सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम होने को आई, सभी भाइयों की कलाई बहनों की राखी से सजी हुई थी लेकिन सुबोध का अभी तक कुछ पता नहीं था, उसकी बहन कृति थाली सजाए सुबह से उसका इंतजार कर रही थी और कई बार फोन भी कर चुकी थी लेकिन अब तो फोन भी स्विच ऑफ आ रहा था इसलिए उसकी चिंता और बढ़ गई।
” छोड़ उसका इंतजार करना, नहीं आ रहा तेरा भाई, अगर आना होता तो क्या अब तक आ न जाता… हर बार तू तो बड़ी जल्दी समय से पहले अपने मायके सज धज के पहुंच जाती है अब इस बार नहीं गई तो क्या वो समय से नहीं आ सकता था…ऐसा होता है भाई बहन का रिश्ता….
” उसकी सास ने गुस्से में कृति से कहा तो कृति को भी अपने भाई पर मन ही मन गुस्सा आ रहा था कि जब भाई को आना ही नहीं था तो मुझसे पहले ही मना कर देते कि नहीं आ पाऊंगा, मैं ही पोस्ट कर देती राखी…. उनकी वजह से यूं ससुराल में इतना कुछ सुनना तो नहीं पड़ता आज के दिन।
वैसे तो कृति हर साल खुद मायके जाती थी लेकिन इस बार जब किसी कारणवश नहीं जा रही थी तब उसने भाई को कुछ दिन पहले ही बता दिया था कि इस बार वो नहीं आ पाएगी इसलिए राखी पोस्ट कर रही है किंतु भाई के ये कहने पर कि कोई बात नहीं इस बार वह खुद आकर बंधवाने आ जायेगा उसने राखी भी पोस्ट नहीं की थीं और अब तक भूखी प्यासी भाई का इंतजार कर रही थी।
गुस्से के साथ साथ उसे अब भी उम्मीद थी कि जब भाई ने बोला है तो वह आएगा जरूर और इसी उम्मीद से उसकी चिंता बढ़ने के साथ साथ उसकी आंखों में आसूं आ गए।
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अब तो उसे त्यौहार छोड़ भाई की चिंता होने लगी कि आखिर भाई कहां रह गया, फोन भी स्विच ऑफ आ रहा है, किसी अनहोनी की आशंका से वह रुआंसी हो गई तभी दरवाजे पर भाई को देख कर उसका प्यार भरा गुस्सा फूट पड़ा, “कहां रह गया था अब तक?…और फोन भी स्विच ऑफ आ रहा था…तुझे पता भी है कि मैं कितना घबरा गई थी….”
“अरे बहना शांत, थोड़ा आराम से …सब बताऊंगा लेकिन अंदर भी आने देगी या यूं ही दरवाजे पर खड़ा रखने का इरादा है …..और राखी भी बांधनी है या….”
“चलो अंदर…. बांधती हूं राखी…वैसे भी बहुत जल्दी बंध रही है मेरी राखी…” गुस्सा करती हुई कृति ने अंदर जाकर जैसे ही राखी बांधने के लिए भाई की कलाई पर नजर डाली तो उसकी कलाई पर पहले से ही बंधी राखी देख वह दंग रह गई “यह किसकी राखी है भैया….ये किसने बांधी आपको…”
अरे तू पहले राखी बांध उसके बाद पूरी बात बताता हूं वरना देर हो जायेगी वैसे भी बहुत देर हो चुकी है और मैं ये भी जानता हूं कि अभी तक तूने कुछ भी नहीं खाया होगा।
जब कृति ने राखी बांध दी तब सुबोध ने कहा, ” देर के लिए माफ कर दे लेकिन क्या करूं मैं तो घर से बहुत जल्दी निकला था लेकिन रास्ते में सवारियों से भरी एक बस एक गड्ढे में फंस गई थी जिसके कारण बहुत ट्रैफिक हो गया और वहीं दोपहर हो गई हालांकि सवारियों को ज्यादा चोट नहीं आई थीं
और वो अन्य वाहनों से चली गईं लेकिन उसी बस में एक बहन गोद में बच्चे को लिए सफर कर रही थी और उसके साथ कोई था भी नहीं तो वह बेचारी सड़क किनारे खड़ी होकर किसी वाहन का इंतजार कर रही थी लेकिन एक तो अकेली उस पर बच्चा और एक भारी बैग होने के कारण किसी भी वाहन को नहीं पकड़ पाई क्योंकि जब तक वो खाली वाहन देखकर जाती तब तक दूसरी सवारी बैठ जाती वैसे भी त्यौहार पर मुश्किल से खाली
वाहन जा रहे थे तब उससे मैंने ही पूछ लिया कि उसे कहां की बस पकड़नी है जिससे मैं किसी बस में बैठा दूं आखिर वह बेचारी अकेली कब तक इंतजार करती उस पर भी इतनी दोपहर हो गई थी।
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उससे पूछने पर पता चला कि उसका मायका वहां से केवल 5 किलोमीटर की दूरी पर ही रह गया है तब उसे मैं ही छोड़ने चला गया कि आखिर वो भी किसी की बहन है और चाहे बहन किसी की भी हो बहन आखिर बहन होती है जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हम सभी भाइयों की है लेकिन अफसोस कि आजकल इंसान इतना बदल गया है कि उसे किसी की परवाह नहीं ….
खैर जो कुछ भी हुआ लेकिन इस सबमें देर होने की वजह से मुझको तो तेरी डांट खाने को मिल ही गई और ये राखी भी मुझे उसी बहन ने बांधी है।” हंसते हुए सुबोध ने गंभीरता को बदला”
कृति अपने भाई के विचारों से खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही थी और सोच रही थी कि काश हर बहन का भाई उसके भाई जैसा हो।
प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’
मथुरा (उत्तर प्रदेश)