भाई का हक – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

नीलू इस बार छुट्टियों में लंबे समय के लिए आई थी।आते ही घर की पूरी व्यवस्था संभालना उसका शौक था।छब्बीस की हो रही है।नौकरी करती है। स्वावलंबी है,समझदार भी।पिछली बार फोन में मधु(मां)ने समझाया था “नीलू,अब शादी करने का समय आ ही गया है।अब तुम्हें खुद को मानसिक रूप से तैयार करना शुरू कर देना चाहिए।अगर खुद कोई पसंद की है तो बता देना,मैं दादा (बड़ा भाई)को राजी कर लूंगीं।”

वह हर बार की तरह इस बार ,”अभी नहीं”नहीं‌ बोली।मधुजी का मन प्रफुल्लित हो उठा।आखिर बेटी के मन में भी शादी को लेकर सकारात्मक सोच बन रही है।इस बार सीधे बात करूंगी उसी से।खाना खाने के बाद यहां -वहां की बेसर -पैर की बात करती जा रही थी मधु।

नीलू सीधे मुद्दे पर आती हुई बोली”मम्मी,मैं जानती हूं,तुम कुछ पूछना चाह रही हो,पूछ नहीं पा रही क्यों?तुम मां हो।तुम्हें हक है अपने बच्चों से सब पूछने का।पूछो क्या पूछना है तुम्हें।”

मधु जी संकोच कर तो रहीं थीं,पर नीलू की बात सुनकर समझ में आ गया कि अब जमाना बदल गया है।अब बच्चों से प्रश्न पूछने में वे झिझकते नहीं।यही अच्छी बात है इस पीढ़ी की।मधु जी ने नीलू से बात करना शुरू किया”देख बेटा,अब यहां-वहां से रिश्ते आ रहें हैं।तेरा दादा तो कह देता है

अभी जल्दबाजी मत करो,पर मेरी तो चिंता लगी रहती है ना।तुझ पर जबरदस्ती नहीं करेंगे हम।अगर हमारा बताया रिश्ता अच्छा लगे,तभी जांच-परख कर हां कहना।यदि तुझे कोई पसंद हो तो,बता सकती है मुझे।समय निकल गया तो वापस नहीं आएगा फिर बेटा।”

बड़ी संजीदगी से नीलू ने कहा”मम्मी तुम ही देखो अपना दामाद।मेरी आदतें,गुण, अवगुण सब कुछ ध्यान में रखकर ही लड़का ढूंढ़ना।मेरी कुछ शर्ते हैं ,अगर वो मान सकते हैं तो मुझे शादी करने में कोई आपत्ति नहीं होगी।”,अचानक मधु को याद आया ,सुमेश(पति) के रहते एक बार नीलू ने किसी लड़के के बारे में बताया था।

जो उस समय अच्छे पैकेज में था।सजातीय नहीं था वह।हम सब तो खिलाफ हुए थे,पर नीलू के पापा ,सुमेश अपनी लाड़ली बेटी की खुशी के लिए ही जीते थे, उन्होंने हां कर दिया था।समय था अभी।दोनों में दोस्ती बहुत अच्छी थी।फिर सुमेश की अचानक मौत ने नीलू को अत्यधिक गंभीर बना दिया।

बेटी के मन में कोई खेद?,दुख या पश्चाताप भी नहीं दिख रहा था।पर मां थी मधु।सीधे ही पूछा”नीलू तीन चार साल पहले जिस लड़के के बारे में तूने बताया था,वो कहां गया?रिश्ता टूट गया क्या?”

नीलू ने सपाट स्वर में कहा”नहीं मां,मैंने उस रिश्ते में पाबंदियां लगा दीं।वो मारवाड़ी था।है बहुत अच्छा लड़का।रईस परिवार से हैं।मेरे बिना बोले मेरे हर सुख-दुख की खबर हो जाती है उसे।शायद परिवार वाले शुरू में ना मानें,बाद में मान जाएंगे।मेरी जॉब को लेकर भी कोई इशयू नहीं होगी।पर एक बात जो प्रैक्टिकल है वह है,

अलग-अलग रीति रिवाज।रस्में अलग,कायदे अलग।उनके परिवार में बहू-बेटियों का नौकरी करना अच्छा नहीं माना जाता।मैं कितना भी कोशिश करूं,एक नई जाता,परिवार , संस्कार के बंधन में जकड़ जाऊंगी।जी नहीं पाऊंगी,जब मेरी किसी छोटी सी गलती  पर मेरे ससुराल वाले मेरी मां को ही ताना देंगे।बहुत बात सुनाएंगे।

मैं ऐसा कभी नहीं चाहती।मां तुम्हारा‌अपमान‌ मेरे लिए मृत्यु है।यह प्रेम विवाह के पहले तक तो रूमानी रहता है,फिर एक दूसरे की कमी निकालने में ही दिन निकाल देंगें।मैंने उससे इन मुद्दों पर बहुत बात की मम्मी।वह भी तो अपने घर का बड़ा बेटा है।अपने घर की रस्मों से कोई समझौता नहीं करेगा।करना भी नहीं चाहिए।

प्रैक्टिकली बाद में क्लेष ही होना है।तब हम एक दूसरे को दोष देना शुरू कर देंगे।तुम ही अपनी जाति में मेरे हिसाब से देखना शुरू कर दो।”

नीलू का सपाट स्वर अवश्य था पर मन में कुछ टूटा हुआ महसूस हुआ मधु को।बेटी से बोली”तू एक बार दादा से बात कर ना।वह सही सलाह ही देगा।”

नीलू ने गंभीर होकर कहा”मम्मी,अगर आज पापा जिंदा होते ना,मुझे कुछ भी करने के लिए सोचना नहीं पड़ता।अब पापा नहीं हैं।पापा की जगह पूरी जिम्मेदारी दादा ने उठा रखी है।मेरी और अपनी दोनों की शादी को लेकर उसके अपने अरमान है।रस्मों-रिवाजों 

से कभी वह समझौता करेगा नहीं।ऊपर से लड़का मारवाड़ी,(विजातीय)

एक बार शायद वह मन मार कर मान भी जाए,पर वह कभी खुश‌ नही रह पाएगा।वह मुझे अपनी सबसे प्राथमिक जिम्मेदारी समझता है,तो हक भी मुझ पर उसी का होना चाहिए ना।पापा की जगह ,पापा के सारे काम करेगा,तो खुश और संतुष्ट होकर करना चाहिए।शादी के बाद मैं उस पर से हट को दूंगी या वो मुझ पर से हक खो दे,तो हमारा रिश्ता तो ज़िंदगी भर के लिए नष्ट हो जाएगा।”

वह कहती गई”शादी दो परिवारों के आपसी संबंधों को बढ़ाती है।किसी एक के परिवार में रिश्तों का बंधन कच्चा हुआ तो दूसरे परिवार में टूटन आ जाती है।मैं चाहती हूं जब दादा मेरा कन्यादान करें,पापा की तरह धोती कुर्ता पहने।यह उसका हक है।बड़ा भाई है मेरा तो शादी के बाद ससुराल में भी बड़े भाई का सम्मान होना चाहिए।

मन ना होते हुए जब मेरी शादी देगा,तो क्या उसके आशीर्वाद पर मेरा हक रह पाएगा।बस यह सब सोचकर ही उसे भी समझा दिया,और खुद को भी ।शादी के बाद मेरे मायके में पापा की जगह दादा ही रहेगा सदा।तो मैं उसे दुखी करके कोई खुशी नहीं मना सकती।”

नीलू की बातों ने मधु जी को “हक”का अर्थ समझा दिया ।कितना गूढ़ है इसका अर्थ।हक रखना है तो , जिम्मेदारी से भागा नहीं जा सकता।अब मधु जी बेटी को उसके लिए आए लड़कों के फोटो दिखाती हैं,बेटे को दिखाने के बाद।बेटा साफ-साफ कह दिया है”मम्मी,पापा नहीं हैं ।

इस बात का सबसे बड़ा दुख सोनू(नीलू)को है।मेरा पूरा हक है उस पर। जल्दबाजी नहीं करेंगे।”,

आज मधु की आत्मा शांत हो गई।यदि भाई-बहन अपने सुख दुख के बंधन से बंधे होते हैं,तो उन्हें‌ कोई बाहर वाला तोड़ नहीं सकता।हक जताना , दायित्व निभाने के साथ ही अच्छा लगता है।भाई के प्रति सम्मान और निष्ठा बहन का वरदान‌ होता है। जमीन-जायदाद,खेती बाड़ी, संपत्ति पर अपना हक जताना लालच होता है।परंतु भाई के समक्ष प्रेम और सम्मान का हक जताना ,संस्कार हैं।

शुभ्रा बैनर्जी 

#हक

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