काजल अभी कुछ ही दिन पहले अपने नए फ्लैट में शिफ्ट हुई थी…
इससे पहले वह किराए पर कमरा लेकर बाहर रहा करती थी…
उसके मकान मालिक भी रहते थे साथ में….
कभी बीमार हो जाती थी …
तो मालकिन खुद ही आकर दूध का डब्बा ले जाती…
और जाकर दूध ले आती…
उन्हें पता चल जाता..
काजल को कहने की जरूरत भी ना होती…
कि आप हमारा दूध ले आइएगा…
और भी ना जाने कितनी बार वह नहाने जाती ,,तो मकान मालकिन की सास खुद ही उसकी बेटी को अपने साथ ,,अपने कमरे में ले जाती…
कि कहीं यह बिस्तर से गिर ना जाए…
कोई भी तीज त्यौहार होता…
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कभी भी उसे अकेली ना मानने देती…
उसे अपने पास बुला ही लेती …
और सब मिल करके त्योहार मनाते…
उसे कभी महसूस नहीं हुआ…
कि वह किसी अनजान शहर में अनजान लोगों के बीच रह रही है…
ऐसे ही 5 से 6 साल गुजर गए …
उसके पति का तबादला दूसरी जगह हो गया …
बड़े ही भारी मन से मकान मालकिन ने विदा किया…
दोनों ही बच्चों को पैसे और काजल को साड़ी दी…
उनकी आंखों मैं काजल और उनके बच्चों के लिए बहुत ही प्यार था…
बार-बार बस यही कह रहे थे …
कि क्यों जा रही हो काजल…
यही रहती,,कितना अच्छा लगता था …
उनका घर सुना करके काजल आ गई थी…
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फ्लैट में शिफ्ट हुई थी…
फ्लैट बहुत ही आलीशान,,तीन कमरे ,,लॉबी ,,दो बाथरूम किचन…कहने को तो बहुत बड़ा घर मिल गया था…
और वह भी उनका खुद का…
क्योंकि पति का प्रमोशन भी हुआ था…
लेकिन काजल का मन इस फ्लैट वाली जिंदगी में बिल्कुल नहीं लगता …
पूरे दिन बस चिड़ियों की आवाज सुनाई पड़ती…
लेकिन एक इंसान की भी आवाज सुनना मुश्किल हो जाता…
वो सोचती कहां चिड़ियाघर में आ गई हूँ…
लोगों से बात करने की कोशिश भी करती,,तो लोग भी इतने इगो से भरे हुए..कि बस जितना पूछो…
उतना ही जवाब देते..
और काजल एक बातूनी लड़की…
जो सबसे ही घुल मिलकर रहने वाली…
न जाने यहां आकर भी उसने कुछ लोगों से प्रेम बना ही लिया था…
उन्हें जरूरत होती…
तो आगे आगे तैयार रहती…
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सबकी मदद करती …
लेकिन कई बार ऐसा हुआ…
कि काजल को जरूरत थी…
उसकी मदद के लिए कोई खड़ा ना हुआ…
तीज त्योहार होते…
तब भी सन्नाटा छाया रहता …
दिवाली पर भी लोग अपने घरों में लाइट लगा लेते…
किसी का मन होता तो पटाखे जला लेते…
कोई रौनक काजल को नजर नहीं आ रही थी…
अंदर ही अंदर घुटी जा रही थी वो…
और सोच रही थी कि लोग फ्लैट फ्लैट फ्लैट करते है …
क्या फ्लैटों की जिंदगी ऐसी होती है…
उसका पति भी समझ रहा था …
कि काजल का यह मन यहां नहीं लग रहा …
और सच में शायद उसके पति रवि का मन भी यहां नहीं लग रहा था…
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लेकिन कर क्या सकते हैं…
घर तो अपना था…
किसी तरह धीरे-धीरे करके काजल बच्चों में और परिवार में अपना मन लगाने की कोशिश कर रही थी…
सही बात है पाठकों…
लोग फ्लैट में बस तो गए हैं…
लेकिन क्या आपको लगता है वो खुश है…
जो अपने पुश्तैनी घरों,,में गांव में और कहीं रहकर आए हैं …
मुझे तो नहीं लगता कि फ्लैट वाली जिंदगी लोगों को पसंद आती होगी…
हो सकता है कि हम मध्यमवर्गीय लोग हैं …
हाई -फाई लोग हमारी सोच को निम्न बोले …
लेकिन जितना भी देखा …
लोगों के अंदर आज के समय में घमंड आ गया है …
अगर गाड़ी आ गई,,फ्लैट ले लिया,,,तो आप लोगों को पता भी नहीं चलेगा …
कि बगल वाले घर में क्या हो गया है …
किसके घर में क्या अनहोनी हो गई है…
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इतना ज्यादा एकांतपन ,,इतना सूनापन,,
इंसान कहां जा रहा है…
कुछ समझ नहीं आ रहा …
लोग अपने घर में ही बीमार होकर गिर पड़े हैं …
घर परिवार वाले ही नहीं जान पा रहे …
और शायद कई लोग तो जानकारी देना भी नहीं चाहते …
कि उन्हें पता चल जाएगा…हमारे घर में काम बढ़ जाएगा …
यह मानसिकता शायद यह हर जगह ही देखने को मिल रही है…
प्लीज इन 50-100 गज के बीच हवा में लटकने वाली ज़िसमे ना छत अपनी ना जमीन ,,वाली जिंदगी से बाहर निकलिए …
कोशिश कीजिए अपनी जगह ले ,,अपना घर बनवाए…
और आसपास पड़ोसियों के घर जाएं…
उनसे मुलाकात बढ़ाएं…
उनसे बातचीत करें…
सिर्फ फोन तक,,अपने घर तक,,अपने बच्चों तक ही सीमित ना रहे …
आजकल स्पेशल बच्चे हो रहे हैं…
जिन्हें समझने सुनने में समय लगता हैं …
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बोलते भी लेट से है….
और बाकी अपनी एक्टिविटीज भी लेट से करते हैं…
और यह आज के समय में ज्यादा देखने को मिल रहा है …
और जहां तक इसका ज्यादातर कारण उनके परिवार वाले ही हैं…. कुछ आनुवांशिक कारण भी होते हैं और कुछ पेट से भी होते हैं लेकिन
टीवी तक ,, फोन तक सीमित कर दिया है बच्चों को … यह भी एक कारण है….
एक ही कमरे में खिलौने देखकर अकेले खेलने को मजबूर कर दिया है …..
उन्हें बाहर जाकर मिट्टी में खेलने नहीं देते ,,उन्हें लोगों से घुलने मिलने नहीं देते…
अरे खुद की निगरानी में रखिए बच्चों को …
खुद बाहर लेकर के जाइए पार्क में …
खिलाए बच्चों के बीच…
घुलने मिलने दीजिए…
झगड़ा हो रहा है ,,,होने दीजिए…
गिर रहे हैं ,,गिरने दीजिए…
थोड़ी चोट लगेगी ,,फिर संभल जाएंगे….
ऐसे ही तो सीखेंगे …
निडर बनेंगे….
लेकिन यह बहुत ही दुखद है …
उसके लिए स्पेशल थेरेपी करानी पड़ती है …
चिंतनीय विषय हैं…
बदलाव हमें खुद ही करना होगा….
आप अपने विचार रख सकते हैं …
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा