरैया की कहानी बताते बताते, माखनलाल को याद कर रहा होता है….

अब आगे…

विभूति:  जानते हैं मास्टर जी..! माखनलाल ने सुरैया का स्कूल जाना तो छुड़वा दिया, पर इस मकसद से नहीं कि वह अपनी बेटी को ब्याहना चाहता था… बल्कि इस कस्बे के बाहर के स्कूल में उसने सुरैया का दाखिला करवा दिया था… बड़ा ही अजीब इंसान था… डर तो जैसे उस से कोसों दूर थी… वह नहीं जानता था कि, ऐसा करके उसने बहुत बड़ी मुसीबत को न्योता दे डाला… पूरे कस्बे में कोई भी लड़की अब स्कूल नहीं जाती थी… पर सुरैया रोज़ स्कूल जाती… लेकिन कस्बे के बाहर…. 

और यह बात जब उन लोगों को, आनंद को पता चला… फिर 1 दिन सुरैया स्कूल से घर लौटी ही नहीं… माखनलाल अस्त-व्यस्त होकर सुरैया को ढूंढने लगा… काफी ढूंढने के बाद भी जब सुरैया नहीं मिली, तब माखनलाल पुलिस में शिकायत करवाने की सोचने लगा… उसी शाम सुरैया रोते रोते अपने घर पहुंच गई… और साथ में उसके आनंद मास्टर भी था…

आनंद मास्टर:   क्या माखनलाल..? कोई अपनी बेटी को अकेले छोड़ता है क्या..? वह भी इतनी जवान बेटी को..? वह तो अच्छा हुआ मुझे मिल गई, किसी और की नज़र पड़ी होती, तो पता है नहीं क्या हो जाता..?

माखनलाल गुस्से में:   मुझे सब पता पता है, इसे किसी और से नहीं तुझसे ही खतरा है… पर मेरी एक बात ध्यान से सुन लो और चाहो तो अपने जीजा को भी कह देना… डरता होगा पूरा गांव तुझसे और तेरे जीजा से… पर मैं नहीं डरता और जो आज के बाद मेरी बेटी की तरफ आंख उठाकर देखा, तो मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा… कानून में भी जानता हूं और कहां जाना इंसाफ के लिए, मुझे अच्छे से पता है… यह मत समझना गांव का हूं, तो डर कर तुम लोगों का गुलाम बन जाऊंगा… 

आनंद:   ज्यादा फड़फड़ाना, वह भी इस उम्र में सही नहीं है माखनलाल… तू एक मामूली सा चपरासी है… तुझे क्या लगता है तू हमसे लड़ पाएगा…? तेरे पूरे खानदान को रातो रात गायब करवा दूंगा… किसी को कानों कान खबर तक नहीं होगी… इसलिए अपनी हद में रह… अपनी बेटी को चुपचाप मेरे स्कूल में भेज देना कल से… वरना तेरी बेटी ना तो फिर कभी पढ़ने के लायक ही रहेगी, और ना ही ब्याहने के लायक… समझा… बड़ा आया हमें डराने वाला… यह कह कर आनंद चला गया…

माखनलाल आनंद से डरा तो नहीं था, पर आज जो हालत सुरैया की थी, उससे वह डर गया था… पर वह चुपचाप उन लोगों की बात मानने वालों में से भी नहीं था… उसने पूरे कस्बे को एक साथ आकर इनके खिलाफ अभियान चलाने का प्रस्ताव रखा, ताकि हम सब मिलकर इन बाहरी भेड़ियों को इस कस्बे से बाहर फेंक सकें…

अंगद:   हां.. वह सही तो कह रहा था… तुम सबको साथ मिलकर उनके खिलाफ लड़ाई चलानी चाहिए थी…

विभूति:   कौन सा अभियान मास्टर जी…? सबके घर में बहू बेटियां है… तो कौन इतना साहस दिखा पाता..? और वह लोग कोई आम आदमी तो थे नहीं, जो हम उनके खिलाफ जाते और वे चुपचाप यहां से चले जाते…

अंगद:   बस यहीं गलती कर देते हैं सभी… क्यों खुद को कमजोर समझना…? वह आम नहीं है, क्योंकि उन्हें शक्तिशाली भी हम ही बनाते हैं… पर एकता में बड़ी ताकत होती है, जो बड़े बड़ों को धूल चटा सकती है… पता नहीं, इतनी कायरता के साथ लोग जी कैसे लेते हैं..? जीना है तो माखनलाल की तरह जियो… निडर और बेबाक…

विभूति:   हां और उस निडरता का क्या परिणाम निकला..? क्रूरता के साथ हत्या कर दी गई उसकी… यहां तक कि उसकी लाश का अंतिम संस्कार भी नहीं हो पाया और इधर बेटी भी पागल बन घूम रही है… तो क्या हम पूरा कस्बा इसी तरह मरमरा जाते..?

अंगद:   मरे हुए तो तुम लोग अब भी हो… अब भी उन लोगों के दहशत में मर मर कर ही तो जी रहे हो… आज माखनलाल और सुरैया के साथ जो भी हुआ, वह ना हुआ होता जो, तुम पूरे कस्बे वाले एक साथ होते… आगे की कहानी बताओ विभूति…!

विभूति:   मास्टर जी..! आप इतनी कहानी सुनकर ही हम सभी को दोषी ठहरा रहे हैं… पर आप हमारी हालत नहीं समझ सकते… इंसान जब तक खुद उस दर्द से नहीं गुजरता… उसे कुछ समझ नहीं आता और बड़े-बड़े बोल बोलना बहुत सहज होता है…

अंगद:   बड़े-बड़े बोल नहीं है यह… मैं बिल्कुल माखनलाल के जैसा ही हूं… अन्याय मुझसे भी बर्दाश्त नहीं होता… 

विभूति:   अब तो आप भी इसी कस्बे का हिस्सा है… उन लोगों से आपकी मुलाकात भी जरूर होगी… जब आप उन लोगों को देखिएगा, आपको भी उनकी शक्ति का पता चल जाएगा… आने ही वाले हैं कल… खबर मिली है…

अंगद:   आने दो… मैं भी देखता हूं.. कौन है यह लोग और मेरा क्या बिगाड़ते हैं…? तो क्या होगा जब अंगद और आनंद का सामना होगा…?

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