श्रवण कुमार – शुभ्रा बैनर्जी   : Moral Stories in Hindi

इस बार भी नीरज ने तनख्वाह से गिने चुने पैसे ही मां के हांथ में दिए थे।सरिता जी का कब से मन हो रहा था हरिद्वार जाने का।साल भर पहले ही कहा था अपने पति से”सुनिए जी,अब ज्यादा दिन हाथ-पैर चल नहीं पाएंगे।बुढ़ापा बढ़ जाने से पहले चलो गंगा आरती देख पाएं।यह आस लिए ही कहीं सांस ना रुक जाए।”

राघव जी ने पत्नी को दिलासा दिया था”अरी भाग्यवान,पेंशन बचाकर रख रहा हूं कई महीनों से।थोड़े और पैसे जमा हो जाएं ,तब चलें।नीरज की तनख्वाह से भी तो कुछ बच नहीं पाता।घर का लोन ही कट जाता है।ऊपर से बच्चा भी अब बड़ा हो रहा है।बहू फरमाईश नहीं करती ज्यादा,शुक्र है।उसके ऊपर और बोझ नहीं डालना चाहता मैं।इतने साल सबर किया,कुछ महीने और कर लो।हम जरूर जाएंगे हरिद्वार।”

सरिता जी भी भावुक होकर बोलीं”सच

कह रहें हैं जी।हर महीने अपनी तनख्वाह मेरे हांथ में ही रखता है अपना बेटा।हर महीने सोचती हूं ,कुछ बचा लूंगी।हाय रे मंहगाई,कहां कुछ बच पाता है।”राघव जी ने थोड़े कड़क स्वर में कहा”सरिता, बार-बार नीरज और बहू के सामने हरिद्वार चलने की बात मत करना।हमारी हर जरूरत समय रहते पूरी करतें हैं दोनों।इससे ज्यादा भार देना उचित नहीं।बेटे -बहू को भी नहीं लगना चाहिए कि हम खुश नहीं हैं।तुम रोज-रोज गंगा आरती के वीडियो देखना बंद करो।प्रभु का बुलावा आएगा तो,हम जरूर पहुंच जाएंगे।”

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सरिता जी को अपने पति की बातें हमेशा ग़लत ही लगती थी,पर आज सच ही लगी।पिता वास्तव में मां से ज्यादा समझदार होतें हैं।अपनी आकांक्षाओं को नियंत्रित बहुत अच्छी तरह से करना आता है इन्हें।ख़ुद मुखिया रह चुकें हैं ना घर के,इसीलिए बेटे की परेशानी समझ पातें हैं।तभी नीरज कमरे के अंदर आया।सरिता जी ने अपने मनोभावों को काबू किया और पूछा”आज तो बहुत देर हो गई रे,तुझे आने में!बहू तब से परेशान हो रही थी।फोन भी नहीं किया उसे।”नीरज ने हंसकर कहा”मां एक जरूरी काम से गया था ना,इसलिए देर हुई।रिचा को सरप्राइज देना चाहता था,सो नहीं बताया।”

सरिता जी ने कहा”ये अच्छी बात नहीं है बेटा।अपनी पत्नी से कुछ ना छिपाया कर।तेरी अर्धांगिनी है वह।ईश्वर की बड़ी कृपा है तुझ पर कि ऐसी पत्नी मिली।देख रहा है ना अड़ोस-पड़ोस में,जीना दूभर कर रखा है बहुओं ने अपने सास-ससुर और पति का।सुन ना नीरज,एक बात कहनी थी तुझसे।”

“हां मां बोलो ना,इतना संकोच करने की क्या जरूरत है?अपने बेटे से बात करोगी तो पूछोगी क्यों?”नीरज की बात खत्म होते ही राघव जी कमरे में आ गए।आते ही पत्नी की ओर देखकर इशारों से चेताया कि कहीं फिर से हरिद्वार जाने की बात न छेड़ दे।

सरिता जी ने कहा”नीरज,रिचा बता रही थी कि उसकी मां का आपरेशन हुआ है नागपुर में।बहू के भाई-भाभी गएं हैं साथ।हालत शायद अच्छी नहीं समधन की।रिचा का भी तो मन होता होगा ना।जा ले जा उसे।अगर छोटू को रख पाएगा हमारे साथ ,तो छोड़कर जा।बेटी देखने जाएगी तो मां का कलेजा ठंडा हो जाएगा।अपनी तरफ से साले साहब को कुछ पैसे भी दे देना अगर हो सके तो।”नीरज दंग रह गया। खींचतान कर खुद ही अब भी

गृहस्थी बड़े अच्छे से चलाती है मां।जानतीं हैं‌ कि ज्यादा जमा पूंजी नहीं है।कैसे ले जाऊं रिचा को नागपुर।इसी उधेड़बुन में था कि बाबूजी ने उसके हांथ में कुछ नोट रखते हुए कहा”जैसे हम तेरी जिम्मेदारी हैं वैसे ही समधन भी तेरी पूरी नहीं पर आधी जिम्मेदारी तो है ना।रिचा का भी तो मन करेगा ना,अपनी मां के लिए कुछ करे।तू चुपचाप रिचा को लेकर नागपुर निकल।तुम दोनों को देखकर बहू के भाई-भाभी को भी सहारा मिलेगा।”

नीरज ने पूछना चाहा”पर इतने सारे पैसे कहां से आए आपके पास।आपने जरूर पेंशन से जोड़कर रखें हैं।इन पैसों को मैं कैसे लूं।”

राघव जी ने जोर से डांटा नीरज को और बहू के साथ नागपुर भेजा।पति की दूरदर्शिता देखकर सरिता मन ही मन उन्हें प्रणाम कर रही थी।कैसे बिना मांगे इन्हें सब पता चल जाता है?कि पत्नी को क्या चाहिए,या बेटा को।

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राघव जी से सरिता जी ने अब हरिद्वार जाने की बात नहीं की।पैसे तो अब बचे नहीं।अब जब संजोग होगा तभी जाएंगे।

नीरज लगभग दस दिन नागपुर में रुका।सास की अस्पताल से छुट्टी करवाकर उन्हें घर पहुंचा कर ही रिचा और नीरज घर आए।रिचा सीधे जाकर राघव जी को प्रणाम किया और बोली”जिस घर में आप जैसे सास-ससुर हैं,उस घर की बहू बहुत भाग्यशाली हैं।आप दोनों के कारण ही मैं अपनी मां को देख सकी।भाईयों की नीरज ने मदद करके उन पर बहुत बड़ा अहसान किया है।हम सभी आप दोनों के कृतज्ञ रहेंगे मां -बाबूजी।”

कुछ दिनों के बाद ही पोस्ट से कुछ पार्सल आया।राघव जी के नाम से।राघव‌ जी ने सरिता से चश्मा लाने को कहा।चश्मा लगाकर पार्सल खोलकर क्या देखतें हैं वे, हरिद्वार की दो टिकटें।

राघव जी हतप्रभ थे, चिल्लाने लगे”अरे सरिता,तुम्हारे मायके वालों‌ ने टिकट भेजा है क्या हरिद्वार का।मैं तो नहीं खरीदा।”सरिता जी भी दौड़ती आईं और कहा”हे भगवान‌ ये टिकट किसने भेजे हैं?कहीं किसी और के नाम के तो नहीं।”

तभी नीरज अंदर आकर बोला”तो टिकट मिल ही गए आप लोगों को हरिद्वार के।ये टिकिट भगवान जी ने ही भेजे होंगे मां।तुमने इतनी वीडियो देखी है गंगा आरती की,कि प्रभु भी वीडियो से तुम्हें देख लिए।अब देखो बुलावा भेज दिया।”

सरिता और राघव जी दोनों चहक रहें थें हरिद्वार का टिकट पाकर,पर शंका हो रही थी कि कौन भेजा होगा। तभी रिचा (बहू)ने मां को गले लगाते हुए कहा”ये टिकिट आपके बेटे ने करवाया है।आप लोगों की कब से इच्छा थी।”राघव जी ने नीरज की तरफ देखकर कहा”वहां रहने खाने का खर्च तो मंहगा होगा बेटा।हम अगले साल चले जातें।”

नीरज ने कहा”पापा,हम सब जा रहें हैं।रहने के लिए अच्छे से होटल का भी इंतजाम कर लिया है।संध्या आरती की व्यवस्था भी पहले कर लूंगा।आप लोग आराम से चार-पांच जितने दिन मन हो रहना।मैं श्रवण कुमार की तरह इतना लायक बेटा तो नहीं हूं कि कांवर में बिठाकर आप दोनों को तीर्थ करवाऊं,पर इस नालायक ने आप सबसे छिपाकर इतना तो बचा लिया है कि हम हरिद्वार जरूर जा पाएंगे।आप लोगों की बरसों की इच्छा के बारे में पता था मुझे।मैंने सोचा रिचा भी मेरे साथ घूम आएगी।आप लोगों के पुण्य का थोड़ा फल हमें भी मिल जाएगा,इसी बहाने।

बेटे ने ऐसी बात की कि मां-बाप की आंखों से आंसू निकल पड़े।

शुभ्रा बैनर्जी 

उसने बात ही ऐसी की कि मां बाप के आंसू निकल आए

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