मानसी की शादी मम्मी-पापा ने खूब ठोंक बजा कर अच्छा परिवार, अच्छा लड़का कम्पनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत। देखने में सुन्दर, सुशील, आकर्षक व्यक्तित्व का धनी, विनम्र और क्या चाहिये एक इंसान में। शादी से पहले सास ससुर, ननद की बोली से भी शहद टपकता था अब किसी के मन में क्या चल रहा है यह कैसे पता करते। परिवार भी छोटा था एक बेटी जो शादी शुदा थी और यह मानव एक ही बेटा। पर किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था।
शादी के बाद मेहमानों ,रिश्तेदारों के रहने तक सब ठीक ठाक था। मानसी की खूब आवभगत हो रही थी। किन्तु सबके विदा होने के बाद एक सप्ताह बाद ही सबके रंग बदलने लगे। उनका व्यवहार देख कर मानसी हैरान थी कि कोई चेहरे पर इतनी सफाई से मुखौटा कैसे लगा सकता है ।
ननद तो दस दिन रूक कर अपनी ससुराल चली गई ।पर इतने दिनों में भी वह ननद- भाभी के प्यारे रिश्ते को सहृदयता से नहीं निभा पाई। प्रतिदिन सास ननद किसी भी बात को लेकर उसे ताने मारने से नहीं चूकतीं। धीरे-धीरे सारे घर का काम उस पर छोड़कर सास कार्यमुक्त हो चैन की वंशी बजाने लगी। सारा दिन घर में उनकी ही आवाज गूंजती। ससुर जरूर चुप रहते। पति मानव तो माँ का लाडला था। श्रवण कुमार तो नहीं कह सकते कारण श्रवण कुमार तो मां पिता दोनों का आज्ञाकारी पुत्र था किन्तु यहां केवल मां भक्त बेटा था जो केवल मां के इशारे पर कठपुतली की
तरह नाचता था। पत्नी के सुख दुख, इच्छाएं, जरूरतें उसके लिए कोई मायने
नहीं रखती थीं जो मां कह दे बस वह अटल सत्य था रात को दिन कह दे तो दिन ही होता था। ऐसे मां भक्त पति को पाकर उसके सारे सपने चूर-चूर हो गये। यह ऐसा दुख था जिसे वह किसी से बॉट भी नहीं सकती थी ।जब हनीमून पर जाने की बात उठी तो सास सविता जी बोलीं ये सब चोंचले बड़े लोगों के हैं हमारे परिवार में नहीं चलते घर में रहो और घर गृहस्थी सम्हालो जिन्दगी पड़ी है कभी भी घूम लेना ।
शादी से पहले मानसी विज्ञान शिक्षिका के पद पर कार्यरत थी। नौकरी भी यह कह कर छुडवा दी कि हमारे घर की बहू-बेटियां कमाने बाहर नहीं जाती हैं। धीरे-धीरे उसकी सब इच्छाओं – आकांक्षाओं के पर कतर जमीन पर पटक दिया गया।
सुबह से लेकर रात तक वह केवल काम मे लगी रहती तानों उल्हानों के साथ। कभी कभी आँखे भींग जाती सोचती कैसी जिन्दगी थी कहाँ फॅस गई। सब जीने का उत्साह ही खत्म होता जा रहा था ।तभी उसे लगा की वह गर्भवती हो गई। अब वह बच्चे के आने के सुखद सपने संजोती रहती। जब सास को पता चला तो बोली- देख बहू पहला तो पोता ही होना चाहिये। तू मुझे पोते की दादी ही बनाना। वह सोचती यह कैसी मांग है बेटा-वेटी सब एक माया है फिर यह भेद क्यों ।
समय पर उसने बेटी को जन्म दिया वह और मानव, उसके ससुर सब खुश थे किन्तु सविता जी का मुंह फूल गया और वे बच्ची को देखे बिना ही अस्पताल से घर चली गईं। घर आने पर भी वे न उसे प्यार करती न उसका ख्याल रखतीं। कहतीं पोता होता तो खिलातीं।इस मनहूस का क्या करूं।यह सुन मानसी बहुत दुखी हो जाती।वह जब मानव से कहती तो वह एक ही बात कहता क्या करूं मां से कुछ नहीं कह सकता।जब जीवन भर पापा ही उनके सामने बोल। नहीं पाये तो मैं कैसे बोल सकता हूँ ।
मानसी सोचती कैसा पुरुष हे जो अपनी पत्नी और बेटी के हक के लिए भी नहीं बोल सकता ।ससुर जी जरूर अकेले में मौका देख उसे दिलासा देते।
दो साल बाद जब दूसरे बच्चे के आने की आहट हुई तो अब तो उसका जीना दूसर हो गया। रात दिन एक ही बात मुझे तो इस बार पोता ही चाहिए। मानसी उनके इस व्यवहार से और अपनी बेटी के प्रति दुर्भावना से दुखी हो गई।
आज तो हद ही हो गई एक दम कहने लगीं देख मानसी तू कान खोल कर सुनले यदि इस बार तुझे बेटा नहीं हुआ तो तुझे घर से निकाल दूंगी और अपने बेटे की दूसरी शादी करूंगी ।यह सुन वह चकित रहगई। उसे डर था कहीं मानव भी इनकी बातों में न आ जाये फिर वह क्या करेगी। अपनी बेटीयों का भविष्य अन्धकारमय दिखने लगा ।उसे उदास और चिन्तित देख मानव ने उससे पूछा क्या बात है मानसी तुम इतनी चिन्तित नजर आ रही हो । इस समय तो तुम्हें खुश रहना चाहिये नही तो बच्चे पर असर पड़ेगा। वह फफक-फफक कर रो पड़ी बोली मानव क्या तुम सच में हमें छोड दूसरी शादी कर लोगे ।
तब वह बोला मानसी मैं तुमसे और अपनी बेटी से बहुत प्यार करता हूं और आने वाला बच्चा कोई भी हो वह भी हमें प्यारा ही होगा ।ये तुम कैसी बेतुकी बात सोच रही हो।
तब वह बोली मैं नहीं सोच रही मम्मी जी कह रहीं हैं कि बेटी होने पर हमें घर से निकाल तुम्हारी दूसरी शादी करेंगी और तुम मम्मी जी की बात टाल नहीं सकते इसलिए मुझे चिन्ता हो रही है।
मानसी मैं सब समझता हूं इतना बेवकूफ नहीं हूं जो यह गलत बात भी मान लूंगा। हां वे मां हैं मैं उन्हें आदर सम्मान देता हूँ , इसका मतलब यह नहीं कि कोई सी भी बात मान लूंगा। में हमेशा तुम्हारे साथ हूं तुम चिन्ता मत करो खुश रहो।
समय पर उसने दूसरी बेटी को जन्म दिया। अब तो सविता जी ने मानसी का जीना दूभर कर दिया। कहने लगी अरी कुल्छनी अभी की अभी इन करमजलीयों को लेकर निकल जा मेरे घर से। मेरा वंश ही नाश करने पर तुली है।मैं दूसरा ब्याह करुंगी अपने बेटे का जो मेरे वंश के चिराग को जन्म देगी।
जब पानी सिर से ऊपर निकल गया और रोज रोज के कलह से वह परेशान हो गई तो उसने मानव से कहा अब वह इस घर में नहीं रह सकती। इस वातावरण में मेरी
बेटीयों का क्या विकास होगा। वे क्या
सीखेंगी। मैं अपनी बेटीयों की खुशी के
लिए अलग रहूंगी। मैं तुम्हे वाध्य नहीं
करूंगी साथ चलने को तुम मम्मीजी के साथ रहो। मुझे अलग मकान दिला दो और हमारी रहने की व्यवस्था कर दो जहाँ में अपने हिसाव अपनी बच्चियों की परवरिश कर सकूं ।दूसरे में वापस नौकरी करना चाहती हूं। मानव ने अपनी पत्नी की इच्छानुसार उस की सारी व्यवस्था कर दी। उसकी एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी भी लग गई।
जिस दिन वह जा रही थी वह बोली मम्मी जी मैं कभी इस घर में बहू होने का हक नहीं पा सकी। इन बीते सात वर्षों में आपने मुझे घर की बहू होने का हक तो नहींं दिया किन्तु अब मैं अपनी बेटीयों के हक के खातिर उन्हें इस दूषित वातावरण से दूर ले जा रही हूँ जहाँ वह एक खुशनुमा माहौल में पल-बढ सकें। यहाँ तो आप उन्हें कोस कोस कर कुंठित ही करती रहेंगी । ये उनका हक है कि उनके माता-पिता उन्हें खुशहाल जीवन दें। अपना हक तो में भूल गई थी किन्तु वेटीयों के हक के लिए में दुनियां से लड जाऊँगी।
औट हां मम्मी जी एक बात और आपको जाते-जाते कहना चाहूंगी बेटा-बेटी पैदा करना स्त्री के हाथ में नहीं होता यह तो पुरुषो में दो प्रकार के क्रोमोसोम्स पाये जाते जो यह निश्चित करते है कि बेटा होगा या वेटी ,सो मानव की दूसरी शादी करने से पहले यह टेस्ट जरूर करा लें कि उनके बेटा पैदा करने वाले क्रोमोसोम्स हैं या नहीं। नहीं तो और बेटीयाँ ही होगी। फिर बैटे की चाहत में आप मानव की कितनी और शादीयां करेंगी।
आज उसे ऐसे बोलते देख सविता जी चुप
थीं ।कहते हैं न सौ सुनार की तो एक लुहार की,रोज-रोज बोलने वाली सविता जी को आज मानसी में एक ही बार बोल कर निरूत्तर कर दिया। और हां मम्मी जी आप घबरायें नहीं आपके लाडले को आपके पास ही छोड़ कर जा रही हूं । कह वह ससुर के पास गई उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। उन्होंने डबडबाती आँखों से मानसी एवं दोंनों बेटीयों के सिर पर हाथ रख दिल से उन्हें खुश रहने का आर्शीवाद दिया। चलो मानव हमें हमारे नये ठिकाने तक पहुँचा आओ। मानव उसके साथ ऑटो में बैठ चल दिया। ससुर बच्चों के जाने से दुखी थे सो उनकी आंखों से आँसू निकलने लगे। किन्तु सविता जी को तो ऐसा काठ मार गया कि एक शब्द भी नही बोल पा रहीं थीं। मूर्ति की मानिंद बैठी एक टक निहारे जा रही थी। उन्हें मानसी से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं थी।
शिव कुमारी शुक्ला