कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा के, विभूति किसी परिस्थिति के बारे में अंगद को बताने को कहकर उसे फिलहाल जाने को कहता है…
अब आगे…
उस दिन तो विभूति अंगद को पूरी कहानी बता नहीं पाता और इधर थोड़ी कहानी जानकारी पूरी दास्तान जानने को बेकरार था अंगद…. इसलिए अगले दिन सुबह-सुबह फिर विभूति की दुकान पहुंच जाता है…
विभूति: क्यों मास्टर जी..? रात भर सोए नहीं क्या..?
अंगद: ऐसा ही समझ लो…
विभूति: मास्टर जी..! यह कस्बा एक छोटा सा… शहर की भीड़भाड़ से दूर… यहां ना तो कोई कानून की व्यवस्था चलती है, ना ही यहां के लोगों को कोई पूछता है… बस सब अपनी दुनिया में मस्त… वैसे में कुछ बड़े लोग, नेता इस कस्बे को और उसके लोगों को अपनी जागीर समझते हैं… हम गरीब इनके खिलाफ ना तो आवाज उठा सकते हैं और ना ही कदम… तो इसलिए हमने बीच का रास्ता अपना लिया… लगभग 1 साल पहले, स्कूल में आपकी तरह एक मास्टर जी आया था और वह किसी नेता का साला था… पहले पहल तो हमने सोचा कि चलो अब हमारे बच्चो का भी भविष्य अच्छा होगा… वह भी पढ़ लिख लेंगे तो एक अच्छा जीवन जिएंगे…
पर वह मास्टर बड़ा ही हवसी और अय्याश था… ऊपर से नेता का साला… सुना था के शहर में, उसकी इन्हीं हरकतों से परेशान उसके जीजा ने उसे इस कस्बे के स्कूल में मास्टर बनाकर भेज दिया था… वह बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा और भी अश्लील ज्ञान देने लगा था… छोटी छोटी लड़कियों को सजा के बहाने बाथरूम में ले जाकर… उनके साथ गंदी हरकतें करता था… सुरैया पर तो उसकी खास नज़र थी…. पता नहीं अापने गौर किया था या नहीं, कि कल आपकी कक्षा में एक भी लड़की नहीं थी…. क्योंकि उस समय लड़कियों के साथ जो भी घटनाएं घटी थी… उसके बाद से इस कस्बे की सारी लड़कियों का स्कूल छुड़वा दिया गया है…
खैर, आगे बताता हूं…. सुरैया अपने मास्टर जी का वह गंदे तरीके से छूना, बाथरूम में ले जाकर गंदी हरकतें करना… यह सारी बातें अपने पिता माखनलाल को जाकर बता देती है… इस पर माखनलाल स्कूल में आकर उस मास्टर को काफी भला-बुरा कहता है… वह मास्टर जिसका नाम आनंद था… वह माखनलाल के इस बात पर भड़क जाता है… वह तब तो कुछ नहीं कहता, पर अगले दिन एक बड़ी गाड़ी उसके घर के बाहर आकर रूकती है… फिर कुछ लोग घर में घुसकर दरवाजा बंद कर देते हैं…
जबकि बाहर कुछ लोग खड़े पहरा देने लगते हैं… अंदर क्या चल रहा था..? किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था…
अंगद: पर गांव के लोग…? वे लोग सभी एक साथ अंदर जाने की कोशिश नहीं की..? मैंने तो सुना था, कि गांव में सभी लोग भले ही अलग-अलग छत के नीचे रहते हैं…पर परिवार की तरह हर मुसीबत में साथ होते हैं… तो फिर जब एक परिवार के घर में, यूं ही अचानक कोई बाहरी आदमी घुस गया तो किसी ने भी उसमें हस्तक्षेप नहीं किया..?
विभूति: हस्तक्षेप तो तब करता, जब किसी को अंदर जाने को दिया जाता… या फिर अंदर क्या चल रहा है उसका पता ही चलता..?
हम सब माखनलाल के घर के बाहर दर्शक बने खड़े थे कि, तभी अंदर से आनंद और उसका जीजा बाहर आता है…
आनंद का जीजा (महेंद्र): बाहर आकर सभी के सामने हाथ जोड़कर कहना शुरू करता है… मैं महेंद्र प्रताप, इस कस्बे की भलाई का सोच कर… यहां एक मास्टर भेजा… ताकि यहां के बच्चों को भी शिक्षा मिले… कुछ ही दिनों में यहां एक अस्पताल भी बनवा रहा हूं और आगे ऐसी कई चीजें इस कस्बे को उपलब्ध कराऊंगा… जिससे इस कस्बे के लोगों को अपने छोटे-छोटे कामों के लिए बाहर जाना ना पड़े…. मैं धीरे-धीरे इस कस्बे को इतना चमका दूंगा कि, आज जिस कस्बे को कोई नहीं जानता… उसका नाम हर किसी की जुबान पर होगा… बस मैं तो यही चाहता हूं जिस तरह मैं इस कस्बे की खुशियों के बारे में सोच रहा हूं… आप लोग भी मुझे निराश नहीं करेंगे…
मेरा साला आनंद आप लोगों की सेवा के लिए ही यहां भेजा गया है, तो उसकी सेवा करना भी आप लोगों का फर्ज है…. फिर वह सेवा कैसा भी हो..? क्यों माखनलाल..? आशा करता हूं, सब कोई समझ गए होंगे और जो नहीं समझे, उसके लिए उसका अपना यह कस्बा ही दर्द की जगह बन जाएगा…
माखनलाल तो चुप था… पर उसकी आंखों में क्रोध साफ दिख रहा था… हम सभी गांव वाले इतना तो समझ गए थे कि, अब हमारे गांव को एक दानव की नजर लग गई है और आज नहीं तो कल, इस दानव का शिकार होना पड़ेगा…. पर सिर्फ माखनलाल को गुलामी नहीं चाहिए थी…. चाहिए तो किसी को भी ना थी, पर सारे बेबस एक मामूली आदमी, नेता जैसे बड़े लोगों से लड़ेगा भी कैसे..? पर माखनलाल झुकने वालो में से ना था… हमने उसे कितना समझाया कि, इससे पहले सुरैया के साथ कुछ ऊंच-नीच हो जाए… उसे ब्याह दे… पर नहीं… उसे तो अपनी बेटी को बड़ा अफसर बनाना था…
हहहहहहहह….. एक लंबी आह लेकर विभूति कहता है… और देखो, आज उसकी बेटी क्या बन गई…? काश माखनलाल तूने हमारी बात मान ली होती..? काश..!
कहानी जारी है…
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दर्द की दास्तान ( भाग-5 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi