यह कहानी कोई मनगढ़ंत या काल्पनिक नहीं बल्कि सच्ची घटना पर आधारित है ।कहानी की संवेदनशीलता को देखते हुए ,उनके नाम बदल दिये गये हैं ।
पुष्पा—! कब जाना है तुम्हें- मायका—? मैं उस और ही जा रहा हूं सोचा तुमसे पूछ लूं।
रजत मोटरसाइकिल पोछते हुए बोला ।
शादी के अभी दो महीने ही हुए और मैं चार बार अपने मायके हो आई हूं। इतनी जल्दी-जल्दी जाना मुझे अच्छा नहीं लगता—।
पुष्पा मुंह बनाते हुए बोली।
“अरे नहीं- नहीं ठीक –है तुम्हारी मर्जी, वो तो आज सुबह मां ,तुमको तुम्हारे घर से AC लाने के लिए बोल रही थी तो, इसलिए– मैंने तुमसे पूछ लिया बाकी तुम्हारी मर्जी।
आप लोग समझते क्यों– नहीं। मेरे अलावा तीन बहनें और भी हैं ब्याहने को —-! पिताजी की “जिम्मेदारी का एहसास है –मुझे।
उनको जितना देना था उन्होंने अपनी औकात से ज्यादा दे दिया और “मैं –हर 15 दिन पर जाकर उनसे डिमांड करूं नहीं- नहीं मुझसे नहीं हो पाएगा —!पुष्पा की बात सुनकर, रजत अंदर से गुस्सा हो उठा ,पर बिना कुछ बोले वहां से मुंह बनाकर चल पड़ा।
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रजत के चेहरे के भाव को पुष्पा ने भाप लिया । चार बहनें होने के बावजूद भी, सरकारी नौकरी वाले से मेरी शादी की गई और अब मैं नई-नई डिमांड के साथ मायके पहुंच जाऊं नहीं –नहीं इसके लिए तो मैं बिल्कुल भी नहीं जाऊंगी चाहे जो मर्जी हो जाए।
पुष्पा अभी इस बात को सोच- सोच के व्याकुल हो रही थी कि तभी——
“अरे पुष्पा–! तू अभी तक गई नहीं बेटा—! देख ना “गर्मी भी कितनी हो रही है “। तेरे पिताजी AC क्या ठंड में देंगे—? जा– बेटा जा मांग— आ!
सासू मां “सांभा देवी की बात सुनकर पुष्पा दंग रह गई मन ही मन घबराने भी लगी कि, मैं अगर इनको ना बोलूंगी तो पता नहीं इनका क्या रिएक्शन होगा।
वो मां—!मेरी तबीयत आज कुछ ठीक नहीं है फिर कभी चली जाऊंगी ! सांभा देवी का भयानक चेहरा देख बेचारी पुष्पा को ना कहने की हिम्मत नहीं हुई। एक आंख दबाते हुए सांभा देवी बोली क्यों अभी तक तो भली- चंगी थी और अचानक– ?
ठीक है–।कल सुबह-सुबह ही रजत के साथ चली जइयो वह ऑफिस जाते-जाते तुझे वहां छोड़ जाएगा समझी—?
जी—।
सुबह न चाहते हुए भी पुष्पा को रजत के साथ जाना पड़ा रजत पुष्पा को मायका छोड़ वो ऑफिस के लिए निकल गया बेटी को देख, मा -बाप बहुत खुश हुए तथा पुष्पा की बहन रेनू खुशी से बोल पड़ी दीदी—!” जीजू कितने अच्छे हैं ना! आपको मायका खुद ही छोड़ जाते हैं !”काश हम सब को भी” जीजू जैसा ही पति मिले” तो हमारी किस्मत चमक जाएगी।
बहन की बात सुनकर पुष्पा मुस्कुरा कर रह गई। पिता से डिमांड का कोई बात किये बिना ही, वह शाम को ही ऑफिस से आते वक्त रजत के साथ ससुराल आ गई ।
क्या हुआ बेटा—? खाली हाथ—? AC कहां है –?
मां — पापा ने बोला कि अभी-अभी तेरी शादी में इतना खर्च हुआ अगले साल गर्मी के आते ही तुझे दिला दूंगा ।”डरी सहमी “पुष्पा ने हिम्मत जूटाकर, एक ही सांस में कह दिया।
इतना सुनते ही सांभा देवी गुस्से से आग बबूला हो गई आज पहली बार रजत के सामने ही पुष्पा के बाल को पकड़ के खींचते हुए बोली अच्छा–वो AC नहीं देंगे–? पुष्पा पिता की “जिम्मेदारी और अपनी मजबूरी “को देखते हुए चुपचाप दर्द सह गई।
मम्मी– मुझे तो लगता है कि इसने अपने पिताजी से कुछ बोला ही नहीं होगा अगर बोलती तो वो मुझसे इस बारे में जरूर बात करते। रजत मां को भरकाते हुए बोला।
अच्छा —तो ये बात है–इसने
वहां अपना ‘मुंह ही नहीं खोला होगा –तभी मैं बोलूं कि इसके बापने तुझसे इस बारे में बात क्यों नहीं की–? सांभा देवी अपनी गोल-गोल आंखें घूमाते हुए बोली।
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अब पुष्पा को प्रताड़ित करने में इन लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वो दिनभर काम करती , और बदले में ‘एक टाइम का खाना’ अब रोज की कहानी हो गई।
जा— जब तू ,अपने बाप से मुंह नहीं खोल सकती तो, तुझे ये सब सहना ही पड़ेगा–।” रजत भी अब पुष्पा को “मारने- पीटने लग गया ।धीरे-धीरे 6 महीने गुजर गए।
पुष्पा अब काफी कमजोर हो गई , शरीर जैसे कंकाल का हो रखा हो।
आज सुबह से उसकी तबीयत बहुत खराब थी उल्टियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ।
बड़ी हिम्मत कर के पुष्पा ने अपने पति रजत से कहा–
सुनिए –!मुझे मेरे घर जाना है। एक बार मां पापा से मिलने की इच्छा हो रही है पुष्पा एक लंबी गहरी सांस छोड़ते हुए बोली। अच्छा वहां जाकर हमारी शिकायत करोगी–? रजत पान चबाते हुए बोला ।
अरे नहीं नहीं –!मैं बस दवा लेकर आ जाऊंगी लगता है “मैं पेट से हूं! “
हां- हां जा –जाकर –दिखा आ ! वैसे भी मैं तो तुम्हें दिखाने वाला नहीं अगर बच्चा -वच्चा रह गया हो, तो इसे भी जाकर गिरवा लेना। हमें नहीं चाहिए कोई बच्चा-वच्चा एक तुम ही हमारे लिए बोझ बन बैठी हो।
डर से हां में गर्दन हिला, जैसे वह आज रजत की हर बात को मानने के लिए तैयार थी– क्योंकि– उसे बस एक आखरी बार अपने “बाबुल के घर “जाना था उसकी हिम्मत ,मनोबल अब टूट चुकी थी।
ऑफिस जाते ही रजत, पुष्पा को उसके मायके के गेट तक छोड़, ऑफिस के लिए निकल पड़ा ।
अरे–” पुष्पा बेटा” ये क्या हाल बना रखा है –?और कई महीने से तू आ नहीं रही थी क्या हुआ बच्चा —?
पिता की हमदर्दी और प्यार भरी बातें सुनते ही पुष्पा फुट-फुट के रोते हुए साड़ी घटना उन्हें सुना दी बेटी की बेबसी और हालत को देखकर माता-पिता के आंखों से आंसू निकल पड़े ।बेटा– तेरी जान और खुशी से बढ़कर हमारे लिए कुछ नहीं था–। तू मुझे एक बार बता देती मैं– तुझे कहीं से भी AC का प्रबंध कर तेरे ससुराल वालों को दे देता, तो आज तू इस हालत में नहीं होती–। नहीं पिताजी—! आप एक डिमांड पूरा करते तो वो अगली बार दूसरी डिमांड जड़ देते ऐसे तो उनकी दहेज की लालच बढ़ती चली जाती ,इसलिए—- मैंने आपको कोई बात नहीं बताई!।
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तेरे शरीर का क्या हाल हो रखा है पिताजी की आंखें नम हो गई खबरदार –।अब तू उन दरिंदों के पास कभी गई तो ।
ये जख्म कैसा –?कहते हुए पुष्पा की मां ने ,पुष्पा के शरीर से जब कपड़े हटाए तो वह अचंभित रह गई हर जगह सिर्फ चोट के ही निशान दिख रहे थे ।
माइका आए हुए अभी 5 ही दिन हुए थे कि एक सुबह — बाबुल के आंगन “में ही पुष्पा सदा के लिए गहरी नींद में सो गई।
यह बात जब पुष्पा के ससुराल वालों को पता चला तब, उसके अंतिम दर्शन तथा मुखाग्नि देने रजत पान चाबाते हुए वहां पहुंचा तब घर तथा आज परोस की सारी औरतें झाड़ू निकालकर रजत को मारने दौड़ी। इधर पुष्पा के पिताजी ने दहेज को लेकर किया गया जुल्म और मारपीट से हुई मृत्यु का रिपोर्ट दर्ज करवा रजत और उसकी मां को पुलिस के हवाले करवा दिया ।
महिला पुलिस के डर से सांभा देवी ने अपना जुर्म कबूल किया इस तरह जो दोनों मां बेटे को जेल हो गई ।
मां -बाप ,बेटी को वापस तो नहीं ला सके पर दोनों को सजा दिलवाकर उन्हें कहीं ना कहीं ये संतुष्टि मिली कि पुष्पा जहां भी होगी जरूर खुश होगी ।
दोस्तों यह दहेज की प्रथा अभी भी कुछ राज्यों में दीमक की तरह फैली हुई है । कितनी ही बेटियां दहेज प्रताड़ना से ग्रसित हैं । कभी उन्हें जला दिया जाता है तो कभी आपस में तलाक की नौबत आ जाती है । समाज की ये कुप्रथा जो “अभिशाप बन चुकी है उसे हम पूरी तरह से खत्म नहीं कर पा रहे शायद इसके जिम्मेदार कहीं ना कहीं हम खुद हैं ।
चाहे तो हम इसे धीरे-धीरे खत्म करने का प्रयास कर सकते हैं ।शुरुआत अपने बच्चों से ही कर ले—जैसे — बच्चों की शादी सिर्फ लड़की के गुण पर करे यह मत बोले कि भाई हम तो कुछ नहीं लेंगे जो देना है आप अपनी बेटी को दे दे—- तो भाई ये भी एक तरह से दहेज का ही, रूप है।
इस लड़ाई में सबसे पहले हमें ही अपने आप को सुधारने की जरूरत है तभी हम, आदर्शवादी समाज की स्थापना कर सकते हैं।
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धन्यवाद।
#बाबुल
मनीषा सिंह
Bakwaas story… Prejudiced story…