पीहू और निमू दोनों बहनें हैं। दोनों का नाम असल में पीषिमा और निमिषा है पर दोनों पीहू और नीमू नाम से ही जानी जाती हैं। दोनों दो बदन एक जान बन कर रहतीं। दोनों में एक साल का अंतर था। इसलिए दोनों बहनें तो थी ही पर सहेलियां भी बहुत पक्की थी। दोनों राजेन्द्र और सुधा की संतानें थी।
एक जैसी शिक्षा व एक जैसा लालन-पालन से दोनों एक दूसरे के व्यवहार में घुली मिली घी शक्कर की तरह रहती। यहां तक कि उनके माता-पिता भी जब वे छोटी थी तब खिलौने व खेल भी एक जैसा ही ला कर देते। यहां तक की दोनों की कद काठी भी एक जैसी होने के कारण दोनों जब एक दूसरे के कपड़े पहन कर बाहर आतीं तो माता पिता दोनों को पहचान ही नहीं पाते।
एक दिन दोनों एक-जैसे तैयार हो कर आईं तो दोनों को एक जैसा दिखने के कारण उनके पिता बोले अब तुम लोग बड़े हो गए हो , अब एक जैसा दिखना छोड़ो। और पसंद भी अलग-अलग रखो। अगर दोनों को एक ही लडका पसंद आ गया तो हम क्या करेंगे।
पीहू जो थोड़ी ज्यादा समझदार थी नीमू से बोली हां, पापा ये तो वाकई सोचने वाली बात है। इस पर नींमू ने तो बात मजाक में उड़ा दी , पर पीहू इस बात का ध्यान रखने लगी कि अब दोनों थोड़ा अलग अलग दिखें। पर दोनों की बहन से ज्यादा दोस्त थे सो हर बात एक दूसरे से साझा करते। पीहू घरेलू लड़की थी,
उसे बाहर की अपेक्षा घर के अंदर का ही ज्यादा भाता पर नींमू को सैर सपाटा व बन संवर कर रहना व घर से बाहर निकलना भाता। माता पिता खुश थे कि चलो कहीं तो दोनों एक दूसरे से भिन्न है। ऐसे ही नीमू इस साल कालेज के प्रथम वर्ष में आ गयी। पीहू दूसरे साल में थी। पर वह साधारण बन कर रहतीं
जबकि नीमू पूरे फैशन में सजा संवर कर रहतीं। जहां वह लड़कों से दूरी बना कर रखती वहीं नीमू के कयी लड़के मित्र थे। एक ही कालेज में होने के पश्चात् पीहू दबा ढका व्यवहार करती तो नीमू थोड़ी उश्रिखल व्यवहार अपनाती। लड़कों के साथ घूमती फिरती। पीहू के मना करने पर भी वह स्वयं को रोक नहीं पाती
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बल्कि पीहू को मां पिताजी को न कहने को मना लेती। यही कारण था पीहू नीमू से पढ़ाई में सदा आगे रहती। कालेज के दूसरे किर्या कलापों में भी रूचि रखती। उसके इन्हीं सब गुणों के कारण उन्हीं की कक्षा में पढ़ने वाला निमेष उस में दोस्ती रखता व उससे रूचि दिखाने लगा , जबकि पीहू को निमेष के बारे में कोई रुचि नहीं थी।
इधर सीनियर स्टूडेंट्स में नींमू , निमेष को पसंद करने लगी। यह जाने बिना ही की वह पीहू को पसंद करता है। नीमू उसे चाहने लग जाती है , उधर पीहू दोनों के ही इरादों से अंजान पीहू के दिल में तो कुछ था ही नहीं।
नीमू का जन्म दिन पड़ा। नीमू ने अपने दोस्तों में लड़कों को भी बुलाने की अनुमति मां पापा से ले ली। शाम को सभी लोग आए। उनमें निमेष भी था। पहले तो वह आश्चर्य से नीमू से पूछने लगी कि यह तो मेरी कक्षा का है तो नीमू ने बड़ी ही लापरवाही से कहा कि अब वह मेरा दोस्त है। व निमेष के कंधे पर सिर टिका कर बोली।
निमेष जो कि उस रिश्ते से अनजान था, खुश था कि पीहू का साथ मिल रहा है। तभी उसने माता पिता को उससे मिलवाते हूए बताया कि वह निमेष से शादी करना चाहती है। निमेष इस सबके लिए तैयार नहीं था सो वह अपनी ही धुन में बोला कि मैं तो पीहू से शादी करना चाहता हूं। माता पिता इस सारे प्रकरण से हैरान दोनों बेटियों की बातें सुन रहे थे।
पीहू को भी निमेष का अपनी ओर देखने का कारण आज पता चला। इतने में ही नीमू नींद की गोलियों की शीशी लेकर आई और बोली पीहू तूने मेरे साथ धोखा किया तूने प्यार करने के लिए भी उस लड़के को चुना जिससे मैं प्यार करती हूं। निमेष ने उसके हाथ से शीशी छीनी और बोला, नीमू , पीहू को तो पता ही नहीं कि मैं उससे प्यार करता हूं।
पीहू जो न समझते हुए भी काफी समझ चुकी थी बोली, अरे पागल तू एक बार कहकर तो देखती कि तू इससे प्यार करती है, मैं तेरे सदके उतार कर तुझे दे देती। नीमू यह जान कर कि निमेष पीहू को चाहता है, अपनी पसंद उसे सिर्फ अपनी जिद ही लगी। वह निमेष से बोली, तुम्हारा प्यार सच्चा है अब मैं तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊंगी।
निमेष बोला कालेज समाप्त होने के बाद ही वह अपने माता-पिता की मर्जी से शादी करेंगे और सब लोग जो इतनी ही समय से यह फिल्म सी की कहानी सुन कर हैरानी में थे , धरातल पर वापस आए। माता पिता दोनों ने कहा कि वह बात कि दोनों एक ही लड़के को पसंद न कर लेना, हंसी में कहीं थी, तुम तो सच करने लगी। आगे से इस बात का ध्यान रखना। और सारे ही सामान्य हुए व पार्टी का मजा लेने लगे
*पूनम भटनागर ।