दर्द की दास्तान ( भाग-3 ) – रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

कहानी के पिछले भाग के अंत में अपने पढ़ा, के अंगद अपने अंदर चल रही बात विभूति के जुबान से सुनकर, हैरान था..

अब आगे…

अंगद:   तुम्हें कैसे पता मैं यही सोच रहा था..?

विभूति:   भोला ने बताया…

अंगद:   भोला..?

विभूति:  हां… हमरे भाई का बेटा जो आपकी कक्षा में था…. पर हमको ही समझ नहीं आ रहा कि, आप उस लड़की के बारे में इतना काहे सोच रहे हैं..?

अंगद:   अब तुम लोग मुझे, इस कस्बे का हिस्सा समझो या ना समझो, पर मैं इसे अब अपने परिवार की तरह समझने लगा हूं और जब परिवार का कोई सदस्य दर्द में हो, तो मन का अशांत होना तो स्वाभाविक है…

विभूति:   देखिए मास्टर जी..! आप जानना ही चाहते हैं तो हम आपको बताने को तैयार है, पर आपको हमसे एक ही वादा चाहिए…. सुरैया की सारी कहानी जानने के बाद, आप भी हमारी तरह चुप रहेंगे और जो कभी आपने किसी को बताया या कोई सवाल उठे, तो मेरा नाम तो उसमें बिल्कुल भी ना होगा…

अंगद:  देखो विभूति..! तुम्हारा नाम मरते दम तक मेरी जुबान पर नहीं आएगा, यह वादा है मेरा… पर सुरैया की पूरी कहानी जानने के बाद, मेरी प्रतिक्रिया कैसी होगी….? इस पर तुम अपना फैसला कैसे थोप सकते हो…? वह तो जानने के बाद, जो मुझे ठीक लगेगा मैं वही करूंगा….

विभूति:   बस मास्टर जी..! इसी वजह से तो मैं और भी कहना नहीं चाहता… वरना हमारी जान के साथ-साथ आपकी जान पर भी आफत आ जाएगी…

अंगद:   ऐसी कौन कौन सी बात है, जो की जान पर भी बन सकती है…? अब और पहेली मत बुझाओ, मुझे पूरी कहानी बताओ…

विभूति:   आप जिस स्कूल के मास्टर जी बनकर आए हैं, उसी स्कूल के चपरासी थे सुरैया के पिता… सुरैया की मां तो बचपन में ही स्वर्ग सिधार गई थी… बस सुरैया की दादी सुरैया और उसके पिता ही थे उनके परिवार में… बचपन से सुरैया बहुत होनहार थी… उसके पिता माखनलाल, सुरैया को पढ़ा लिखा कर बड़ा अफसर बनाने के सपने देखता था… क्योंकि सुरैया बिन मां की बच्ची थी, माखनलाल उससे कुछ ज्यादा ही प्यार करता था और इसलिए माखनलाल इस कस्बे के लोगों की बातों से अलग चलता था…

हमने उसे कितना समझाया कि, सुरैया बड़ी हो गई है… उसे ब्याह दे, पर नहीं…. उसे तो अपनी ही चलानी थी…

अंगद:   उस वक्त सुरैया की उम्र कितनी है…? और यह घटना कब की है…? 

विभूति:   यह घटना 1 साल पहले की है और तब सुरैया की उम्र 15 रही होगी… 

अंगद हैरान होकर:   15…? तो तुम्हारे हिसाब से यह उम्र शादी के लिए सही है..? अरे वह एक बच्ची है… उसके पिता ने बिल्कुल सही किया था… कम से कम पूरे कस्बे में कोई तो था अकलमंद….

विभूति:   क्या खाक अकलमंद..? असल में अकलमंदी तो तब होती, जब वह परिस्थिति को समझ कर, हमारी बात मानता…. तो शायद आज वह भी जिंदा होता और सुरैया भी अपने ससुराल में खुशी-खुशी जी रही होती…

अंगद:   कौन सी परिस्थिति विभूति…?

इससे पहले विभूति अंगद को आगे कुछ बता पाता, उसी कस्बे का एक आदमी रामू दौड़ता और हफ्ता हुआ विभूति के पास आता है और कहता है…. विभूति भैया..! अभी-अभी खबर मिली है वह लोग दूई रोज बात आवत है…

विभूति:   हां..! समय तो हो गया है… रामू..! वैसे सुन… शंकर की बेटी तो चली गई है ना..?

रामू:   ओका तो कलई भेज देई के बात रहे… विभूति फिर तो अभी और कोई भी बच्ची नहीं है इस गांव में…डरने की कोनो बात नहीं हैं…

अंगद हैरानी से यह सारा माजरा देख रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था कि, तभी विभूति आकर उससे कहता है… मास्टर जी..! इसी परिस्थिति की बात कर रहा था… चलो इन लोगों के आने से पहले ही आपको पूरी कहानी बता दूंगा… पर अभी आप जाओ मुझे कुछ जरूरी काम है…,

कौन सी परिस्थिति की बात कर रहा था विभूति…? जानेंगे अगले भाग में… 

अगला भाग

दर्द की दास्तान ( भाग-4 ) – रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

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