दक्षिणा कभी ऑफिस में किसी से हाथ नहीं मिलाती थी। अगर कोई हाथ बढ़ा देता तो वह मुस्कुरा कर दोनों हाथ जोड़ देती थी। मुकुल में एकाध बार कहा भी – ” किस जमाने में जी रही हो दक्षिणा, हाथ मिलाने में क्या हर्ज है?”
” मेरी अपनी मर्जी। मुझे हर एक व्यक्ति का स्पर्श अच्छा नहीं लगता है ।”
” अच्छा •••।” मुकुल भी शरारत से मुस्कुरा कर कह देता – ” हो सकता है कि दूसरे को तुम्हारा स्पर्श अच्छा लगता हो तो उसी की इच्छा पूरी कर दिया करो। क्या पता तुम्हारे एक स्पर्श से कोई भाग्यवान हो जाये।”
दक्षिणा भी मुस्कुरा देती – ” आप और आपकी द्विअर्थी बातें अजीब होती है, मेरी समझ में नहीं आती।”
” क्योंकि तुम बेवकूफ हो।” सुनकर मुकुल के साथ वह भी हॅस देती।
जो दक्षिणा पास पड़ी कुर्सी पर बैठने के पहले साड़ी का पल्लू और दुपट्टे का ऑचल समेट लेती थी, उसके सम्मुख कैसे जायेगा ? क्या मुॅह दिखाएगा उसे? आज तक उसने कभी जानबूझकर दक्षिणा को छुआ तक नहीं था क्योंकि दक्षिणा उसके लिए अनमोल और अद्वितीय थी। वह सिर्फ उसके होठों पर खिली हुई हॅसी देखना चाहता था। उसकी ऑखों में जरा सी उदासी देखकर मुकुल की आत्मा पीड़ा से कराहने लगती थी।
सारी रात छटपटाते हुए बीत गई। दूसरे दिन वह सिर दर्द के कारण बिस्तर से उठ नहीं पा रहा था ।उसके शरीर की सारी शक्ति जैसे निचुड़ सी गई थी। उसने अहिल्या से कहा – ” अहिल्या, आज ऑफिस नहीं जा पाऊॅगा। ऑफिस में फोन करके बता दो।”
” ठीक है, आज तुम आराम करो।”
फोन करके अहिल्या मुकुल के पलंग पर आकर बैठ गई और उसका सिर सहलाते हुए कहने लगी – ” पता नहीं मुझे आपको बताना चाहिए या नहीं । वैसे ही तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है।”
” ऐसी क्या बात है?”
” दक्षिणा बीमार है।”
” कल उसने फोन पर बताया था कि उसके पैर में मोच आ गई और घर वाले किसी शादी में गये हैं।” धड़कते दिल से मुकुल ने मन में कहा – ” हे भगवान, दक्षिणा ने कहीं कुछ कर तो नहीं लिया।”
” मोच की बात नहीं है, वह आई०सी०यू० में है आपके मैनेजर साहब ने उसे नर्सिंग होम में भर्ती करा दिया है। बैंक के कई लोग वहीं गये हैं। तुम ठीक होते तो हम भी चलते, उसे हमारी जरूरत होगी।”
” मैं घर पर हूॅ तुम चली जाओ सचमुच उसे तुम्हारी जरूरत होगी।”
अस्पताल से लौट कर आने के बाद अहिल्या ने बताया कि कल जब दक्षिणा की बाई अपने बच्चे को लेकर आई तो दक्षिणा को लेटे हुये देखकर उसने सोचा कि शायद दक्षिणा सो रही है। इसलिये वह काम में लग गई। खाना बनाकर वह जब दक्षिणा को खाना खाने के लिए उठाने आई तो उसने देखा कि दक्षिणा सो नहीं रही है। वह बस फटी फटी ऑखों से उसे देख रही थी। न वह कुछ बोल रही थी और न ही उसे पहचान रही थी। घबराकर बाई ने दक्षिणा के पति को फोन किया तो उन्होंने कहा कि वे लोग परसों के पहले नहीं आ पायेंगे, दक्षिणा के मायके फोन कर दो।
” कानपुर ••••• ।” मुकुल के मुॅह से निकला ।
” हॉ, उसके माता-पिता रात को ही आ गये लेकिन अनजान जगह और रात में अपनी बेटी को कहाॅ ले जाते तब उन्होंने दक्षिणा के मोबाइल से मैनेजर साहब का नम्बर ढूढकर रोते हुए तुम्हारे मैनेजर से सहायता के लिये प्रार्थना की। तुम्हारे मैनेजर बहुत अच्छे हैं, वह उसी समय दक्षिणा के घर गये और सारी व्यवस्था करके सुबह चार बजे दक्षिणा को नर्सिंग होम में भर्ती कराया है।”
मुकुल सन्न सा बैठा था और अहिल्या बोलती जा रही थी – ” डॉक्टर कहते हैं कि उसे कोई बहुत गहरा सदमा लगा है। सब लोग बार-बार बाई से पूछ रहे हैं लेकिन वह यही कह रही है कि वह दक्षिणा को बिल्कुल ठीक छोड़ कर गई थी। वह बहुत रो रही थी कि न मैं भाभी को अकेला छोड़कर अपना बच्चा लेने जाती और न ही यह सब होता।”
बताते बताते अहिल्या रोने लगी – ” दक्षिणा को अचानक क्या हो गया मुकुल। उसे न कुछ आभास होता है, न किसी को पहचानती है और न ही बोलती है। जैसे बेहोशी में हो।”
मुकुल क्या बताये वह तो जानता ही है कि दक्षिणा को किस बात का सदमा लगा है लेकिन अब उस बात को किसी के सम्मुख बताने से क्या फायदा? तमाम अनर्गल बातें उन दोनों के सम्बन्ध में फैलने लगेंगी जबकि ईश्वर साक्षी है कि वह एक दुर्घटना थी।
हृदय की तड़प बहुत बढ़ गई तो उसने अहिल्या को सीने से लगा लिया मानो अपने दिल को सहारा दे रहा हो। उसकी अपनी ऑखें गीली हो गईं ।
अगला भाग •••
उपहार (भाग-11) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर