अंजलि आज बेहद खुश थी। आज वो काफ़ी महीनों बाद अपने मायके जा रही थी। उसका पति राजेश एक प्राईवेट
लिमिटेड में काम करता था इसलिए छुट्टी कम ही मिलती थी।
जब भी अंजलि राजेश को कुछ दिनों के लिए अपने घर जाने की बात करती वो कहता कि, “ यहां कौन संभालेगा फिर
तुम्हारे पीछे, सीमा का कॉलेज है, मां की तबियत सही नहीं रहती, ऐसे में पापा का परहेजी खाना भी बनाना होता है
और फिर मेरा ऑफिस, पूरा घर अस्त व्यस्त हो जाएगा, अभी कुछ दिन रुको, फिर चली जाना”
अंजलि सोचती रह जाती कि ये चीजें तो कभी खत्म नहीं होंगी तो कुछ दिन क्या और ज्यादा दिन क्या, सीमा तो यूं
भी कॉलेज से आने के बाद मोबाइल में ही लगी रहती है चाहे तो थोड़े दिन आसानी से घर संभाल सकती है, अंजलि के
सास ससुर हैं तो उसके भी तो मम्मी पापा हैं, क्या कुछ दिन वो उन लोगों का ध्यान नहीं रख सकती..?… अंजलि के
भाई की भी तो शादी हुई थी तब भी अंजलि बराबर अपनी भाभी के साथ घर का ध्यान रखती थी और आज उसके इसी
इस कहानी को भी पढ़ें:
व्यवहार की वजह से उसकी भाभी अंजलि की शादी के बाद भी उसके मम्मी पापा का खूब ध्यान रखती है।
अंजलि जब भी मायके जाती है तब भी पूरी कोशिश करती है कि सिर्फ महारानी बनकर ना बैठी रहे बल्कि अपनी भाभी
के साथ बराबर घर के कामों में हाथ बटाए।
यहां भी उस पर कोई कोड़े नहीं बरसाए जा रहे पर उसकी शादी के बाद तो बस वो चौबीस घंटे गृहकार्यों में ही उलझ
कर रह गई है, अगर उसके मायके की तरह यहां भी परिवार के सदस्य उसके मन की पीड़ा समझते, उसे सिर्फ़
कामवाली नहीं बल्कि बहू मानते, उसके प्रति संवेदनशील होते तो वो हंसी खुशी सारे काम करती जाती।
पर बात बात पर टोकना, ज्यादातर हर काम में मीन मेख निकालना, उसकी मेहनत को अनदेखा करना ये सब बातें
उसे भीतर से तोड़ कर रख देती थीं जबकि उसके घर में कैसे उसके मम्मी पापा उसकी भाभी की सभी के समक्ष भूरी
भूरी प्रशंसा करते हैं और उसके मम्मी पापा ना सिर्फ़ अच्छे सास ससुर थे बल्कि वे माता पिता भी बहुत प्यार वाले थे।
इस कहानी को भी पढ़ें:
उन्होंने सदा ही अंजलि को जीवन में सकारात्मकता का ज्ञान दिया था, आशावादी रहने की शिक्षा दी थी, कभी अंजलि
की मम्मी ने उसके ससुराल की बातों में दखल नहीं दिया था और ना ही उल्टी सीधी शिक्षा देती रहतीं थीं।
इन्हीं सब की वजह से अंजलि आज ससुराल में निभा पा रही थी बस मलाल था तो खुद को अनदेखा किए जाने का,
यदि उचित प्रेम और इज्ज़त उसे भी मिलता तो वो खुद को सबसे खुशनसीब समझती। उसे किसी से कोई शिकायत ना
रहती चाहे कितना भी कार्यभार उसे सौंप दिया जाता पर शायद उसने हालातों से समझौता कर लिया था और खुद में ही
व्यस्त रहने का नया गुण अपना लिया था।
इन्हीं सबके बीच एक दिन राजेश ने उससे कहा कि वो आने वाले हफ्ते में वीकेंड के साथ सोम मंगल की भी छुट्टी पड़
रही है तो वो अपने घर जाना चाह रही है तो दो तीन दिन के लिए चली जाए।
इस कहानी को भी पढ़ें:
कमी अपनी परवरिश में – प्राची_अग्रवाल : Moral Stories in Hindi
“एक हफ्ता भी नहीं पर चलो कोई बात नहीं तीन दिन ही सही, कितना वक्त भी तो गुजर गया है मम्मी पापा से
मिले, वीडियो कॉल जितनी चाहें हों मम्मी पापा के सीने से लगने का सुख सर्वोपरी ही होता है” यही सब सोचते सोचते
उसने जल्दी से तीन चार जोड़ी कपड़े एक बैग में डाले और निकलने को हुई कि तभी उसकी सास ने उससे कहा कि,
“अंजलि, ऐसा करो कि तुम अपना प्रोग्राम अभी टाल दो, सीमा अपनी सहेलियों के साथ गोवा के टूर पर जा रही है,
तुम्हारा मायका तो इसी शहर में है, कभी भी जा सकती हो, सीमा तो अभी सहेलियों के साथ घूम ले, यही तो घूमने
फिरने के दिन हैं,तुम बाद में चली जाना।।” इसी फरमान के साथ सासू मां उसे ये सुना कर वहां से निकल गईं।
उनके वहां से जाते ही अंजलि की रुलाई फूट पड़ी।
“अपनी बेटी की हर खुशी उन्हें समझ आ रही है, पर बहु की छोटी सी इच्छा भी इस बुरी तरह से कदर कुचल देते हैं ये
लोग। शादी के बाद क्या मैंने बाबुल का घर सदा के छोड़ दिया है ? क्या मेरे मम्मी पापा को मेरी याद नहीं आती होगी,
इस कहानी को भी पढ़ें:
मुझे भी शादी मे जाना है – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi
क्या अब अपने मां बाप से मिलने के लिए भी मुझे तरसना होगा?”
अंजलि को अपने मम्मी पापा की याद सताने लगी, उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि तभी राजेश कमरे में आया।
“अरे, सीमा का टूर कैंसल हो गया है, ऐसा करो आज रात कुछ अच्छा बना लो, चार दिन कि छुट्टी भी है तो ऐसा
करते हैं कि सीमा, मम्मी पापा सभी को साथ लेकर आस पास कहीं घूम आते हैं, मम्मी पापा का भी दिल चाह रहा
होगा ना”
अंजलि ध्यान से उसे देखने लगी।
“क्या इन लोगों के लिए सचमुच मेरी कोई वैल्यू नहीं है, चित भी मेरी पट भी मेरी, इस घर की बेटी घूमने जा रही है
तो भी मैं घर में रहूं और अब वो नहीं जा रही तब मैं भी कहीं ना जाऊं और मैं कहीं शॉपिंग तफरी को तो नहीं जा रही
थी, अपने मम्मी पापा से मिलने जा रही थी, ऐसे तो मैं यहां घुट जाऊंगी” अंजलि सोच चुकी थी कि उसे क्या
करना है।
इस कहानी को भी पढ़ें:
“राजेश, बहुत अच्छी बात है आप अपने मम्मी पापा के बारे में सोच रहें हैं, पर यही सोच मुझमें भी है, मुझे भी उन
लोगों की बहुत याद आ रही है तो आप सब जहां चाहें घूम आएं, एंजॉय करें, मैं भी अपने मम्मी पापा से मिलने जा
रही हूं, मेरा उनके प्रति भी कोई फर्ज़ है और चिंता मत कीजिए, आप लोगों के लौटने पर मैं भी लौट आऊंगी ताकि
छुट्टियां मना कर आने के बाद आपको घर साफ मिले और खाना बना हुआ हो, जिसके लिए मुझे लाया गया है और
राजेश हो सके तो कभी मेरे एहसासों को भी समझने की कोशिश कीजिए।“
इतना कहकर अंजलि बैग उठा कर कमरे से निकल गई और राजेश उसे अजीब सी निगाहों से देखता रहा।
भगवती
( मौलिक, अप्रकाशित और अप्रसारित, स्वरचित रचना )
#बाबुल