दिव्या और शिल्पी बचपन की सहेलियाँ थीं।दोनों एक ही स्कूल और एक ही क्लास में पढ़ती थीं।पढ़ाई के साथ-साथ दोनों स्कूल की खेल प्रतियोगिता और संगीत प्रतियोगिता में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थीं।दिव्या तेज स्वभाव की थी।उसे गलत बात बर्दाश्त नहीं होती थी।विशेषकर उसकी सहेली को कोई कुछ कह दे
तो वह उससे झगड़ा कर लेती थी जबकि शिल्पी शांत स्वभाव की थी।वह दिव्या को भी समझाती रहती कि गुस्सा करने से क्या फ़ायदा..एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया कर।तब दिव्या कहती,” बिल्कुल नहीं..गलत बात का विरोध तो करना चाहिए…अन्याय क्यों सहे।विपरीत स्वभाव होने के बावज़ूद दोनों की पक्की दोस्ती थी।
बारहवीं कक्षा पास करने के बाद दोनों ने अपने शहर के एक काॅमर्स काॅलेज में एडमिशन ले लिया।लेकिन अफ़सोस! सेकेंड ईयर के बीच में ही शिल्पी के पिता ने अपने जैसे खाते-पीते परिवार के कमाऊ पूत के साथ उसका विवाह तय कर दिया।न चाहते हुए भी उसे अपने माता-पिता की खुशी के लिये विवाह करना पड़ा।
विवाह के महीने भर तक तो सब ठीक रहा लेकिन फिर शिल्पा को पता चला कि उसके पति नरेश की नौकरी छूट गई है।तब उसने कहा कि कोई बात नहीं है..आप दूसरी नौकरी ढूंढ लीजिये।नरेश खीझते हुए बोला,” आजकल नौकरी मिलती कहाँ है…एक बिजनेस करने की सोच रहा हूँ..तुम अपने पिता से पाँच लाख रुपये ले
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आओ तो मेरा काम हो सकता है।” सुनकर वह चकित रह गई।उसने कहा,” मेरी शादी में तो पापा पहले ही बहुत रुपया खर्च कर चुके हैं…अब वो इतना रुपया अब कहाँ से लाएँगे…आप अपने पिता से बात कीजिये ना, वो कोई न कोई इंतज़ाम अवश्य कर देंगे।” सुनकर नरेश को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उस वक्त वो शांत रह गया।
उस दिन के बाद से नरेश शिल्पी से खिंचा-खिंचा रहने लगा।बात-बात पर उस पर चिल्लाता..कभी-कभी हाथ भी उठा देता।कल तक जो सास-ससुर उसे बहू-बहू कहते नहीं थकते थे वो अब उससे सीधे मुँह बात नहीं करते…।उन्होंने घर की बाई को हमेशा के लिये छुट्टी देकर उसपर ही रसोई, बरतन और साफ़-सफ़ाई की ज़िम्मेदारी लाद दी।वे अक्सर शिल्पी को प्रताड़ित करते और नरेश के दूसरे ब्याह की धमकी देकर उसे मानसिक आहत पहुँचाते।
शिल्पी का भाई बीमार था तो वह सास से मायके जाने की विनती करने लगी।उसकी सास ने सोचा, जाएगी तो रुपये भी लाएगी।मायके आने पर उसने दिव्या को सारी बातें बताई।शिल्पी के शरीर पर चोटों के निशान देखकर दिव्या का खून खौल उठा।वह शिल्पी पर गुस्सा हुई,” तूने मुझे पहले क्यों नहीं बताया…इतना कुछ क्यों सहा..।”
” मैं बहुत डर गई थी दिव्या..।” वह रोने लगी।तब दिव्या ने उसे चुप कराया और कान में धीरे-से कुछ कहा।
” लेकिन…।” शिल्पी अभी भी डरी हुई थी।
” डर मत…अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना सीख..।उसके कंधे पर हाथ रखकर दिव्या बोली।
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शिल्पी खाली हाथ ससुराल पहुँची तो सास ने उसे बहुत गालियाँ दी…नरेश ने तो अपशब्दों की बौछार के साथ अपने हाथों का भी इस्तेमाल भी किया।अगले दिन सुबह ही माँ-बेटे ने उसे घर से बाहर कर दिया।
रोती हुई शिल्पी अपने घर पहुँची।बेटी की हालत देखकर उसके माता-पिता की आँखों से आँसू ही नहीं थम रहे थे।दिव्या काॅलेज़ में थी, खबर मिलते ही दौड़ी आई तो उसके गले से लगकर शिल्पी फूट-फूटकर रोने लगी।दिव्या ने उसके आँसू पोंछे और हाथ पकड़कर बोली,” चल थाने..।”
” नहीं- नहीं बेटी..थाने-वाने नहीं…हमारी बहुत बदनामी होगी।” शिल्पी के माता-पिता डर गये।तब शिल्पी बोली,” माँ..ज़ुल्म सहना भी तो अपराध है।याद है…छोटी बुआ के साथ..मेरे मरने के बाद ‘कैंडिल मार्च’ करना चाहती हो..।” उसने बात ही ऐसी की,माँ-बाप के आँसू छलक आए। बोले,” जा बेटी…विजयी भवः।” कहकर उन्होंने
दोनों को आशीर्वाद देकर विदा किया।थाने में जाकर शिल्पी ने नरेश और उसकी माँ के खिलाफ़ दहेज़ माँगने तथा उसके साथ मारपीट करने की रिपोर्ट दर्ज़ कराई।साथ ही, मोबाइल में रिकार्ड विडियो(दिव्या के कहने पर) भी पुलिस को दिखाया।पुलिस ने तुरंत शिल्पी के ससुराल वालों को अरेस्ट किया।थाने में बंद होकर भी नरेश शिल्पी को धमकाने से बाज नहीं आया था।
दिव्या की भाग-दौड़ देखकर उसके माता-पिता चिंतित हो उठे।उन्होंने दिव्या से कहा,” देख बेटी..अब आगे का शिल्पी खुद देख लेगी।तू उसके लिये अपनी पढ़ाई क्यों डिस्टर्ब कर रही है..कोर्ट-कचहरी से तो तेरी बदनामी होगी…।”
तब दिव्या अपनी माँ के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर बोली,” माँ..आपको अपनी बेटी की चिंता है और शिल्पी की ज़िंदगी की नहीं।जब तक हम दूसरे की बहन-बेटी को भी अपना समझकर उसके साथ खड़े नहीं होंगे तब तक उनके साथ अत्याचार होता ही रहेगा।ज़रा सोचो माँ..अगर शिल्पी की जगह आपकी बेटी होती तो..
बीच राह में शिल्पी मेरा साथ छोड़ देती तो..।” उसने बात ही ऐसी की, माँ-बाप के आँसू छलक आए।माँ रुँधे हुए गले से बोली,” हमें माफ़ करना बेटी..थोड़ी देर के लिये हम स्वार्थी हो गये परंतु अब हमारी आँखें खुल गई हैं।तू अपना फ़र्ज़ निभा..हमारा आशीर्वाद तुम दोनों के साथ है।”
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नरेश पर मुकदमा चला, इस बीच दिव्या- शिल्पी को काफ़ी परेशानियों का सामना भी करना पड़ा लेकिन उन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी।अंत में उनकी जीत हुई..शिल्पी को न्याय मिला और उसके ससुराल वालों को सज़ा हुई।इसी बीच शिल्पी ने फिर से काॅलेज़ जाना शुरु कर दिया।नरेश अब कमज़ोर पड़ चुका था, इसलिए जब शिल्पी ने तलाक की बात कही तो उसने चुपचाप डिवोर्स पेपर पर साइन कर दिया।
बीकाॅम की डिग्री मिलते ही दिव्या और शिल्पी को अलग-अलग फ़र्म में नौकरी मिल गई।साल भर बाद दिव्या ने अपने ही सहकर्मी से विवाह कर लिया और शिल्पी ने अपने माता-पिता और भाई की ज़िम्मेदारी संभाल ली।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# उसने बात ही ऐसी की, माँ-बाप के आँसू छलक आए