निम्मी बेटा आजा देख थाली लग गई है भूख लगी होगी जिद नहीं करते बेटा जल्दी आ….मां की लगातार आती आवाजों को अनसुनी करती निम्मी अपने कोपभबन से टस से मस नहीं हुई।पहले मुझे नया मोबाइल दिलाओ तभी खाना खाऊंगी गाल फुला कर चिल्ला उठी।अच्छा ठीक है मोबाइल दिला देंगे आज मेरी रानी बिटिया..
अबकी पापा बोल पड़े।नहीं अब्बी चाहिए… निम्मी के गाल और फूल गए। मेरी लाडो मेरी परी के लिए अभी लो मोबाइल चल अब पापा के साथ खाना ले…और तुरंत ही बिटिया रानी हंसती हुई खाने की थाल पर टूट पड़ी।
बचपन से गाल फुलाना निम्मी का सबसे असरदार अस्त्र था जो पापा मम्मी को मिनटों में धराशाई कर देता था।सहेलियों के साथ भी किसी भी मनमुटाव पर वह गाल फुला कर बैठ जाती थी सारी सहेलियां तुरंत उसकी बात मान लेती थीं।
निम्मी को अपने इस अस्त्र पर इतना भरोसा था जितना …..कृष्ण जी को सुदर्शन चक्र पर था।
शादी के समय मम्मी ने समझाया था मेरी गलफूल्लो बिटिया वहां ससुराल में इस तरह बात बात पर गाल ना फुलाना … जिसे निम्मी के कानों ने सुना तो जरूर लेकिन दिमाग बेअसर ही रहा।
ससुराल का पहला दिन सुबह की चाय नहीं मिली निम्मी को।बस गाल फूल गए उसके। नए नवेले पति ने देखा समझा तुरंत चाय की केतली हाजिर कर दी।अब तो निम्मी के पौ बारह हो गए उसका भरोसा अपने इस अस्त्र पर गहरा हो गया।
शाम का समय था कॉलोनी की महिलाएं निम्मी से मिलने आईं थीं लेकिन निम्मी अपने कमरे में गाल फुलाए लेटी थी मुझे अपनी नुमाइश नही करनी .. मैं थक गई हूं मुझे किसी से नहीं मिलना….मुझे किसी होटल में डिनर पर सिर्फ तुम्हारे साथ अकेले ले चलो….पति के लाख मनाने पर भी नहीं मानी।कमरे से बाहर ही नहीं निकली।
शाम बीत गई..रात हो गई…. कोई उसे मनाने नही आया..भूख के मारे उसकी हालत खराब हो गई।
बेसब्र होकर वह खुद कमरे से बाहर निकल कर आई देखा सन्नाटा पसरा हुआ था।
सिर्फ मेड थी।
घबरा कर पति को फोन लगाया नहीं लगा।
थक हार कर सासूजी को लगाया।
हां बेटा अब कैसी है तबियत आदी ने बताया तुम्हें बुखार है दवा लेकर सो रही हो हमने डिस्टर्ब नहीं किया तुम्हारी ननद ननदोई जी को कल सुबह जाना है तो हम सब उनके साथ डिनर पर आ गए हैं तुम आराम करो कुछ खाने का मन हो तो लेते आएं.. सासूजी से तब तक उसके पति ने फोन ले लिया….
तुमने मुझे बताया तक नहीं अकेले छोड़ कर चले गए फोन में निम्मी पति पर आगबबूला हो चीख पड़ी।
देखो निम्मी एक तुम्हारे गाल फुलाने से अधिक मुझे इस बार सभी घरवालों के गाल फूलने की चिंता थी तो मैं क्या करता!!कॉलोनी की महिलाएं भी तुम्हारा इंतजार कर रही थीं मुझे तुम्हारे बुखार का बहाना देकर सबको और विशेषकर मम्मी को समझाना पड़ा फिलहाल तुम्हारी तबियत ज्यादा खराब है और तुम सिर्फ खिचड़ी ही खाओगी यही मैने सबको बता दिया है ….और फोन कट गया था ….निम्मी चारों खाने चित हो गई थी।
बहू जी खिचड़ी बना दूं आपके लिए भैया जी बनाने के लिए बोल कर गए हैं … सामने मेड खड़ी पूछ रही थी ।
निम्मी की भूख से बिलबिलाती अंतडियो ने तुरंत हामी भरते हुए आइंदा कभी गाल ना फुलाने की कसम खा ली थी।
गाल फुलाना #लघुकथा
लतिका श्रीवास्तव