अपनापन – रणजीत सिंह भाटिया

#मायका

 अमेरिका आए 33 वर्ष गुजर गए समय कैसे पंख लगाकर उड़ गया पता ही नहीं चला l

      आज भी वह दिन याद है,जब अपनी पत्नी किरण और अपनी तीन बेटियों को साथ लेकर अपने सास और ससुर जी के साथ यहां आया था l हमारे विज़ा और टिकटों का सारा खर्चा उन्होंने ही उठाया था l नई भाषा,नए लोग,नई संस्कृति,सोच रहा था कि कैसे यहां अपने आपको व्यवस्थित कर पाऊंगा,और साथ में सारे परिवार की जिम्मेदारी,किरण के तीन भाई जो पहले से ही अमेरिका में थे 


l किरण घर में सबसे बड़ी बेटी है जिसने अपने तीनों भाइयों को माँ जैसा प्यार दिया था,उन तीनों ने हमारे लिए पहले ही एक स्टोर खरीद कर रखा था l कुछ दिनों की ट्रेनिंग के बाद में और किरण उस स्टोर को चलाने लगे l बच्चे अच्छे अच्छे स्कूलों में पढ़ने लगे लड़कियां जब बड़ी होने लगती है तो माता-पिता को उनकी शादी की चिंता सताने लगती है l समय अच्छा गुजर रहा था फिर किरण के माता-पिता का देहांत हो गया अब सारी जिम्मेदारियां भाइयों और भाभियों  पर आन पड़ी पर उन्होंने इतना अपनापन दिया कि कभी किसी बात की कमी महसूस नहीं होने दी कई लोगों से सुना था कि माता-पिता के जाने के बाद मायके में वह पहले जैसी  पूछ परख नहीं होती,पर यहां पर ऐसा कुछ नहीं हुआ किरण के भाइयों और भाभियों  ने हर मौके पर साथ दिया l

 मैं जब भी किरण और बच्चों के साथ ससुराल जाता वहां पहले जैसा प्यार और आदर सम्मान मिलता मुझे कभी महसूस नहीं हुआ कि मेरा कोई बेटा नहीं हैलिए तीनों भाइयों और भाइयों ने मिलकर अच्छे घरों में बेटियों की शादियां भी करवा दी तीनों दामाद इंजीनियर हैं  l कई वर्षों तक किरण के  तीनो भाई साथ में रहते थे फिर परिवार  बढ़ने के कारण सब अलग अलग रहने लगे पर आज भी उन  सब में उतना ही प्यार और अपनापन है l किरण ने  माँ जैसा प्यार दिया तो भाइयों ने भी बेटों से बढ़कर बहन का हर सुख दुख़ मे साथ दिया आज के समय में ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं l लोग स्वार्थी होते जा रहे हैं अपनापन समाप्त होता जा रहा है l ऐसे में अगर इतना अच्छा मायका हो तो दिल से हमेशा आशीर्वाद ही निकलते हैं l 

 

रणजीत सिंह भाटिया

  1. S. A.

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