बेरोजगार (भाग-3) – रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi

****आगे की कहानी****

…..तभी फोन के रिंग होने से तरुण का ध्यान टूटा… अनुज का फोन था… खैरियत पूछने के बाद अनुज ने कहा…” भैया फोन रिचार्ज कर दिया है, देख लो… हुआ ना…. तरुण अनमना सा बोला… “ओह कर दिया, तुम्हें याद था…. हां! पिछले बार भी तो तुमने ही किया था…. थैंक यू ! …अनुज हंसते हुए बोला… “भैया तैयारी कैसी चल रही है…? अगले हफ्ते पेपर है ना…”

” ठीक ही चल रही है… चलो रखता हूं …।

तरुण बिस्तर पर पड़े अपनी किताबों के ढेर को एक बार पूरे गौर से देखने के बाद उन्हें समेट कर रखने लगा…. सब को इकट्ठा कर ,अपने आप को संयत करके वह एक बार फिर तैयारी में जुट गया….।

*** आज सुबह परीक्षा थी…. जानकी जी सुबह जल्दी उठीं ….भगवान की पूजा अर्चना कर… अच्छे से लड्डू गोपाल से ढेर सारी प्रार्थनाएं मन्नतें करके… उन्हें मनाने में लगी थी….!

तरुण जल्दी-जल्दी तैयार होकर जाने को हुआ…. तो मां ने दही शक्कर खिलाकर उसे बड़े अरमान से विदा किया…

आज का दिन तरुण के लिए बहुत ही अच्छा रहा… उसे लगा कि यह सब मां की पूजा और भगवान के आशीर्वाद का फल है…. परीक्षा के सभी प्रश्न उसके लिए बिल्कुल आसान थे…. इतनी आसानी से परीक्षा निकल जाएगी यह तो उसने सोचा ही नहीं था…. बाहर निकला तो रितेश मिल गया…. वह उससे 1 साल जूनियर था… मिलते ही बोला… “भैया पेपर कैसा गया…?”

तरुण मुस्कुराते हुए बोला…” अरे रितेश! पेपर तो आज का बहुत बढ़िया था…. देखो पास तो होना ही चाहिए…. इस पेपर में पास ना हुआ तो समझो कभी ना हो पाऊंगा…. तुम बताओ…!

” नहीं भैया मेरे लिए इतना आसान तो नहीं था… लेकिन फिर भी उम्मीद तो है… अब देखिए जो रिजल्ट आए….।

बातें करते हुए दोनों बस स्टैंड आ गए… अपनी अपनी बस पकड़ दोनों घर के लिए रवाना हुए….।

तरुण मन ही मन बहुत खुश हो रहा था… घर पहुंच कर तरुण ने मां को गले लगा लिया…. “मां आज बहुत अच्छा पेपर गया…. देखना इस बार तो मेरा निकलना पक्का है…” जानकी जी भी बहुत खुश हुईं… लेकिन तुरंत ही स्वयं को स्थिर करती बोलीं… “ठीक है… ठीक है… अच्छा हुआ… पहले रिजल्ट आने दो….मुझे ऐसे कोई भरोसा नहीं…. देखो… अनुज को फोन कर दो… सुबह से कितनी बार पूछ चुका है…।”

तरुण ने झट से अनुज को फोन लगाया…. आज के पेपर का सब हाल सुना कर खुश हो रहा था कि अचानक उसे लगा कि अनुज की आवाज सही नहीं आ रही उसने पूछा..” क्या हुआ अनुज? तू ठीक तो है… हेलो…!

“हां भैया… सब ठीक है… आप बताइए ना… मैं सुन रहा हूं…।

“नहीं तू सुन नहीं रहा… क्या हुआ… कुछ हुआ है क्या…”

” नहीं बस यूं ही… जरा तबीयत ठीक नहीं… यह सर्द हवाएं मुझे रास नहीं आ रहीं ….लगता है सर्दी लग गई है…।

तरुण थोड़ा परेशान हो गया बोला…” क्या करूं मैं आ जाऊं क्या…?

अनुज हंस पड़ा…” हां आ जाओ… आप पेरासिटामोल हो क्या… जो आ जाओगे तो मैं ठीक हो जाऊंगा… देखता हूं… कुछ दवा लेकर… ठीक है भैया बाद में बात करूंगा….।

तरुण की खुशी को ब्रेक लग गया… वह सोचने लगा अपने छोटे भाई के बारे में… कितनी जिम्मेदारी उठाए था वह… मां, पापा और स्वयं उसे भी तो अनुज का ही सहारा था…. कुछ हुआ नहीं की अनुज… लेकिन वह बेचारा अकेला दिन रात मेहनत कर रहा है… अगर नौकरी लगते ही आए रिश्ते पिताजी ने मान लिए होते… तो आज उसके नन्हे मुन्नों से उसका घर गूंज रहा होता…. क्या इस सब का जिम्मेदार वह है…!

इन सब विचारों में खोया हुआ तरुण फिर अपने प्रश्न पत्र का पुनर्मूल्यांकन करने में जुट गया….

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बेरोजगार (भाग-4) – रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi

रश्मि झा मिश्रा

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