कहकर फिर से गायब हो गई…
इधर पूरे गांव में एक नौ दिनों का अखंड मंदिर परिसर में कराए जाने का फैसला लिया गया जिसमे ब्रह्मण के रूप में गौरीशंकर का प्रतिष्ठित होने के कारण उन्हें पूजा कराने के लिए चुना गया और इसका निर्माण आसपास के योगी और सिद्ध महात्माओं को भी दिया जाना तय हुआ जिससे इस अखंड की सफलता में कोई बाधा न हो ..
गौरीशंकर जी एक तिथि देखकर कार्य शुरू करने की आधारशिला रखवा दी …
उसी दिन शाम का समय था गौरीशंकर अपने मिले दायित्व वाले काम निपटा कर लौट रहे थे की सामने उन्हे चंद्रिका दिख गई …
अरे चंद्रिका तुम …(गौरीशंकर ने कहा)
नमस्ते पंडितजी …( चंद्रिका बोली)
आज फिर से इधर कही जा रही हो क्या ?
हां पंडितजी मेरे जहां गई थी वहां के काम पूरा हो गया तो मैं लौट रही थी तो संयोग देखिए फिर से शाम इसी गांव में हुई ..
हां तो ये तो अच्छी बात है न .. चलो अब शाम हो गई है आज रात हमारे घर में रुक जाना वैसे भी बच्चों की तबियत ठीक नहीं है तुम्हे देखे तो श्याद कुछ हंस बोल ले..
हां हां .. क्यों नहीं पंडितजी
( गौरीशंकर और चंद्रिका दोनो घर पर आते है )
उमा देखो कौन आई है
कौन है जी?
अरे चंद्रिका तुम…
आओ आओ… अंदर आओ
उधर जैसे चंद्रिका शब्द विष्णु और अपूर्वा के कानों में पड़े दोनो उठकर बैठ गए और दोनो ने एक दूसरे को मुस्कुरा कर देखा..
तभी चंद्रिका बच्चों के पास आती है और बच्चों को देखते ही उसकी आंखो में एक गुस्सा और वहशीपन छा जाता है लेकिन पीछे से गौरीशंकर के आने की आहट से वो संभल जाति है और..
अरे मेरे प्यारे बच्चों
आज फिर मैं कहानी सुनाउगा और देखना तुम्हारी बीमारी कैसे छू मंतर हो जाती है..
ये लो बच्चों एक बार और दवाई खा लो ..( गौरीशंकर वैध जी का दिया हुआ दावा लाते है उधर से उमा तुलसी का काढ़ा लेकर आती है जिससे चंद्रिका किसी बहाने से वहां से हट जाती है …
जैसे ही दोनो दवा पीते है
चंद्रिका अपने मुठ्ठी भींच कर अपने गले से आवाज को रोक लेती है लेकिन चेहरा बिलकुल लाल हो जाता है और फिर कुछ देर बाद सामान्य होकर लौट आती है।
रात को जब सभी खाना खाकर सो जाते है तो बिलकुल वहीं 1 बजे के करीब आज चंद्रिका दोनो बच्चों के सामने ही अपने भयंकर रूप में आ जाति है उसके साथ साथ दो काली बिल्ली भी घर में चौकड़ी मार देती है।
बच्चे अब उठकर बैठ गए और चंद्रिका अपने उसी भयंकर रूप में डांट रही है ..
मना कर सकते थे न तुम काढ़ा पीने से?
पर हमने तो मना किया लेकिन उन दोनो ने जबरदस्ती पीला दिया…( बच्चों ने बोला)
बाहर दोनो बिल्लियां बैठी हुई है
चंद्रिका ने दोनो बच्चों को एक एक थप्पड़ लगाई जिससे बच्चे चिल्ला उठे…
आवाज उमा के कानो तक गई ( कहते हैं बच्चे जब मुसीबत में होते है तो मां को भनक लग जाती है)
उमा उठकर सीधा कमरे खोलकर बच्चों के कमरे घुस गई..
परंतु ये क्या
तीनो आराम से सोए हुए है..
वो दोनो बच्चों के सर सहलाने लगी तभी उमा के गले में लटक रही माता दुर्गा की मूर्ति का स्पर्श चंद्रिका के शरीर से हुआ …
चंद्रिका के अंदर मानो लाखो बोल्ट का करेंट किसी ने छोड़ा दिया हो लेकिन फिर भी चंद्रिका ने अपने आवाज को बाहर नही आने दिया…
खैर किसी तरह सुबह हुई
रात के भयावह माहौल में गौरीशंकर का घर भूतों का डेरा बन गया थी
लेकिन किसी इंसान को खबर तक न हुई..
चंद्रिका ने जैसे ही विदा लेने के लिए उमा के पास जाना चाहा तभी गौरीशंकर गांव में होने वाले अखंड के बारे उमा से बात कर रहे थे जिसे चंद्रिका ने गौर से सुना और परेशान हो गई उसने तुरंत घर के पिछवाड़े में जाकर कम से कम 10 काली बिल्लियों को उस घर के अंदर और बाहर रहने का निर्देश दे दिया..
और फिर विदा लेकर चली गई…
और वहीं बेर के पास जाकर अपने रूप में आकर फिर से वहीं
आओ आओ…कहकर गायब हो गई
इधर जब अखंड का निमंत्रण पत्र आस पास के साधुजन योगी और सिद्ध पुरुषों के पास पहुंचा तो वो लोग आने की तैयारी करने लगे…
और इधर गौरीशंकर के घर के चारो तरफ बिल्लियों के झुंड रहने लगे और सभी का रंग काला होने के कारण गांव वाले देखकर हैरान थे..
खैर
सभी संत और योगी और सिद्ध महात्माओं की टोली गौरीशंकर के गांव में आने लगी जिनके रुकने का प्रबंध गांव वालों ने टेंट बनाकर कर रखा था।
उस रात जो सबसे पहुंचे हुए संत उस गांव में आए थे वो बड़े शिवभक्त थे परंतु एक प्रण था की या तो भोजन वो संन्यासियों के हाथ का बना करेंगे या फिर कोई अच्छा शिव भक्त हो उसके घर का बना।
इन संत महाराज जी का नाम था ” श्री श्री महाबल्लेश्वर जी महाराज”
अतः उस गांव के लोगो ने निर्णय लिया था की इन महाराज का खान पान का प्रबंध गौरीशंकर जी के घर से अच्छा कहा हो सकता है
गौरीशंकर ने इसे अपना सौभाग्य समझकर खुशी खुशी उनके खाने पीने के इंतजाम में लग गए ..
उधर गांव वालों ने गौरीशंकर के घर की स्थिति को जान समझकर उनके घर कुछ राशन दूध और सात्विक भोजन बनाने की सामग्री भिजवा दिया जिस गौरीशंकर ने हाथ जोड़कर लौटा दिया तथा ये कहलवा दिया की इतना बड़ा सौभाग्य मेरे घर आ रहा है जिसे मैं अकेले ही निर्वहन करना चाहता हूं।
रात के समय जब अभी संतो को भोजन कराया जा रहा था तो श्री महाबल्लेश्वर जी को गौरीशंकर अपने घर भोजन ग्रहण करने का निमंत्रण लेकर आए ..
महाराज जी को बताए गया था की गौरीशंकर नाम के एक ब्राह्मण है जो शिव भक्त है इसलिए महाराज जिन कहा…
गौरीशंकर
सुना है तुम बड़े शिव भक्त हो
आपसे बड़ा नही महाराज ….(गौरीशंकर)
लेकिन भक्त बड़ा छोटा नही होता ….(महाराज जी)
लेकिन सभी भक्त आप जैसे भी तो नहीं होते ना महाराज..
मैं तो आपके पैरों के धूल के बराबर नही हूं (गौरीशंकर)
गौरीशंकर की बातों को सुनकर महाराज जी उसपर बहुत प्रसन्न हुए…
तब तक गौरीशंकर का घर आ गया
गौरीशंकर जरा पानी तो मंगवा दो जरा हाथ मुंह और पैर बाहर धो लें तब किसी गृहस्थ घर में प्रवेश करूं
महाराज आप मुझे पाप का भागीदार मत बनाइए.. आपके चरण रज तो हमारे घर को पवित्र कर देगी
आप जैसे संत के चरण रज से ही हम जैसे तुच्छ मनुष्यों का कल्याण हो जाए
ठीक है ..ठीक है गौरी शंकर
तुम्हारा मन बहुत ही निर्मल है चलो घर के अंदर ही हाथ पैर धोएंगे ….
तुम्हारा कहा इतना तो करना पड़ेगा ही
( महाराज जी इतना कहकर हंस पड़े और घर की तरफ बढ़े)
जैसे ही महाराज जी ने अपना कदम घर के अंदर रखने के लिए आगे बढ़ाया……..
शशिकान्त कुमार
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पापी चुड़ैल (भाग -5)- शशिकान्त कुमार : Moral stories in hindi