बेटी का बचपन – दिक्षा दिपेश बागदरे   : Moral Stories in Hindi

विशाल और रिद्धिमा दोनों ही नौकरी पेशा थे। उन दोनों की 5 साल की एक प्यारी सी बेटी थी मानवी। तीनों ही एक खुशहाल जिंदगी जी रहे थे। 

सविता जी और महेश जी ये है रिद्धिमा के माता-पिता। मानवी के प्यारे नानू-नानी। 

विशाल जब 15 बरस के थे एक कार एक्सीडेंट में उनके माता-पिता गुजर गए थे।

जब से मानवी हुई तब से नानू नानी साल में दो-तीन बार तो एक- दो महिनों के लिए मानवी के पास हैदराबाद आते ही रहते थे। 

रिद्धिमा अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। इसलिए भी वह चाहती थी कि अब वृद्धावस्था में उसके माता-पिता अकेले भोपाल में न रहकर उसके पास हैदराबाद में ही रहे। 

विशाल भी रिद्धिमा के मां पिता को अपने माता-पिता के समान ही आदर और सम्मान देते थे।

विशाल भी चाहते थे कि मानवी को दादा-दादी ना सही नाना-नानी का सानिध्य तो मिले। 

रिद्धिमा के माता-पिता को लगता था की कभी कभार आना-जाना या कुछ दिन रहना तो ठीक है मगर बेटी के ससुराल में हमेशा रहना यह उचित नहीं। 

इस कहानी को भी पढ़ें:

बुआ भी बहन से कम नहीं भैया… – अमिता कुचया  : Moral Stories in Hindi

इसीलिए हर बार वे कोई ना कोई बहाना बनाकर वापस भोपाल लौट जाया करते थे। 

 जब से मानवी हुई सविता जी का मन मानवी के बिना नहीं लगता था। रिद्धिमा के नौकरी पेशा होने की वजह से वह भी चाहती थी कि सविता जी अब उसके पास ही रहे ताकि मानवी की देखभाल भी अच्छे से हो जाए। यूं तो घर में मानवी की देखभाल के लिए एक सहायिका रखी हुई थी। फिर भी वह चाहती थी की मानवी को नाना-नानी का प्यार और संस्कार भी मिले। 

वैसे तो सब कुछ ठीक ही चल रहा था। पिछले कुछ महीनो से रिद्धिमा की तबीयत कुछ ठीक नहीं चल रही थी। उसे रोज ही हल्का-हल्का बुखार रहने लगा था। कमजोरी भी बहुत महसूस हो रही थी। दो-तीन बार डॉक्टर को दिखाने और ट्रीटमेंट लेने के बाद भी वह पूरी तरह से स्वस्थ महसूस नहीं कर रही थी। 

अंततः विशाल और उसने तय किया की किसी स्पेशलिस्ट को दिखाया जाए और सारी आवश्यक जांचें करवाई जाएं।

डॉक्टर शर्मा जो उनके फैमिली फ्रेंड भी थे। उनके कहने पर रिद्धिमा और विशाल बॉम्बे हॉस्पिटल के सीनियर डॉक्टर वशिष्ठ का अपॉइंटमेंट लेकर उनसे मिलने पहुंचे। 

रिद्धिमा की पिछली सारी मेडिकल हिस्ट्री देखने के बाद डॉक्टर वशिष्ठ ने कुछ और जांचें लिखीं।

सभी जांचें होने के बाद जब रिपोर्ट्स आईं रिद्धिमा और विशाल डॉक्टर वशिष्ठ से मिलने गए।

डॉक्टर वशिष्ठ ने सभी जांचें देखकर गंभीरता से विशाल और रिद्धिमा से कहा आपको हिम्मत से काम लेना होगा, रिपोर्ट अच्छी नहीं है। “रिद्धिमा जी को ब्लड कैंसर है, वह भी लास्ट स्टेज पर।” जल्द से जल्द ट्रीटमेंट शुरू करना होगा। 

रिद्धिमा और विशाल के पैरों तले जमीन खसक गई। रिद्धिमा तो वहीं बेहोश हो गई। 

इस कहानी को भी पढ़ें:

“नवाब” – ललिता विम्मी : Moral Stories in Hindi

विशाल को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। एक तरफ रिद्धिमा जो उसका साथ छोड़कर जाने को खड़ी थी, एक तरफ मानवी जो अभी तक ठीक से बड़ी भी नहीं हुई। 

विशाल को अपना बचपन याद आने लगा था। हे ईश्वर मुझसे तो मेरे मां-बाबा आपने छिन लिए थे। क्या आप मेरी बेटी से उसकी मां भी छीन लोगे ??

विशाल ने खुद को संभालते हुए डॉक्टर वशिष्ठ से कहा- मैं रिद्धिमा का हर संभव इलाज करने के लिए तैयार हूं प्लीज आप जल्द से जल्द इसका ट्रीटमेंट शुरू कीजिए।

डॉक्टर वशिष्ठ बोले विशाल संभालो खुद को। अब बहुत देर हो चुकी है, अब कुछ नहीं हो सकता। जितना समय अब रिद्धिमा के पास बाकी है, उसे इलाज के साथ-साथ परिवार के प्यार और साथ की आवश्यकता है। बाकी जो भी संभव है वह प्रयास हम जरूर करेंगे। 

रिद्धिमा को होश आ चुका था। वह विशाल की ओर एकटक देखे जा रही थी और उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। विशाल तो उसकी और देखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा था। 

फिर भी जैसे तैसे खुद को संभालते हुए विशाल ने रिद्धिमा को कस कर गले लगाया। तुम चिंता मत करो  रिद्धिमा सब कुछ ठीक हो जाएगा।

जानते तो दोनों ही थे कि अब कुछ ठीक नहीं होने वाला है। 

दोनों जैसे ही घर लौटे। रिद्धिमा के मां-पिता बेचैनी से इंतजार कर रहे थे।  रिद्धिमा दौड़कर अपनी मां के गले लग गई और बहुत जोरों से रोने लगी। 

मां सब कुछ खत्म हो गया। कुछ नहीं बचा। 

महेश जी ने तुरंत विशाल की और देखा, विशाल ने बहुत मुश्किल से उन्हें बताया जो भी डॉक्टर वशिष्ठ ने कहा। 

महेश जी धम्म से सोफे पर गिर पड़े। तुरंत विशाल ने उन्हें संभाला। 

चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था। 

रिद्धिमा ने खुद को संभालते हुए बोलना शुरू किया मां-पापा मैं आपसे कुछ मांगना चाहती हूं। 

इस कहानी को भी पढ़ें:

एक प्रेम ऐसा भी…. – विनोद सिन्हा “सुदामा” : Moral Stories in Hindi

रूंधे गले से सविता जी और महेश जी दोनों ही एक साथ बोले, बोल बिटिया सब कुछ तो तेरा ही है… क्या चाहिए तुझे?

रिद्धिमा बोली मां-पापा आप कहते हैं ना की मानवी में आप लोगों को मेरा बचपन दिखाई देता है। तो “जी लीजिए दोबारा मेरा बचपन, मैं मानवी आपको सौंपती हूं।”

“मैं भले ही जा रही हूं मगर आपको एक बेटा भी दे रही हूं। विशाल प्लीज मां-पापा का ख्याल रखना।”

“रिद्धिमा ने बात ही ऐसी की, मां बाप के आंसू छलक आए”।

दोनों ने रिद्धिमा को कसकर गले लगा लिया। बिटिया तेरी इच्छा सर आंखों पर। 

महेश जी मन ही मन ईश्वर से बातें करने लगे- ” हे ईश्वर यह कैसा दिन दिखाया है ? एक बिटिया लेकर एक बिटिया दे रहे हो।”

क्या कोई चमत्कार नहीं हो सकता कि मेरी दोनों बेटियां मेरे साथ रहें। 

विशाल तो कुछ कहने की स्थिति में ही नहीं थे।

किसी के भी आंसू रोके नहीं रूक रहे थे।

तभी अचानक महेश जी उठ खड़े हुए। बोले सभी अपने आंसू पोंछ लो। जितना भी समय है रिद्धिमा के पास हम सब भोपाल जाकर बाकी का समय वही बिताएंगे, रिद्धिमा की बचपन की यादों के साथ। मानवी भी अब वही बड़ी होगी रिद्धिमा की तरह। 

विशाल का मन भी अब हैदराबाद से उठ चुका था। सभी तैयारियां कर अगले ही दिन वे सब भोपाल के लिए निकल पड़े। 

इस कहानी को भी पढ़ें:

तेरा सच =मेरा सच – देवेंद्र कुमार : Moral Stories in Hindi

दृश्य 2 महीने बाद का- “सुर्ख लाल जोड़े में सजी नई नवेली दुल्हन की तरह खूबसूरत सी रिद्धिमा चिर निंद्रा में लीन हो चुकी थी।”

उसके मुख पर एक असीम शांति झलक रही थी। वह एक अनंत यात्रा की और बढ़ चली थी। 

अपनी मानवी को अपने माता-पिता के पास दोबारा उसका जीवन जीने के लिए……

स्वरचित 

दिक्षा दिपेश बागदरे 

#उसने बात ही ऐसी की, मां-बाप के आंसू छलक आए

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!