“आज नाश्ता नहीं बनाया क्या तुमने?” निकुंज ने राशि से कमरे में आकर पूछा जहाँ राशि रोती दीया को चुप कराने में व्यस्त थी
“सुबह से दीया परेशान कर रही है… मुझे छोड़ ही नहीं रही.. खेलने को बिठाकर जाने का सोचती तो रोना शुरू कर देती है .. अब ऐसे में इसे छोड़कर कैसे जा सकती हूँ… तुम लोगों को ऐसे भी इसका रोना पसंद नहीं आता है ना ।” राशि दीया को गोद में बिठाकर उसे खाना खिलाते हुए बोली
“तो माँ, भैया भाभी और बच्चे क्या भूखे रहेंगे?” निकुंज हैरान और थोड़े ग़ुस्से में बोला
“ वो तुम देख लो… मुझे अभी अपनी बेटी को सँभालना है.. बाकी मुझे कुछ नहीं पता।“राशि ने निकुंज की बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा
“ ये क्या बात हुई… एक सप्ताह के लिए वो लोग आए हैं और तुम चार दिन में ही ऐसे बोल रही हो…कितनी बार समझाया हूँ मेरे परिवार की इज़्ज़त करनी है तुम्हें… उनका ध्यान रखना है ।” निकुंज राशि का हाथ पकड़कर अपनी बात बोला
राशि कुछ नहीं बोली… ग़ुस्से में दीया को ज़मीन पर बिठा कर रसोई की ओर जाने लगी.. उसके जाते दीया ने रोना शुरू कर दिया
“ निकुंज दीया रो रही है… ना आपको सुनाई देता ना आपके घर वालों को… एक सप्ताह के लिए ही आते है पर यहाँ आकर लगता किसी होटल में ठहरे है… दिन भर या तो बाहर जाकर घूमना फिरना …नहीं तो घर में एसी ऑन कर टीवी देखना और एकदम वक्त पर टेबल पर परसा हुआ खाना खाना….मदद को ना एक हाथ आगे आता ना मेरी परेशानी किसी को दिखती…
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चलो ये भी छोड़ दो… मेरी छोटी बच्ची रोती रहती पर मजाल है जो कोई उसे जरा गोद में ले चुप करवा दे… चलो ये भी मान लिया… दीया से उनका कोई रिश्ता नहीं हो पर तुमसे…. क्या उन लोगों के होने से हम दोनों तुम्हें भी दिखाई नहीं देते… अब से कहीं ऐसा ना हो वो आने को हो और मैं अपनी बेटी को लेकर यहाँ से चली जाऊँ…
चार साल से यही देखती आ रही हूँ… आपके अपने लोगों के आने पर आपका नज़रिया कितना बदल जाता है…दो साल की बेटी हो गई पर उन लोगों के आने पर ना पहले ना आज ही आपको उसे लेने का मन करता… वजह जान सकती हूँ?” राशि तमतमाते हुए बोली
“ तुम कहना क्या चाहती हो… मुझे तुम दोनों की परवाह नहीं है?” निकुंज ने कहा
“ आप ही सोच लीजिए,… क्यों मेरी बच्ची आप सब के रहने पर भी नज़रअंदाज़ कर दी जाती है… दादी को भी कभी नहीं देखा पोती को गोद लेकर चुप कराते… चाय नाश्ता समय पर चाहिए उन्हें इसके लिए चाहे मुझे बेटी को चूल्हे के पास बिठाकर काम क्यों ना करना पड़े .. हद है मैं सेवा करने वाली नौकरानी नहीं हूँ… समझे तुम।” राशि वापस से कमरे में आ दीया को लेकर बैठ गई
ये कोई नई बात नहीं थी … दीया को रोता देख कर सब राशि को आवाज़ लगा देते पर लेते नहीं और समय पर सब कुछ मिले ये भी उम्मीद करते वो तो खैर एक सप्ताह को आते पर निकुंज भी उनके आने पर बिल्कुल बदल जाते बस उनके साथ बैठ कर बातें करना …. जेठानी भी कभी मदद को नहीं आती ….ना कभी झूठे मुँह पूछती लाओ राशि मैं कुछ मदद कर देती हूँ तुम दीया को देखो…
इस बार पता नहीं वो लोग जब से आए दीया राशि को छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी सबको ऐसे देखती जैसे अजनबी हो… निकुंज की ओर जाना भी चाहे तो वो राशि को बुला लेता….ये सब राशि को चुभ रहा था… और आज राशि ने आर पार का सोच लिया था
निकुंज ने किसी तरह बाहर से नाश्ते का इंतज़ाम किया तो सासु माँ की आवाज़ सुनाई दी,“ क्यों बहू को हमारा आना भारी लग रहा जो बाहर से खाना मँगवा रही है जानती तो है सास बाहर का नहीं खाती।”
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“ वो माँ आज दीया राशि को छोड़ ही नहीं रही रोये जा रही है… इसलिए वो नाश्ता नहीं बना पाई।” निकुंज ने सफ़ाई देते हुए कहा
” ये क्या बात हुई भला हमने या तेरी भाभी ने बच्चों के साथ रसोई ना सँभाली है क्या… जो राशि बहू से ना हो रहा…?” सासु माँ ने तंज कसते हुए कहा
“ हाँ माँ नहीं हो रहा मुझसे… मैं आप लोगों की सेवा की ख़ातिर बेटी को रोता हुआ नहीं छोड़ सकती ना आप लोग जरा देर को मेरी बेटी को ही सँभालती ना ही मेरी कोई मदद करती है … ये कोई होटल नहीं है जहां आप सब बैठ कर आराम फ़रमाने आए हैं और मैं आपकी सेवा में लगी रहूँ… पहले बेटी को देखूँगी फिर आप सब को…
बुरा मत मानिएगा… मैं ये सब कहना नहीं चाहती थी पर जब पानी सिर से उपर हो तो बोलना पड़ता है… वैसे भी जिसका पति ही ना समझे उसे किसी और से कोई उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए ।” राशि वहाँ पर आकर अपनी भड़ास निकाली दी
सासु माँ ग़ुस्से में निकुंज को देख रही थी… ,“ वाह मेरे लायक बेटे… करवा दी हमारी बेइज़्ज़ती ।”
निकुंज माँ की बात सुन राशि को घूरने लगा …
“ बस निकुंज…. पत्नी हूँ … गुलाम नहीं…और ये लोग जो मुझे सुना रहे हैं जरा अपने गिरेबान में झांक कर देख ले जो कुछ मैंने कहा वो सही है और गलत … क्यों जेठानी जी… ।” राशि ने जेठानी को इंगित कर बोला
जेठानी बगले झांकने लगी ..
“ सुनना चाहते हैं और कुछ तो वो भी सुन लीजिए प्यारे पतिदेव… आपका ये परिवार ना बस यहाँ ऐश करने आता है क्योंकि आपके जैसा इंसान कोई होगा भला जो सप्ताह भर में उनके घूमने फिरने और तोहफ़े में लाखों खर्च कर दे… वैसे कल आपकी भाभी ही ये बात फोन पर किसी से कह रही थी मैं कुछ नया नहीं बोल रही।” राशि ने कहा
निकुंज अपनी भाभी की ओर देखने लगा…जिस भाभी को माँ की तरह समझ हमेशा कहता रहा आप बहुत काम करती है जब हमारे पास आइए बस आराम कीजिए…और इसी बात को मानकर निकुंज का परिवार साल में दो बार उसके पास आता और मजे कर चला जाता था … राशि भी सोचती ठीक है कर देती हूँ पर जब बात बेटी की आई उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था…और आज वो चुप नहीं रह पाई
निकुंज ने भी उसे सुनाया जिससे उसे और ग़ुस्सा आ गया था
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सबका चेहरा उतर गया था….
“ बेटा सच में हमसे गलती हो गयी… हमें लगा बहू को तो ये सब करना ही चाहिए हमारे लिए आख़िर हम बड़े है तो…हमने अपने जमाने में कर लिए थे हाँ तब सब साथ रहते थे हो जाता था… बड़ी बहू भी आई तो मैं उधर ही उसके साथ रहती रही तो उसकी मदद करती रही पर यहाँ आकर सच में हम मेहमान ही बन जाते भूल जाते राशि भी तो इंसान है ।” सासु माँ ने निकुंज से कहा
निकुंज सब कुछ सुन कर चुप था…अपने परिवार को अपने घर मान सम्मान से रखना चाहता था इसलिए वो राशि पर काम की सारी ज़िम्मेदारी डाल जाता था… दीया को भी नहीं लेता कि सबके साथ बात करने नहीं देगी पर आज राशि ने जो कहा उसे सुन उसे अपनी करनी पर पछतावा हो रहा था
“ राशि सॉरी … मैं भी सच में कभी तुम्हारी परेशानी नहीं समझा हमेशा नज़रअंदाज़ करता रहा… अब से ऐसा नहीं होगा…।” निकुंज ने राशि से कहा
“ वो मैं अपनी एक दोस्त से तारीफ़ में क़सीदे कढ़ रही थी इसलिए ये सब बोल गई मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था ।” जेठानी ने निकुंज से कहा
निकुंज कुछ ना बोला… घर का माहौल बोझिल सा हो गया था ….जाने के टिकट पहले से कटे हुए थे इसलिए उतने दिन रूकना ही था ….जब तक रहे सबने मिलकर काम किया पर अब रिश्ते थोड़े बदल से गए थे…
दोस्तों हम कहीं भी जाते है सोचते हैं हम तो मेहमान है.. हम क्यों कोई काम करें पर यहाँ ये सोच गलत है… जिसका बच्चा छोटा है उसके साथ थोड़ी हमदर्दी रखनी चाहिए… अगर वो रसोई कर रही है तो उसका बच्चा देख ले… मिलजुल कर काम करने से काम भी जल्दी हो जाता और किसी पर ज़्यादा बोझ नहीं पड़ता ।
आपको क्या लगता है कि राशि को बोलना चाहिए था और नहीं?
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश