अब तक आपने पढ़ा……
उर्वशी अपने शिमला वापसी के सफ़र के अंतिम पड़ाव पर थी, जहाँ पर एक बार फिर से टैक्सी में बज रहे उस गीत को सुनकर वह अपने प्रियतम की यादों में खोने लगी थी, रास्ते में हो रही बारिश उसकी भावनाओं को और भी अधिक उद्वेलित कर रही थी।
अब आगें..
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बरसात ज्यादा होने की वज़ह से उर्वशी लगभग 4 घण्टे का सफ़र साढ़े 6 घण्टों में पूरा कर सकी, मग़र उसके बावजुद भी वह थकान बिल्कुल भी महसूस नहीं कर रही थी। उसे लग रहा था कि वह अभी ट्रेन में बैठी और अभी ही शिमला आ गई है।
शिमला में घर पहुँचते ही उर्वशी ने सबसे पहले अपने पिताजी को फ़ोन करके सकुशल पहुचने की सूचना दी, अब तक फ़ोन न आने की वजह से पिताजी बहुत व्यग्र हो रहें थे।
फ़ोन पर ही बात करने पर उर्वशी को पता चला कि वंदना दीदी और पंकज जीजाजी हनीमून पर मनाली ही गये हुये हैं, दो दिन बाद रविवार को वह शिमला में ही किसी होटल में रुकेंगे, तब उर्वशी से भी मिलने आएंगे।
घर पहुंचकर उर्वशी को पूरे घर की साफ़ सफाई, पानी भरना, बर्तन धोना, सब्जी फल लाने आदि में ही सारा दिन बीत गया।
दूसरे दिन उर्वशी को अपना ऑफिस जॉइन करने की जल्दी थी, वह जल्द ही टिफ़िन लेकर अपने ऑफिस पहुँच गई….
इतने दिन छुट्टियां लेने की वजह से उसका ऑफिस का बहुत सारा काम पेंडिंग में पड़ा था। लिहाजा उसे आज लंच टाइम में भी फुर्सत नहीं मिली थी खाना खाने के लिए..
परंतु तभी चपरासी सूचना देता है कि उसे कोई फ़ोन आया है, उर्वशी दौड़कर रिसेप्शन के पास वाला फ़ोन अटेंड करती हैं।
वह फ़ोन वंदना दीदी का था, वंदना दीदी ख़ुशी-ख़ुशी अपने हनीमून का हालचाल बताये जा रहीं थी, और उसकी बातें सुनने में लीन उर्वशी यह भी भूल गई कि वह दोनों ऑफिस के फ़ोन पर बात कर रहें हैं, रिसेप्शन पर आये दूसरे फ़ोन की घण्टी की आवाज़ से उर्वशी और वंदना दीदी की बातें करनें की तन्मयता टूटी..
उर्वशी ने कहा कि आज बहुत काम है, इसलिए वह शाम को घर जाने के बात बाद करेगी, उस पर वंदना दीदी ने मुद्दे पर आते हुये कहा कि वह कल शिमला के होटल “स्नो-लैंड” में शाम को पहुँच रहें हैं, इसलिए वहीं मिलने और डिनर करने आ जाना।
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अगले दिन शनिवार को उर्वशी के ऑफिस का “हाफ-डे” रहता है, ऑफिस के काम निपटाने के बाद उर्वशी ने घर आकर घर के डेकोरेशन को संवारा, रात को कौन सी ड्रेस, मैचिंग के कानों में झूमके, सैंडल तक कि तैय्यारी उर्वशी कर चुकी थी। शाम के 6 बज चुके थे, उर्वशी चाय की चुस्कियों के साथ वंदना दीदी के फ़ोन आने की प्रतीक्षा कर रहीं थी।
फ़ोन अब तक न आया तो उर्वशी शाम को नहाकर तैय्यार होने लग गई, अब तक साढ़े सात बज चुके थे, मग़र वंदना दीदी का फ़ोन न आने की वजह से उर्वशी की बैचेनी बढ़ती जा रही थी।
खैर लगभग 8.15 पर वंदना दीदी का फ़ोन आया कि हम लोग अभी होटल में “चैक-इन” कर रहें हैं, तुम जल्दी आ जाओ…
उर्वशी तो तैय्यार ही बैठी थी, उसने झट से अपनी स्कूटी उठाई और लगभग आधे घण्टे में ही होटल “स्नो-लैंड” पहुंच गई।
उस बहुमंजिला आलीशान होटल के रिसेप्शन पर पहुँचकर उसने पंकज जीजाजी और वंदना दीदी के बारें में पूछा तो “रिसेप्शनिस्ट” ने इंटरकॉम से पंकज जीजाजी से बात करवा दी, जीजाजी खुद ही रिसेप्शन पर आ गये अपनी साली साहिबा को लेने को।
रूम में पँहुचते ही वंदना दीदी से लिपट गई उर्वशी से.. यह देखकर पंकज जीजाजी ने भी अपनी बांहे फैलाकर उर्वशी से बोले “जिज्जी’ से तो गले मिल ही ली हो तो, थोड़ा “जिज्जाजी” से भी मिल लो साली साहिबा। यह देख उर्वशी और वंदना दीदी दोनों ही खिलखिला कर हंस पड़े।
वंदना दीदी से 5 दिन पहले ही तो मिली थी उर्वशी, महज़ पांच दिनों में ही किंतना निखार आ गया था उसके चेहरे पर…
पंकज ने रूम में पड़े “मीनू कार्ड” को देखकर उर्वशी से उसकी पसन्द का खाना ऑर्डर करने को कहा..उर्वशी ने उस होटल के महंगे रेट पर नज़र डालते हुये चपाती, प्लेन राइस और दाल फ़्राय का ऑर्डर किया… जिस पर पंकज जीजाजी ने हँसते हुये कहा कि यार मैं “हनीमून” पर निकला हूँ, “हनुमान जयंती” मनाने नहीं जो रूखा सूखा “सात्विक खाना” मंगवा रही हो।
पंकज जीजाजी ने शाही पनीर, कश्मीरी पुलाव, दम आलू, तवा रोटी आदि का ऑर्डर किया और खाने के अंत मे शिमला में उस रात इतनी ठंड गहराने के बाद भी आइसक्रीम का ऑर्डर किया।
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रात 11.30 बज चुके थे, खाना खाते और गप्प मारते हुये, बाहर कड़ाके की ठंड बढ़ने लगी थी, शायद कुफ़री में बर्फबारी हुई हो, वंदना दीदी के साथ ब्लेंकेट मे बैठे बैठे उर्वशी को बहुत अच्छा लग रहा था, मगर दीदी जीजाजी तो हनीमून पर आये थे, इसलिए ज्यादा देर रुकना मतलब “कबाब में हड्डी बनना” था, पंकज जीजाजी और वंदना दीदी संकोचवश न तो उसे जाने को बोल पा रहें थे और न ही उनकी उर्वशी को रोकने की इच्छा हो रही थी।
उर्वशी ने ही विदा लेने की पहल करते हुये कहा कि रात बढ़ गई है इसलिए वह अब घर जा रही हैं। इस पर पंकज जीजाजी ने उर्वशी से दूसरे दिन यानी रविवार को “शिमला घुमाने” का वादा लेकर उसे होटल के बाहर तक आकर विदा किया।
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कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-7) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi
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अविनाश स आठल्ये