घर वापसी – डॉ हरदीप कौर : Moral Stories in Hindi

दिव्या पांच वर्ष की थी, जब उसे पता चला था कि उसकी दादी उसको छोड़कर भगवान के पास चली गई है। दादाजी का तो उसे याद ही नहीं था कि कब भगवान के पास चले गए थे? उसकी दादी गांव में रहती थी।जब भी वह दादी से छुट्टियों में मिलने जाती तो उसे ढेर सारा प्यार मिलता। दादी अकेली रहती थी और बीमार रहती थी। दिव्या दादी से कहती आप हमारे साथ हमारे घर चलो जैसे ही दादी कुछ कहने लगती,दिव्या के माता-पिता यह कहते कि बेटा दादी हमारे साथ कैसे आ सकती हैं?

यहां इतना बड़ा घर है, इसे भी तो देखना है और फिर दादी को हमारे घर के वातावरण में रहने की आदत नहीं है। दादी पहले से भी अधिक बीमार हो जाएंगी।इसलिए दादी यही रहेंगी। हम ही दादी को मिलने आया करेंगे और वैसे भी यहां दादी की देखभाल के लिए नौकर- चाकर हैं। वह सब संभाल लेंगे। दिव्या  अभी बच्ची ही थी।उसे इतना अधिक पता नहीं था लेकिन दादी के साथ समय बिताना उसे अच्छा लगता था। 

         दादी से मिलकर आने के कुछ दिनों बाद ही दिव्या को बताया गया कि उसके दादी भगवान के पास चली गई है। दिव्या बहुत रोई। ऐसे कैसे हो सकता है? माता-पिता ने बताया कि दादी बहुत अधिक बीमार हो गई थी। पिताजी ने बड़े-बड़े डॉक्टरों को दादी के पास भेजा पर कोई भी कुछ नहीं कर सका। दिव्या बच्ची ही थी,धीरे-धीरे संभल गई। अब दिव्या लगभग चौदह वर्ष की हो चुकी थी। उसके घर में उसके दादी की तस्वीर लगी

हुई थी जिस पर  माला पहनाई हुई थी।वह अक्सर तस्वीर को देखकर दादी को याद करती और कुछ धुंधली यादें उसके जेहन पर छा जाती।स्कूल में जब दादा दादी के साथ बच्चों का प्रोग्राम होता तो वह अपने दादा दादी को बहुत अधिक याद करती पर चाहते हुए भी कुछ ना कर पाती।

             एक दिन स्कूल में वृद्ध आश्रम जाने का प्रोग्राम बनाया गया।बच्चों को स्कूल हर महीने कहीं ना कहीं घूमने ले जाता था लेकिन इस बार यह तय किया गया कि बच्चों को वृद्ध आश्रम ले जाया जाए और बच्चों को यह शिक्षा दी जाए कि जो माता-पिता अपना सारा जीवन बच्चों की परवरिश और जीवन बनाने में लगा देते हैं।उनके साथ कभी ऐसा व्यवहार ना करें

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कि उन्हें वृद्ध आश्रम भेज दें ।वृद्ध आश्रम में रहते हुए वृद्ध व्यक्तियों को किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और वह कैसे अपने परिवार को याद करके अपना आत्मविश्वास तक खो देते हैं। यह स्थिति बच्चों को जानना अति आवश्यक है। 

                  आखिर वह दिन भी आ गया, जब उन्होंने वृद्ध आश्रम जाना था। दिव्या के माता-पिता ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि दिव्या की पाठशाला उन्हें कौन से वृद्ध आश्रम लेकर जा रही है। वृद्ध आश्रम में पहुंचकर अलग-अलग जगह पर बैठे वृद्ध लोगों से बच्चों को मिलवाया जा रहा था। जैसे ही दिव्या आंगन में गई उसने देखा

कि एक वृद्ध औरत बैठी  स्लेट पर कुछ बना रही थी। उसे औरत  ने एक तस्वीर बनाई। जिसमें उसके साथ एक छोटी सी लड़की थी और वह उसे प्यार कर रही थी। दिव्या को यह देखकर अपनी दादी की याद आ गई।

उसकी दादी भी ऐसे ही स्लेट पर चित्र बनाती थी। जिसमें दिव्या और उसकी दादी का चित्र होता था। दिव्या ने ध्यान से उस औरत के चेहरे की ओर देखा और देखते ही पहचान गई। 

              दादी आप और यहां! कब से हो? वह दादी से लिपट गई और जोर-जोर से रोने लगी। दादी को जब पता चला कि यह तो उसकी पोती दिव्या है तो दादी भी रोने लगी। स्कूल के सब शिक्षक और विद्यार्थी हैरान रह गए! ऐसे कैसे हो सकता है? दिव्या की दादी का तो दिव्या के बचपन में ही देहांत हो गया था। तो फिर यह कौन है?

तब दिव्या की दादी ने बताया कि उन लोगों के जाने के कुछ दिनों के बाद ही उसके माता-पिता आए थे। वह  स्कूल में थी। मैंने पूछा तो कहा कि मुझे घर ले जाने आए हैं और घर ले जाने के बहाने वह मुझे यहां छोड़ गए। उन्होंने कहा कि अब दिव्या बड़ी हो रही है। हम बार-बार यहां नहीं आ सकते। छुट्टियों में भी उसको पढ़ने के लिए अलग-अलग कोचिंग में भेजना पड़ेगा। इसलिए हमने सोचा कि हम यह घर भेज देंगे और आपको अपने साथ अपने घर ले जाएंगे। यह कहकर घर के पेपर्स पर उन्होंने मेरे हस्ताक्षर ले लिए और कहा कि

आप कहां बार-बार आते रहोगे? हम जैसे ही अच्छा ग्राहक मिलेगा इसको बेच देंगे। आप आराम से दिव्या के पास रहना और धोखे से मुझे यहां छोड़ गए। दिव्या यह सब सुनकर हैरान रह गई! उसके मन- मस्तिष्क में गहरा युद्ध छिड़ गया।

यह कैसा समय था? कि उसे अपने ही माता-पिता अपने दुश्मन नजर आने लगे।उसे लगा उसके माता-पिता ने उसके जीवन के कीमती पल उससे छीन लिए हैं। उसने दादी को कहा आप निश्चिंत रहिए। मैं जल्दी ही आपको यहां से लेकर जाऊंगी।

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           अपने शिक्षकों से बात करके दिव्या ने दादी के पेपर तैयार करवाए और आश्रम के प्रमुख को यह हिदायत भी दी गई कि दिव्या के पिता को कुछ नहीं बताया जाएगा। दिव्या को पता चला कि दादी के सारे खर्चे पिताजी दिया करते थे। अब उसे और भी गुस्सा आया कि जब पिताजी सारा खर्चा दे सकते हैं तो फिर दादी को अपने साथ क्यों नहीं रख सकते ?

              आज दिव्या जब घर पहुंची तो दिव्या बहुत खुश थी।उसे ऐसे लगा जैसे उसे कोई खोया हुआ खजाना मिल गया हो। घर पहुंचते ही दिव्या ने दादी की तस्वीर से माला हटा दी लेकिन अभी भी एक बड़ा काम करना बाकी था। उसने अपने माता-पिता को सही रास्ते पर लाना था।

इसलिए अगले दिन से ही दिव्या इस काम में जुट गई। वह माता-पिता से कटी- कटी रहने लगी। कोई भी प्रश्न पूछने पर चुप रहती या फिर उल्टा सीधा जवाब देती। माता-पिता को बहुत बुरा लगता। यह दिव्या को क्या हो गया है? दिव्या हमसे ऐसी बात क्यों करती है?

पहले जब दिव्या स्कूल से आती थी तो अपनी पूरी दिनचर्या अपने माता-पिता को बताती थी। अब दिव्या ने वह सब बताना बंद कर दिया। माता-पिता के पूछने पर कि तू हमें कुछ बताती क्यों नहीं? उसने कहा आप भी कहां कुछ बताते हो तो माता-पिता ने कहा हम तो तुमसे कभी कुछ छुपाते ही नहीं ।हमारा सब तुम्हारा ही तो है तो फिर छुपाना कैसा? दिव्या ने पापा से पूछा तो क्या दादी आपसे कुछ छुपाती थी?

तो पिताजी ने कहा नहीं, ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि उन्होंने मुझसे कुछ छुपाया हो। तब दिव्या को अपनी बात करने का अफसर मिल गया। दिव्या ने कहा यदि ऐसा था तो फिर आपने  दादी से यह क्यों छुपाया कि आप उनका घर अपने स्वार्थ के लिए बेचना चाहते थे। चलो कोई बात नहीं आपने घर बेच दिया लेकिन कम से कम दादी को तो घर ला सकते थे । माता-पिता हैरान रह गए यह दिव्या क्या कर रही है ?

हमने दिव्या से छुपाने के लिए ही तो यह तय किया था कि माता जी से कभी नहीं मिलेंगे पर यहां तो उल्टा ही हो गया। उनके पास कोई उत्तर नहीं था ।उनके सिर शर्म से झुक चुके थे क्योंकि उन्हें यह अहसास हो चुका था कि दिव्या जान चुकी है कि उसकी दादी जिंदा है। 

         उनकी पश्चाताप के आंसुओं से भरी आंखें दिव्या को साफ बता रही थी कि अब दादी के घर वापसी का समय आ गया है। दिव्या ने कहा मैंने दादी के पेपर अपने शिक्षक गणों से मिलकर तैयार करवा दिए हैं। जाइए और दादी को घर ले आईए और अपनी गलती को सुधारिए ।

            परमात्मा ने आपको दादी के रहते अपनी गलती सुधारने का एक अफसर दिया है। इसे अपने हाथ से मत जाने दीजिए। माता-पिता तुरंत दिव्या की दादी को लेने के लिए वृद्ध आश्रम पहुंच गए पर दादी घर जाने को तैयार नहीं थी ।माता-पिता के बहुत हाथ पांव जोड़ने के बाद दादी मां मान गई।

      आखिरकार दिव्या की दादी की घर वापसी हो ही गई। यह जरूरी नहीं कि दिव्या के माता-पिता की तरह सबको अपनी गलती सुधारने का अवसर मिले। इसलिए जितनी जल्दी हो सके अपनी गलती को सुधार लें।धन्यवाद।

डॉ हरदीप कौर ( दीप)

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