बाबूजी,एक बार केवल एक बार मुझे स्वीकार कर लो।मैं जिंदगी से हार गया हूं,मुझे सहारा दे दो बाबूजी मुझे अपना लो बाबूजी।कह कर चिराग फूट फूट कर रोने लगा।
निर्विकार भाव मे खड़े आनंद स्वरूप जी अपने बेटे का अंतर्नाद सुन अंदर तक कांप गये।असमंजस में अंदर उमड़े स्नेह प्यार के भावों को प्रकट कर ही नही पा रहे थे।बेटे के प्रति अविश्वसनीयता उन्हें रोक रही थी।
आनंदस्वरूप जी यूँ तो सम्पन्न थे,पर कोई औलाद नही थी।पति पत्नी दोनो इसे ईश्वर से अपने पिछले जन्म के पापो का फल ही मानते थे।भगवान के चरणों मे नित्य यही प्रार्थना करते,कि ईश्वर उन्हें भी औलाद का सुख दे दे।खूब तीर्थ यात्रायें करते,भंडारे आयोजित करते,व्रत रखते,बस एक ही अभिलाषा,कामना
संतान प्राप्ति।सच्चे हृदय से की गई तपस्या आखिर रंग दिखलाती ही है, उनके यहां भी पुत्र रत्न प्राप्त हो ही गया।आनंदस्वरूप जी के हर्ष का कोई ठिकाना नही था।आज उनकी आस पूरी जो गयी थी।बाप बनने की अभिलाषा पूर्ण हो गयी थी।बेटा आ गया था,घर का चिराग बन कर,सो उसका नाम भी उन्होंने चिराग ही रखा।
अब आनंदस्वरूप जी एवं उनकी पत्नी मालती अपने जीवन से पूर्णतया संतुष्ट थे,कोई चाह बाकी नही रह गयी थी।मान सम्मान था,धन दौलत थी,औलाद की कमी थी, वह भी पूरी हो गयी थी,सो अब उनका रुझान धार्मिक और सामाजिक कार्यों में अधिक हो गया था।उनका मानना था,
इतना कमा लिया है चिराग कुछ भी ना करे तो भी जीवन भर बैठ कर खा सकता है।वे अब अपने कारोबार पर बस इतना ही ध्यान देते,जिससे वह चिराग के व्यापार संभालने तक बना रहे।इस सब झमेले में वे चिराग को सब सुविधाएं तो दे रहे थे,पर उसे समय नही दे पा रहे थे। सुविधाओं को देना ही उन्होंने बेटे के प्रति कर्तव्य पूर्ण मान लिया था।
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एक सार्वजनिक कार्यक्रम से आते समय उन्हें उनके परिचित कांति प्रसाद जी मिल गये, दोनो गले मिले,अचानक कांति प्रसाद जी बोले देख आंनद तू मेरा दोस्त है,बुरा मत मानना अपने बेटे को संभाल,वह गलत रास्ते पर जा रहा है।आसमान से गिरे आनंदस्वरूप जी चौंक कर बोले कांति
साफ साफ बता क्या बात है,मेरे चिराग ने आखिर किया क्या है?कांति प्रसाद जी बोले आनन्द चिराग ड्रग माफिया के चक्कर मे पड़ गया है,उन्होंने पहले उसे ड्रग का आदि बना दिया और अब उससे ड्रग का धंधा कराने लगे हैं, मुझे मेरे बेटे ने ही बताया है।तू उस पर ध्यान दे।
भारी बोझ मन पर लिये आनंदस्वरूप जी घर आ चिराग के आने का इंतजार करने लगे।रात्रि के 10 बज गये चिराग अब तक नही आया था।पहले आनंद जी ने उसके देर से आने को कभी नोटिस ही नही किया था,पर आज उन्हें एक एक पल का इंतजार मुश्किल पड़ रहा था।
एक बजे के करीब चिराग ऐसी अवस्था मे आया कि आनंदस्वरूप जी अचंभित रह गये, चिराग को शायद घर तक कोई छोड़ गया था,क्योकि वह स्वयं आने की स्थिति में था ही नही,लड़खड़ाता चिराग अपने होश में नही था,खोया खोया चिराग मशीन की तरह चल रहा था,
उसे अपने पिता का भी ख्याल नही था,सीधे बिस्तर पर जाकर वह उस पर बिना अपने कपड़े जूते उतारे पड़ गया।आनंद स्वरूप जी उसे उसी हाल में छोड़ अपने कमरे में आ गये, शायद कुछ क्रोध में,कुछ ग्लानि में तो कुछ अपने एकमेव बेटे का हाल देख उसके दुख में।
किसी प्रकार सुबह हुई,चिराग सामान्य था,लग रहा था,उसे रात का कुछ भी याद नही।आनंद जी ने चिराग को अपने कमरे में बुलाकर,उसे अपनी इज्जत से खिलवाड़ करने का दोषी तो बताया ही साथ ही उसे इस दुर्व्यसन से दूर रहने की चेतावनी भी दी।चिराग गरदन
झुकाये चुपचाप सुनता रहा।पर आज भी वही हुआ जो कल हुआ था।आनंदस्वरूप जी का क्रोध सातवे आसमान पर था,उन्होंने चिराग से साफ कह दिया कि यदि वह अपने को नही सुधारता है तो उसके लिये इस घर मे कोई स्थान नही।चिराग की माँ मालती ने
आनंद जी को रोकने का प्रयास भी किया,पर आनंदस्वरूप जी आपे में नही थे।उनके जाने के बाद चिराग माँ से चिपट कर जार जार रोने लगा,वह बस एक ही रट लगा रहा था,मैं क्या करूँ माँ, मेरे बस में कुछ भी नहीं।माँ ने उसे ढाढस बधाया।
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आनंदस्वरूप जी रात्रि में चिराग पर अपनी डांट के असर को देखने के लिये इंतजार करते रहे गये,चिराग घर आया ही नही।आनंद जी और मालती को स्वाभाविक रूप से चिराग की चिंता हुई।जहां जहां उसके होने की संभावना हो सकती थी,वहाँ वहाँ आनंद स्वरूप जी ने चिराग की खोज कराई पर वह नही मिला।
रात बीत गयी,मालती जी बेहद दुखी और परेशान थी,आखिर बेटा घर से गायब था।परेशान आनंद जी भी थे,पर पुरुष होने के कारण अपने मनोभाव दबाये थे।तभी किसी ने बताया कि चिराग बुरी अवस्था मे दूसरे मुहल्ले में एक चबूतरे पर पड़ा है।बदहवास से आनंद जी उधर दौड़ लिये,
लगभग बेहोशी की हालत में पड़े चिराग को वे घर लिवा लाये।बीच बीच मे चिराग बड़बड़ा रहा था, उसका पापा पापा कहना ही समझ आ रहा था।डॉक्टर को बुलाया गया,उसने बता दिया ड्रग की डोज के कारण ऐसा है,सुबह तक संभल जायेगा, पर आगे ड्रग न ले उसका इलाज कराइये।
सुबह चिराग ने अपने को अपने घर मे पाया,उसने देखा उसके पिता उसका हाथ पकड़े उसके पलंग पर ही बैठे बैठे ऊंघ रहे थे,सामने मां बैठी थी।चिराग समझ गया कि उसके मां और पापा सारी रात उसके पास ही रहे और उसकी देखभाल करते रहे है।वह आत्मग्लानि से भर गया,पर अपनी कमजोरी भी समझ रहा था कि ड्रग की जब उसे तलब उठती है तब वह सब कुछ भूल जाता है।उसने अपना माथा पीट लिया वह क्या करे?
तभी आनंद जी और मालती जी की आंखे खुल गयी।चिराग पापा से आंख नही मिला पा रहा था।उनके चुप रहते हुए भी स्नेह भरे हाथ के स्पर्श से वह फफक पड़ा।पापा मुझे स्वीकार कर लो का अंतर्नाद किसी के लिये भी दिल दहलाने वाला था।अपने बेटे के आंसुओं ने आनंद जी को हिला दिया।
उन्होंने आगे बढ़कर चिराग को थाम लिया।फिर अपनी नम आंखों को पूछते हुए बोले सुनती हो मालती अपना चिराग अपने घर लौट आया है,मैं संभालूंगा अपने बेटे को।पापा पापा कहते हुए चिराग अपने पापा के आगोश में समा गया।
आनंद स्वरूप जी ने उसका इलाज कराकर उसका ड्रग्स से पीछा छुड़वाया और अपने साथ उसे अपने व्यापार को समझाने ले जाने लगे।सही मायने में उनके घर का चिराग अब रोशन हुआ था।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित
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