भाभी की सीख – अनुपमा

मानसी मानसी कहां हो , जल्दी बाहर आओ तुम्हे कुछ दिखाना है ।

आशु आवाज देता हुआ सीधे मानसी के कमरे मैं चला गया और उसे लगभग खींचता हुआ बाहर ले आया और उसे अपनी नई बाइक दिखाने लगा ।

मानसी और आशु पड़ोसी थे ,साथ है बचपन से , नर्सरी से कॉलेज भी साथ किए और अब नौकरी भी एक ही कंपनी मैं कर रहे है , बचपन की दोस्ती जाने कब आदत मैं और प्यार मैं बदल गई पता ही नही चला , मानसी का आशु के बिना और आशु का मानसी के बिना कुछ होता ही नही था ।

मानसी ने जब आशु से शादी की बात अपने घर मैं की तो मां पापा ने समझाया की दोस्ती और बचपन की बात अलग थी मानसी , पर तुम आशु के घर और परिस्थिति से भली भांति परिचित हो ,

हमने तुम्हारी जिस तरह से परवरिश की है तुम्हारी हर इच्छा को पूरा किया है । क्या तुम आशु के परिवार के साथ सामंजस्य बैठा पाओगी , उसकी मां आज भी सारा काम खुद करती है क्योंकि आशु के पिता जी को पसंद नही है और सभी कुछ उनकी सलाह मशविरा के बाद ही उस घर में फैसला लिया जाता है ,

क्या वो आशु की शादी तुमसे करने को राजी होगे , परिवार अच्छा है सीधे लोग है पर रहते साधारण तरीके से है और तुम ,तुमने तो कभी कुछ किया नही है , ना कभी अपने को रोका है कुछ करने से ,या कभी पूछा या सोचा है जीवन मैं कुछ भी करने से पहले ,क्या तुम निभा पाओगी उनके माहौल मैं ? 

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मानसी ने कहा पापा आप चिंता मत करो आशु है ना सब संभाल लेगा और फिर मैं कोनसा बहुत दूर जा रही हूं आप लोग भी तो यही हो ।

आशु अपने मां पापा की इकलौती संतान था , सो उसकी पसंद के आगे किसी की कहां चलनी थी , मानसी पसंद नही थी ऐसा कुछ नही था , बचपन से ही देख रहे थे दोनो बच्चों को ,पर शादी के बाद जिंदगी बचपन का खेल तो रहती नही है बस यही समझना चाह रहे थे आशु और मानसी के माता पिता ,पर दोनो ही बोल रहे थे की सब समझ लिया है दोनो ने ।

शादी के बाद मानसी की दिनचर्या अपने घर की तरह ही ससुराल मैं भी रहती थी ,मानसी किसी को चाय नाश्ता देने की बजाय उठ कर सासु मां से चाय की फरमाइश कर देती थी , नई नई शादी थी सो सासु मां भी मानसी के लिए चाय नाश्ता सब बना देती , कुछ दिन तो सब ऐसे ही चलता रहा कभी यहां खाना पसंद का न बनता तो मानसी झट से मम्मी के यहां पहुंच जाती और वहां से खा कर आ जाती ।

मानसी आशु अब ऑफिस जाने लगे तो सासु मां ही दोनो को टिफिन बना कर देती ,कभी मानसी को आवाज लगा कर मदद करने कहती तो मानसी कह देती मम्मी जी मेरा टिफिन नही बनाएगा और अपनी मम्मी को फोन करके टिफिन तैयार करने को कह देती । आशु उससे कभी घर मैं मदद करने को कहता तो कह देती तुम तो जानते हो आशु मैंने कभी ये सब नहीं किया और मुझे पसंद भी नहीं है ये सब करना ।

आशु की मां की तबियत खराब हुई तो मानसी अपना सामान लेकर कुछ दिन अपने घर आ गई रहने को ।

मानसी की मां सब जानती थी की मानसी क्या करती है ससुराल मैं और यहां क्यों आई है पर जानती थी की मानसी को समझाने का कोई फायदा नही है ।

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मानसी अब अपना घर लेना चाहती थी , उसने मां से कहा की वो अपने तरीके से रहना चाहती है वो नही चाहती की आशु के मां पापा हर बात मैं हस्तक्षेप करे उसकी जिंदगी में , जल्द ही वो आशु से बात करेगी इस बारे मैं ।

लॉकडाउन की वजह से मानसी का भाई और भाभी घर आ गए थे रहने के लिए , मानसी की भाभी श्लोका समझदार थी और वो भी मानसी का इस तरह के व्यवहार से चकित थी , जब चाहो यहां चले आना , पसंद का खाना बना हो तो बिना बताए खा जाना , आशु की मां का अकेले सारा काम करना , हर काम के लिए अभी भी मां पर निर्भर रहना ।

मानसी अब जब भी घर आती तो मां को ही काम करते देखती और श्लोका को हमेशा फोन पर बात करते हुए या सोते हुए पाती ,

मानसी की मां चाय नाश्ता खाना सबकुछ खुद ही बना रही होती थी , मानसी ये सब देख कर अब बिन खाए ही चली जाती ओर अपनी मां से वो कुछ कह भी नही पाती थी क्योंकि वो जानती थी की वो भी तो वही कर रही है जो श्लोका कर रही थी ।

अब मानसी को समझ आने लगा था और वो अपनी सासु मां से कहती की मां मुझे आता नही है काम करना पर आप मुझे सिखाओगे तो मैं सीख लूंगी जल्दी ही और धीरे धीरे जो काम मां नही कर पाई वो सासु मां ने कर दिया । मानसी अब खाना बनाने मैं निपुण हो गई थी । 

एक दिन मानसी की सास ने मानसी की मां को धन्यवाद देने के लिए फोन किया आखिर वो भी तो पड़ोसन थी और सहेलियां थी और मानसी की मां ने अपनी बहू श्लोका का धन्यवाद किया उसका साथ देने के लिए ।

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