मां का घर – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

एक बेटी के लिए बाबुल का घर छोडना आसान नहीं होता।मायका चाहे जैसा हो अमीर गरीब लेकिन वहां की स्मृतियां एक बेटी के लिए अकल्पनीय होती है ।वह उम्र भर वहां की स्मृतियां संजोए रहती है । उसको कभी भूल नहीं पाती है । ससुराल में आकर तमाम जिम्मेदारियों में फंसकर भी बाबुल की यादें ज़ेहन में किसी कोने में हमेशा बैठी रहती है । बाबुल की यादें होती ही है इतनी खूबसूरत ।

                   वेदिका दो भाई और तीन बहनें थीं । दोनों भाई बड़े थे और बहनें छोटी । भरा-पूरा परिवार था । वैसे तो घर आर्थिक रूप से सम्पन्न था लेकिन पुराने ख्यालों के पिता जी थे । इसलिए बेटों को अधिक महत्व दिया जाता था और बेटियां और मां घर में उपेक्षा की शिकार थी । बेटियों के लिए कोई आजादी नहीं थी।

बस ब्याह करो और अपने ससुराल जाए । लेकिन एक पुरुष वर्ग कभी नहीं समझ सकता कि एक बेटी के लिए बाबुल का घर क्या होता है। एक बेटी के लिए बाबुल की यादें कितनी खुबसूरत होती है।

               वेदिका के छोटे भाई शहर से बाहर अहमदाबाद में नौकरी करते थे । बड़े भाई मां पिताजी के साथ रहते थे । धीरे धीरे तीनों बेटियां वेदिका , वंशिका और वसुधा खेल कूद कर बचपन की दहलीज लांघ चुकी थी और अब अल्हड़ जवानी में कदम रख चुकी थी ‌। स्कूल पूरा करने के बाद बड़ी मुश्किल से वैदिका को कालेज में एडमिशन लेने की अनुमति मिली । वेदिका का सपना था कि पढ़-लिख कर नौकरी करूं लेकिन घर में नौकरी की इजाजत नहीं थी पढ़ रही है वहीं बड़ी बात थी ।

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वेदिका तीनों बहनों में बड़ी थी ।बस अट्ठारह की हुई थी कि घर में शादी की चर्चा होने लगी । बड़ी की जल्दी शादी कर दें तो छोटी का नंबर आए । वेदिका नहीं चाहती थी अभी शादी करना लेकिन घर में न मां की चलती थी न बेटियों की ।बीस की होते-होते वेदिका की शादी हो गई नौकरी करने के और खूब पढ़ने के उसके सपने धरे के धरे रह गए। यहां ससुराल में भी किसी ने नौकरी की अनुमति नहीं दी।बस यही दलील की घर कौन संभालेगा ।भाई शादी के पहले भी तो घर संभल ही रहा था न ।

क्यों एक बेटी के शादी होते ही ससुराल की सारी जिम्मेदारी एक बहू पर आ जाती है । फिलहाल वेदिका के सपने घर की जिम्मेदारी यों के बीच दबकर चकनाचूर हो गए। कुछ सालों में वेदिका की दोनों छोटी बहनों की भी शादी हो गई।

               वेदिका बहनों में बड़ी थी तो उसे मां से कुछ ज्यादा ही लगाव था । उसे मां की पीड़ा का अहसास था । मां घर में उपेक्षित थी ये भी उसको मालूम था ।घर में पैसा था लेकिन मां के हाथ में नहीं था।वो छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने को भी परेशान होती थी। बड़े भाई के तीन बेटे थे और अब बड़े हों गए थे

तो शादी ब्याह करना था ।घर छोटा पड़ रहा था ।तो निर्णय लिया गया कि बड़ा घर लिया जाए ।घर लिया गया और बड़े भाई का परिवार नए घर में चला गया और मां पिताजी यही रह गए ।एक तरह से बंटवारा हो गया दोनों भाइयों में एक मकान बड़े का और एक मकान छोटे का ।

               छोटे भाई तो बाहर नौकरी करते थे तो वो अपने परिवार में ही मस्त रहते थे । यहां मां पिताजी का कोई ख्याल नहीं था । वैसे तो बेटों से कोई रूपया पैसा नहीं चाहिए था लेकिन मां बाप के साथ प्रेम प्यार का जो रिश्ता होता है वो भी दूर रहकर समाप्त सा हो गया था। अच्छा मां की क्या मजबूरियां होती है या उनके मन में क्या चल रहा है ये एक बेटी से बढ़कर कोई नहीं समझ सकता। पिताजी की तरफ से मां उपेक्षित थी ।

उनकी नजर में वो बस घर की बच्चों की और पति की जिम्मेदारी उठाने वाली एक पत्नी और एक मां होती है बस।घर में रह रही है खा पी रही है बस और क्या चाहिए ।और उनकी कुछ ज़रूरत हो सकती है 

इसका ख्याल नहीं था।

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                    वेदिका सोचती कि क्या शादी हो गई है तो मैं मां के लिए कुछ नहीं कर सकती ।वो मेरे बाबुल का घर है । वेदिका के घर भी बहुत नहीं था बस अच्छे से गुजर बसर हो जाती थी ।अब वेदिका अपने खर्चे से कुछ कुछ पैसे बचा कर रखती थी कि मायके जाऊंगी तो मां को दूंगी । हालांकि मां कुछ कहती नहीं थी फिर भी मां की मजबूरी वेदिका अच्छे से समझती थी।

           अबकी बार जब वेदिका मायके गई तो मां बहुत उदास थी , वेदिका ने पूछा भी कि क्या बात है मां आप इतनी चुपचाप सी क्यों हो , कोई बात नहीं है बेटा , नहीं कुछ तो बात है । बार बार पूछने पर मां कहने लगी इसबार सोंच रही हूं तुम्हारे मामाकों राखी बांध आऊं तो बांध आओ न इतना सोचने की क्या बात है,पर बेटा,,,,,,,।

अच्छा मैं समझ गई आप खुशी खुशी तैयार हो मैं ले चलूंगी आपको मामा के पास ।पर बेटा भाई के साथ भतीजे भतीजियां भी है अब बड़े होकर जाओ तो उनको भी कुछ करना पड़ता है सब हो जाएगा मां आप परेशान न हों । राखी , मिठाई सबकुछ।पर बेटी से लेते हुए क्या अच्छा लगेगा । क्या मां बेटा और बेटी यही फर्क करती रहोगी जिंदगी भर क्या, कुछ नहीं होता। तुम्हारी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकती क्या ‌।

              पुराने समय में घर में रहकर खाना कपड़ा सब आपको मिल रहा है यही बहुत है। फिर पिताजी की मामा से लड़ाई चल रही है तो उनके नाम पर तो और भी कुछ नहीं देना है।

                 इसी तरह मौके बेमौके छोटी मोटी मदद करके वेदिका मां को खुशी देती रहती थी। उसकी देखा-देखी छोटी बहनें भी थोड़ा बहुत करने लगी थी। इसी तरह मां की छोटी मोटी इच्छा पूरी हो जाती थी। ससुराल में रहकर भी बेटियों को मायका बहुत याद आता है। आखिर बाबुल का घर है। बाबुल का घर एक सपनीली दुनिया होती है जिसमें बेटियां अपने बचपन के और जवानी के अल्हड़ दिन गुजारे होते हैं 

आज वेदिका को मां बहुत याद आ रही है । क्योंकि अब वो इस दुनिया में नहीं है।आज की सालों बाद उसे फिर बाबुल की ड्योढ़ी पर आने का मौका मिला है। भतीजे की शादी है। पुराने घर जाकर वेदिका घर का एक-एक कोना निहारने में लगी है । यहां मां बैठती थी यहां खाना खाती थी यहां सोती थी ।

मां के पलंग के पास बैठकर वेदिका मां की यादों में खो गई सोंचते सोचते उसकी आंखें भर आईं , क्यों एक बेटी अपने बाबुल का घर भूल नहीं पाती है । ताउम्र एक बेटी के मन में अपने बाबुल का घर और उसकी छवि बनी रहती है।और जब भी कभी जाना होता है तो अपार सुख का अनुभव करती है । ऐसा ही होता है बाबुल का घर।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

24 अगस्त 

#बाबुल

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