डैड मुझे मास्टर्स तो यू बी सी ( ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी ) से ही करना है ,कंप्यूटर साइंस में ,दो सितंबर से पहले मुझे जाकर ज्वाइन करना है ।
आप चलोगे अपने वैंकुवर शहर को देखने रियान ने पूछा
“क्यों नहीं माय सन ,जरूर चलूंगा कितने साल बिताए है वहा मैंने सच मोस्ट ब्यूटीफुल प्लेस ऑफ दी वर्ल्ड,दस साल हो गए थे कनाडा छोड़े हुए लेकिन अपने घर आना भी जरूरी था ।तेरी मम्मी को तो इंडिया आना ही नहीं था
उनको कनाडा में ही रहने का मन था जब हम इंडिया आए थे तब तुम दस साल के और रिया पांच साल की थी
आप इंडिया क्यों आ गए ?
जब सब कुछ अच्छा था तब तो आप लोगों को वहीं रहना था ।
परंतु बेटा वह देश अपना नही लगता था ,
मेरी जॉब और रंजना की जॉब से हम अच्छी तरह रह रहे थे , टैक्स जरूर पैंतीस परसेंट देना पड़ता था परंतु बहुत सुबिधाय मिलती थी तुम दोनो के पैदा होने पर एक पैसा भी हॉस्पिटल को नहीं देना पड़ा था ।
रोड पार्क सब बहुत सुंदर मेंटेन करती थी वहा की सरकार ,रंजना तुम्हारी मां को एक साल की मेटरनिटी लीव भी मिलती थी । कैंबी स्ट्रीट सिक्सटीन एबीनियो में तुम दोनो का बचपन बीता था ।उधर ही तुम्हारा डे केयर था जहा तुमने और रिया ने चलना खाना सीखा ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
क्या इसे खुशी कहते हैं – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi
मेरी कंपनी भी नही चाहती थी की मैं जॉब छोड़कर इंडिया जाकर दूसरी कंपनी ज्वाइन करूं ।
परंतु मेरी आत्मा मुझे याद दिलाती रहती थी की नरेन तुम इतने स्वार्थी हो की डॉलर कमाने के लिए अपने बीमार पिता और उम्र दराज हो रही मां को अकेला छोड़ कर
कनाडा में बस गए हो ।
तुम्हारे दादा जी नही चाहते थे की मैं अपना देश छोड़कर विदेश जाउ डालर कमाने ,थोड़ी आमदनी में भी उन्होंने हम भाई बहिन दोनो को पढ़ाया और मुझे इंजीनियर और नीरा बुआ को प्रोफेसर बनाया ।
मेरे दोस्त अमेरिका और कनाडा जा रहे थे मुझे भी लगा मुझे भी जाना चाहिए , बहुत कोशिश के बाद मुझे एक इलेक्ट्रॉनिक कंपनी में जॉब मिल गई ।
चार साल में पी आर शिप भी मिल गई और फिर सिटीजन बनने का मेरा मन हो गया ,इंडिया साल में दिसंबर में तीन हफ्ते के लिए अवश्य आता था घर में मेरे वह दिन एक उत्सव की तरह होते थे । मां और बाबूजी को लगता था की मुझे वह इंडिया के सारे स्वाद दे दे जो कनाडा में नही मिलते
तभी रिश्तेदारों ने मेरी शादी रंजना से करवा दी बह भी इंजीनियर थी और मेरी तरह डालर कमाने का उसे भी एक ख्वाब था ,इंडिया मे चार साल से नौकरी में थी तो कनाडा जाकर उसे भी पी आर शिप मिल गई ।
बेटा अपने सुख से ऊपर अपने माता पिता का सुख होता है जिन्होंने हमें यह सोच कर इस लायक बनाया था की हम इंजीनियर बनने के बाद उनके बुढ़ापे में उनका खयाल रखेंगे ।
लखनऊ में एक घर और थोड़ी सी खेती ही थी परंतु उसी में वह लोग खुश थे ,नीरा नागपुर में अपनी ससुराल और नौकरी में खुश थी ।
सब बहुत अच्छा था ईश्वर की कृपा थी लेकिन अचानक पापाजी की तबियत खराब रहने लगी मैं घर आया उनकी जांचों से पता चला की उनको कैंसर है ,जो काफी फैल चुका है ।
अब मैं उन्हें इस हाल में अकेला नहीं छोड़ सकता था ,जब मैंने इंडिया रहने को कहा तो रंजना ने मेरा साथ दिया ,लेकिन कुछ दिनों में उसे यहा के सिस्टम में कमियां ही कमियां दिखने लगी ।
तुम दोनो की स्कूलिंग भी अच्छी हो रही थी मुझे घर वापस आकर मां और पापा जी की सेवा में संतोष हो रहा था ।तुम्हारी मम्मी मेरी घर वापसी से खुश नहीं थी एक साल इलाज के बाद पापाजी की डेथ हो गई ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
बेटा तुम वहां पढ़ने जा रहे हो तुम वहां के सिटीजन हो मैं जानता हूं तुम अपनी मम्मा के लिए अब कनाडा ही रहोगे
लेकिन मैं अपने देश में कुछ कमियां होते हुए भी खुश हूं ,रंजना यहां नही रहती वह कनाडा में खुश है परंतु मैं अपनी मां के साथ घर वापसी से खुश हूं I
रिया भी दो साल बाद ग्रेजुएशन करने तुम्हारे पास आ जायेगी तुम दोनो को कनाडा पसंद है क्योंकि तुम वहा पैदा हुए हो तुम्हारा बचपन वही बीता है ,परंतु मुझे अपने देश की मिट्टी ही पसंद है चाहे मैं वहा का सिटीजन बन गया हूं
परंतु अपना घर अपनी मां मुझे हमेशा याद आते रहेंगे मैं इन्हें छोड़ कर नही जा सकता ।
पूजा मिश्रा
स्वरचित