*आत्मसम्मान का पाठ* – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

शील कुमार कमरे में बैठे अखबार पढ़ रहै थे। उनके कान में अपनी पत्नी वीणा और बेटी राधा की आवाजे जोर जोर से आ रही थी। उनका ध्यान पेपर से हटकर उन दोनों की बातों की तरफ मुड़ गया। राधा की बातें सुनकर ऐसा लगा जैसे उनके दिल की आवाज को हूबहू वो अपनी माँ से कह रही है।

जिस बात को वे चाहकर भी कभी अपनी पत्नी से नहीं कह पाए, वह बात आज उनकी बेटी राधा ने कितनी सहजता से कह दी। उनकी बेटी का बारहवीं कक्षा में प्राविण्य सूचि में प्रथम स्थान आया था। आज उसे विद्यालय में सम्मानित कर पुरूस्कार मिलने वाला था। उसके साथ उसके 

अभिभावक को भी बुलाया गया था। विद्यालय में क्या पहन कर जाना है इस बात पर बहस छिड़ी हुई थी। राधा ने समारोह मे जाने के लिए उसके पिताजी ने जो सलवार सूट लाकर दिया था उसे पसंद किया था ,और वीणा जी का कहना था कि यह ड्रेस समारोह के हिसाब से हल्की लगेगी वह उस ड्रैस को पहने जो उसके मामा ने दी है।

         अब कहानी को आगे बढ़ाने से पूर्व परिवार की स्थिति पर एक नजर डालते हैं। शील कुमार एक ईमानदार शासकीय अधिकारी थे। उन्हें जो वेतन मिलता उससे अपना घर परिवार कुशलता से चलाते थे।वे आकर्षक, प्रभावी व्यक्तित्व के धनी थे, दिखने में बेहद खूबसूरत थे, जो देखता प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।

अपने उसूलों के कायल थे ,और बुरी प्रथाओं के विरोधी। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही, उनके पिता के मित्र ने अपनी बेटी वीणा का रिश्ता उनके लिए भेजा, वीणा को और शील कुमार को भी यह रिश्ता पसन्द आया और शादी  हो गई। शादी बिलकुल सादगी से हुई, शील कुमार ने दहैज के नाम पर कुछ भी  लेने से इन्कार कर दिया, शगुन का रूपया नारियल और कंकू कन्या को ही उन्होंने स्वीकारा। वीणा और शील कुमार का वैवाहिक जीवन ठीक से चल रहा। वीणा के पिताजी शील कुमार की उनके घर में हमेशा प्रशंसा करते थे

इस कहानी को भी पढ़ें: 

लफ्जो मे नही हकीकत मे बराबर कर दो ना – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

और अपने बेटे से ज्यादा मान देते थे। यह बात वीणा के इकलौते भाई राजेश को पसंद नहीं थी, वह हमेशा शील कुमार को नीचा दिखाने का अवसर ढूंढता रहता था। जब तक वीणा के पिता जीवित थे उसकी हिम्मत नहीं  हुई, मगर उनकी मृत्यु के बाद वे अपने ऐश्वर्य से हमेशा वीणा को आकर्षित करने की कोशिश करते, ऊपर से चिकनी चुपड़ी बातें करतेजैसै उसके शुभचिंतक हो, मगर उनका मुख्य उद्देश्य शील कुमार को नीचा दिखाने का होता। राजेश  उच्च प्रशासनिक पद पर था, और ऊपरी इनकम से ऐशोआराम की सारी चीजे बसा रखी थी,

उसकी दो लड़कियां थी और वह उनकों परियों की तरह रखता, सुन्दर सुन्दर पौशाक थी उनके पास। ससुर के जाने के बाद शील कुमार का ससुराल जाना नहीं के बराबर हो गया था, उनके उसूल राजेश के व्यवहार से मेल नहीं खाते थे। मगर वे वीणा को मना नहीं करते थे, क्योंकि  उनका भाई बहिन का रिश्ता था। वह जब भी मायके जाती भाभी मीठा मीठा बोलती अपने ऐश्वर्य का बखान करती,अपनी पहनी हुई साड़ी यह‌ कहकर कि ‘अगर तुम बुरा न मानो तो ये साड़ी तुम ले जाओ।’ वीणा मन की भोली थी, सोचती अच्छी साड़ियां है,

भाभी की साड़ियां पहनने मे क्या बुराई है, रख लेती। एक दो बार भाभी ने उनकी बेटियों की  पहनी हुई फ्राक और ड्रेस भी उसे दी तो वह ले आई, सोचा कि राधा और शोभा बहिने ही तो है,  एक दूसरे के‌ कपडे़ पहनने में क्या बुराई है।वीणा की भाभी का भी उद्देश्य वीणा को नीचा दिखाने का होता, हर पल उसे यह एहसास कराती कि वह उससे ज्यादा सम्पन्न है। एक दो बार राधा भी मामा के घर गई, मगर उसे उनका व्यवहार पसंद नहीं था, उसमें उसे घमण्ड की बू आती थी। राधा सरल स्वभाव की, साधारण रहन सहन वाली, प्रतिभाशाली, स्वाभिमानी लड़की थी।

उसे माँ की यह आदत बिलकुल अच्छी नहीं लगती थी कि वह मामी की पहनी हुई साड़ियां लेकर आए। इसका एक कारण भी था एक बार उसके मामा मामी और उनकी बेटियां मिलने आए थे, अनायास तेज बारिश हो गई, और उन्हें रात को रूकना पड़ा। वे अपने‌ कपडे़ लेकर नहीं आए थे। दूसरे दिन माँ ने और उसने कितना कहा कि वे उनके कपड़े पहन ले मगर उन्होंने नहीं पहने,मामा बाजार से दूसरे ले आए। राधा ने उनके जाने के बाद मॉं से कहा भी मगर माँ ने बात को टाल दिया।

        आज जब वीणा ने राधा से शोभा की ड्रेस पहनने को कहा तो वह गुस्से से तिलमिला गई। भभक गई अपनी माँ के ऊपर- ‘क्या है माँ उन कपड़ो में ऐसा,क्या हीरे मोती जड़े है? मुझे उसमें उनके घमण्ड की, बेईमानी की बू आती है। मेरे पापा मेरे लिए जो ड्रेस लाए है मेरे लिए वही कीमती है, मेरे पापा ने इज्जत से पैसा कमाया है, कभी बेईमानी नहीं की। माँ इन्सान की इज्जत उसके कपड़ो से नहीं उसके व्यक्तित्व से होती है। हमारा भी कोई आत्म सम्मान है या नहीं कि हम उनके दिए हुए कपड़े पहन खुश हो।

आप जानती है कि मैं उन कपड़ो को नहीं पहनती हूँ, फिर भी लाती है। मैं आपसे कुछ नहीं कहती कि आपका मन दु:खेगा। पर माँ मैं अपने पापा का मन भी नहीं दु:खा सकती आज उनकी बदौलत मैंने यह मुकाम हॉसिल किया है, वे कल कितनी खुशी से मेरे लिए कपड़े लेकर आए, मैं वही पहनूंगी । आप स्वतंत्र है आप जो चाहे पहने। आपको जानकारी के लिए बता दूँ, सारे रिश्तेदारों, इष्ट मित्रों के बधाई संदेश मेरे पास आए सिर्फ मामा मामी को छोड़कर।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

टांग अड़ाना – सरोज माहेश्वरी : Moral Stories in Hindi

       वीणा के पास कहने के लिए कोई शब्द नहीं था, उसकी ऑंखें खुल गई थी, समारोह में उसने शील कुमार जी की लाई हुई साड़ी ही पहनी। उसे आत्मसम्मान का पाठ उसकी बेटी ने पढ़ाया था। उसने भैया भाभी से बोलचाल का व्यवहार रखा।लैन दैन का व्यवहार बंद कर दिया था।

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!