वीरेश्वर मिश्रा का सामान से भरा ट्रक आधी रात को ही, उनके गाजियाबाद वाले घर में आ गया था, अब लेबर द्वारा उससे सामान निकाल कर घर में जमाने का कार्य हो रहा था। अनुराधा ने आज छुट्टी ले ली थी।
भास्कर राव, वीरेश्वर मिश्रा और सुलक्षणा के मार्गदर्शन मे घर को अच्छे से जमाया जा रहा था। उन्हें भी अनुराधा का नया क्वार्टर बहुत अच्छा लग रहा था।
शाम तक रसोई भी जम चुकी थी, इसलिए सुलक्षणा ने अनुराधा के साथ डिनर में खाने के साथ साथ अनुराधा का मन पसन्द सूजी का हलुआ भी बनाया था।
अनुराधा अपनी फेवरेट डिश देख कर खुशी से पागल हो गई थी, वैसे भी करीब महीने भर के बाद अनुराधा को गाजियाबाद में आकर अपने घर का माहौल मिला था, वीरेश्वर मिश्रा सोच रहे थे कि “अच्छा ही किया उन्होंने अनुराधा की बात मानकर”, वैसे भी जहां अनुराधा कि खुशी हो, वहीं उनकी भी खुशी थी ।
रात को सोने से पहले अनुराधा ने कुमार से ढेर सारी प्यारी बातें की, अनुराधा के हाव भाव देख कर ही वीरेश्वर मिश्रा, भास्कर राव त्रिवेदी और सुलक्षणा यह तो समझ ही गए थे कि यह कुमार अब अनुराधा के दिल के बहुत करीब आ चुका है।
दूसरे दिन सुबह जब अनुराधा काम पर जाने लगी तो वीरेश्वर मिश्रा ने उसे कहा कि बेटा अब हम यहां शिफ्ट हो गए हैं, “अब कुमार को एक बार यहां बुला लेना तो हम लोग भी उसे देख समझ लेंगे।”
उनकी बात सुनकर अनुराधा खुशी खुशी ऑफिस चली गई, ऑफिस पहुंचते ही अनुराधा ने कुमार को फ़ोन करके बताया कि अब आप जल्दी गाजियाबाद आओ, और मेरे पिताजी से बात करो।
कुमार ने भी अनुराधा को जल्दी ही आने का आश्वासन दिया। वैसे भी गाजियाबाद से मथुरा शिफ्ट हो जाने के बाद से वह और अनुराधा मिल ही नहीं पाए थे, बीच में एक पेशी के सिलसिले में कुमार गाजियाबाद आया जरूर था, परन्तु ऑफिस स्टाफ साथ में होने कि वजह से वह अनुराधा से मिल नहीं पाया।
अनुराधा के घर लौटने के बाद, रात को खाना खाने के बाद जब सभी लोग टीवी देख रहे थे कि वीरेश्वर मिश्रा ने अनुराधा से पूछा, कुमार से बात की क्या? वह कब आ रहा है यहां ?
अनुराधा ने कहा कि आज सुबह उससे बात की थी, तो वह जल्दी ही आने कि बात कर रहा है।
वीरेश्वर मिश्रा ने अनुराधा से फिर पूछा, बेटा मैंने तुमसे पहले कहा था न कि कुमार के बारे में जानकारी एकत्रित करके बताओ, वह कहां से है, उसके माता पिता कहां है, घर में कौन कौन है? तुम्हें उसके बारे में कुछ जानकारी हासिल हुई क्या?
अनुराधा ने दबी जुबान से कहा, नहीं पिताजी, उसने मुझे कहा कि वह यह सब बातें, सही वक़्त आने पर ख़ुद ही बता देगा।
उन दोनों कि बात सुनकर सुलक्षणा जो कि मन ही मन कुमार से अब नफ़रत करने लगी थी ( क्योंकि उसकी दिली इच्छा थी कि, अनुराधा कि शादी कुमार से न होकर उसके पुत्र अरविंद से हो) इसलिए उसने जले पर नमक छिड़कने हुए कहा, बुरा मत मानो बेटा, आजकल तो ज्यादातर कलेक्टर “कोटे” से ही बनते हैं, और कुमार नाम भी कुछ ऐसा है कि न जाती का पता चलता है न खानदान का। लड़का भले ही थोड़ा कम स्तर का हो परन्तु खानदान अच्छा होने से संस्कार भी अच्छे मिलतें है!
अनुराधा को सुलक्षणा की बात बहुत बुरी तरह चुभ रही थी, उसे लगा कि वह पलट कर जवाब दे ही दे, तभी भास्कर राव त्रिवेदी ने चिढ़कर सुलक्षणा से कहा, क्या दकियानूसी बकवास कर रही हो, मै नहीं मानता इन सब बातों को, हमारा अपना बेटा अरविंद भी देखो न, क्या कमी कि थी उसकी परवरिश में फिर भी..
देखते ही देखते घर का माहौल तनाव पूर्ण हो गया, तो अनुराधा ने ही बात सम्हालते हुए कहा कि अरे परेशान क्यों हो रहें है आप सब,अब जब कुमार घर आए तो आप खुद ही पूछ लेना। आप लोगों कि मर्जी के बिना मै शादी नहीं करूंगी, यह बात भी मैंने कुमार को जता दी है, बाद में वो सभी लोग सोने को चले गए।
सुबह अनुराधा की ऑफिस जाने की तैयारी के साथ ही घर का माहौल फिर से सामान्य हो चला था।
★
एक सप्ताह बाद कुमार ने अनुराधा को बताया कि वह दो दिन बाद किसी ऑफिशियल काम से गाजियाबाद आ रहा है, काम ख़तम करके वह शाम को उसके घर आएगा,और पिताजी से मिलेगा।
अनुराधा ने खुशी खुशी यह बात घर आकर पिताजी को बताई, हालांकि वो लोग घर में अभी ही शिफ्ट हुए थे, और पूरा घर अच्छे से सजा हुआ था, फिर भी अनुराधा और वीरेश्वर अगले दिन शाम को दरवाजे खिड़कियों के लिए पर्दे, एक दो अच्छी पेंटिंग, डायनिंग टेबल और सेंट्रल टेबल के कवर, पैर पोश , कुछ गमले, सोफ़ा कवर आदि सामान लेकर पूरी तन्मयता के साथ घर को सजाने लगे। मन में न होते हुए भी सुलक्षणा भी अपने पति भास्कर राव के साथ, अनुराधा और वीरेश्वर मिश्रा कि मदद करने लगी।
रात को ही निश्चित किया गया कि कुमार पहली बार घर आ रहा है, तो उसे डिनर करा कर ही जाने देना है, फिर डिनर में क्या-क्या बनाना है, उसकी भी लिस्ट बना ली गई।
दूसरे दिन अनुराधा मध्यान्ह के बाद छुट्टी लेकर घर आ गई, आते आते वह कल बनाई लिस्ट के अनुसार जरूरी सब्जी और सामान लेते हुए घर पहुंची।
घर में युद्ध स्तर पर तैयारी चल रही थी, चाय के लिए कौन सी क्रॉकरी निकालना है, नया डिनर सैट और अन्य छोटी छोटी चीजों की तक की भी सुलक्षणा ने बारीकी के साथ तैयारी कि थी, कपड़े चेंज करके अनुराधा भी जल्दी जल्दी सुलक्षणा के साथ रसोई मे मदद करने लगी, उसने पहले से निश्चित मीनू के हिसाब से सब्जी काटने, सलाद काटना, आटा गूंथने से लेकर यथा संभव तैयारी कर ली, जब उसने घड़ी की तरफ देखा तो पांच बजने को आए थे, घड़ी आज उसकी उम्मीद से तेज चल रही थी।
तभी कुमार का अनुराधा के मोबाइल पर फोन आया, कि उसका काम हो गया है, वह ऑफिस से उसे लेते हुए ही घर चलेगा, अनुराधा ने कुमार से कहा कि वह आज जल्दी घर आ गई है, इस पर कुमार ने कहा कि ठीक है तो वह आधे घंटे में घर में पहुंच रहा है।
उसकी बात सुनकर अनुराधा से ज्यादा सुलक्षणा परेशान हो गई। क्यूंकि रसोई में उसकी मदद करते करते उसे याद ही नहीं रहा कि अनुराधा को तैयार भी होना है, उसने तुरंत अनुराधा को तैयार होने को भेज दिया, अनुराधा जल्दी तैयार होने के लिए सलवार सूट पहनकर कर रेडी होने लगी, तभी सुलक्षणा ने उसे डांट कर कहां कि कुछ चीज़े दस्तूर के हिसाब से चले तो अच्छा होता है, तुम आज साड़ी ही पहनना, और मेरी जगह आज तुम्हारी माँ भी होती तो वह भी तुमसे यही कहती, अनुराधा, सुलक्षणा की बात सुनकर उनसे लिपट कर बोली, आप भी तो मेरी माँ ही हो न।
सुलक्षणा अब वापस रसोई में जाकर बाकी कि तैयारी करने लगी तभी उसे याद आया कि अभी शाम को चाय और स्नेक्स के साथ में रखने के लिए कुछ मिठाई लाना चाहिए, इसलिए उसने अपने पति भास्कर राव त्रिवेदी को पास के मिठाई वाले से मिठाई लाने को भेज दिया, और वीरेश्वर मिश्रा, जो कि अभी भी कुर्ता पैजामा में ही थे , को आग्रह किया कि पहली बार कुमार घर आ रहे है, इसलिए उन्हें भी सूट पेंट में होना चाहिए, सुलक्षणा की बात सुनकर वीरेश्वर मिश्रा भी अपने कमरे में तैयार होने चले गए, सुलक्षणा भी जल्दी जल्दी में पोहे बनाने की तैयारी करने लगी।
कुछ समय बाद कार आने की आवाज सुनकर वीरेश्वर मिश्रा और अनुराधा दौड़कर दरवाजे तक आते हैं, वह कुमार ही था, उसने आते ही अनुराधा के पिता के पैर छुए, और उनके पीछे पीछे घर के अंदर आ गया।
कुमार देख रहा था कि 15 दिन में कितना बदल दिया है अनुराधा ने इस घर को, वो उजड़ा हुआ बगीचा कितना सुंदर चमन बन गया है, दरवाजे खिड़कीयों पर लगे पर्दे, सुंदर पेंटिंग, सोफ़ा डाइनिंग टेबल और गृहसज्जा, वह क्वार्टर इतना खूबसूरत भी हो सकता है, कुमार ने सोचा ही नहीं था।
वीरेश्वर मिश्रा ने कुमार से बैठने का आग्रह किया, उसके बैठते ही, अनुराधा किचिन में जाकर सुलक्षणा से बाहर आकार मिलने को कहती है, परन्तु सुलक्षणा यह कहकर टाल देती है कि अभी मै चाय और पोहे बना लूं फ़िर त्रिवेदी जी के साथ में आकर कुमार से मिल लूंगी।
★
अनुराधा ट्रे में पानी के गिलास लेकर बाहर आकर कुमार को पानी देने लगी, उसके इस तरह के घरेलू रूप को देख कर कुमार मुस्कुरा उठा, अनुराधा ने हलका का मेकअप किया था, आज उसने स्लीवलैस ब्लाऊज और लाल रंग की शिफान साड़ी पहनी थी। उसके साथ में मैचिंग ज्वैलरी अनुराधा को और भी “मोहक” बना रही थी।
इसी बीच बाहर खड़ी कार देख कर भास्कर राव त्रिवेदी समझ गए कि कुमार आ गए होंगे, इसलिए वह पीछे के दरवाजे से किचिन में आकर, सुलक्षणा को मिठाई देते हुए बोले इसमें काजू कतली है, जो कि अरविंद को बहुत प्रिय थी। अब अरविंद का तो कुछ पता नहीं, पर क्या तुम कुमार को ही अरविंद नहीं समझ सकती, आखिर अब अनुराधा अपनी बहू न सही बेटी समान तो है ही न, उनकी बात सुनकर सुलक्षणा की आँखे भर आई,
उसे भी अपने रूखे व्यवहार पर आत्मग्लानि हो रही थी, अरविंद के मोह में क्या वह अनुराधा के सुख का भी ध्यान नहीं रखेगी, सुलक्षणा ने संयत होते हुए, प्लेट में पोहे निकाले, और चाय , मिठाईयां ट्रे में रखकर ड्राइंग रूम की और बढ़ी, जहां कुमार और वीरेश्वर मिश्रा बैठकर बात कर रहे थे, उनकी औपचारिक बातचीत शुरू हो चुकी थी, तभी वीरेश्वर मिश्रा ने कुमार से पूछा, बेटा आप कहाँ से हो? आपके माता पिता का क्या नाम है, वे कहां है अभी, आपके घर में और कौन कौन है ? वीरेश्वर मिश्रा ने सवालों कि झड़ी लगा दी ।
कुमार का गला सूख चला था, उन सवालों के जवाब देने के लिए, इसलिए वह परेशान होकर पानी का गिलास उठाकर, एक सांस में पानी पी गया, फिर वीरेश्वर मिश्रा से बोला, कि मैने अनुराधा से कहा था, कि मै उसे सही वक़्त आने पर अपने बारे मैं सारी जानकारी दूंगा, और मुझे लगता है कि आज मुझे अपने बारे में सबकुछ बता देना चाहिए, मै आपको धोखे में नहीं रखना चाहता.. कुमार बोल ही रहा था, कि तभी सुलक्षणा चाय, नाश्ते और मिठाई की ट्रे लेकर पर्दे कि ओट से अनुराधा को आवाज़ देती है, उसकी आवाज सुनकर, अनुराधा रसोई के दरवाजे की तरफ़ मुड़ी, तभी वीरेश्वर मिश्रा ने कहा, आइए भाभी जी, और त्रिवेदी जी को भी बुला लीजिए..
कुमार! ये मेरे अभिन्न मित्र भास्कर राव त्रिवेदी और उनकी पत्नी सुलक्षणा हैं, अब तक भास्कर राव त्रिवेदी भी सुलक्षणा के पीछे पीछे ड्राइंग रूम तक आ गए थे, कुमार स्तब्ध सा अपलक सुलक्षणा और भास्कर राव त्रिवेदी कि ओर देख रहा था, यही हालत सुलक्षणा और भास्कर राव त्रिवेदी का भी था,
तभी सुलक्षणा आगे बढ़कर कुमार के तरफ़ बढ़ी और बोली..
अरविंद तुम?
अगला भाग
कुटील चाल (भाग-14) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi
स्वलिखित
अविनाश स आठल्ये
सर्वाधिकार सुरक्षित