जब चंद्रिका उस गोले को उस जगह दबा रही थी बिलकुल दोपहर का समय था और चंद्रिका एक खतरनाक रूप में बदल गई जिसके एक दांत बिलकुल भेड़िए के दांत की तरह नुकीला जो की उसके निचले जबड़े को फाड़ते हुए बाहर आ रही थी ,उसके एक आंख रक्तरंजित थी जिसमे से हल्की हल्की मवादें निकल रही थी तथा दूसरी आंख बिलकुल चमकीली जिसमे से खून की धार बाहर आ रही थी बाल खुले थे लेकिन बड़े बड़े कीड़े बाहर निकल रहे थे हांथ के नाखून लंबे लंबे थे और पैर पीछे को तरफ घूमी हुई थी।
एक जोरदार चीख के साथ उसने आवाज लगाई …..
आ जाओ…..
दोपहर की इस जगह की हवाओं में जैसे किसी सरसराहट पैदा कर दी हो , आस पास के पेड़ो पर आराम करने बैठे पक्षी कोलाहल करके उड़ने लगे ..
तभी अचानक चंद्रिका वहां से गायब हो गई..
( वैसे भी कहा गया है की बुरी आत्माओं का घूमना फिरना बिलकुल दोपहर और बिलकुल रात को ही होता है इसलिए कभी कभी बड़े बुजुर्ग भी दोपहर के समय सुनसान जगहों पर जाने से मना करते है)
आज चंद्रिका गौरीशंकर जी के घर से गए हुए 4 दिन हो गए थे ऊनलोंगो के मन से चंद्रिका का नाम भी हट गया था क्योंकि इन्होंने चंद्रिका को केवल अतिथि के रूप में लिया था जो अगली ही सुबह चली गई थी, आज सुबह सुबह विष्णु घर से निकला कुछ घंटे बीते होंगे घर में उसकी खोज होने लगी लेकिन गौरीशंकर जी ने यह कहकर की अपने दोस्तों के साथ खेलने गया होगा आ जायेगा अपनी पोथी लेकर एक यजमान के घर पूजा कराने निकल पड़े….
इधर उमा ने अपनी बेटी अपूर्वा को विष्णु के दोस्तों के घर एक एक कर पता लगाने भेजी की कही उनके यहां बैठा तो नहीं है लेकिन अपूर्वा उसके सारे दोस्तों के घर पता लगा आई लेकिन विष्णु कही नही था…
दोपहर जो चला
उमा परेशान हो गई थी तथा उसे घबराहट भी हो आई इसलिए उसने अपने पड़ोस के एक लड़के को कह गौरीशंकर को बुलाने भेज दिया..
गौरीशंकर जी को जब यह पता चला तो वो जल्दी जल्दी पूजा करवाकर घर आए उनके घर पहुंचते ही पीछे पीछे विष्णु भी घर आ पहुंचा…
उमा जी मारे गुस्से के विष्णु को डांटने लगी लेकिन विष्णु हंस रहा था
इसपर गौरीशंकर को भी गुस्सा आया और उन्होंने विष्णु को डांट लगाई जिसके बाद विष्णु अपने कमरे में जाकर छुप गया
अपूर्वा भी विष्णु के पीछे पीछे जाकर उसी कमरे में बैठ गई..
तभी अचानक घर के आंगन में लगी तुलसी के पौधे पर गौरीशंकर की नजर पड़ती है
उमा
उमा …ये तुलसी के पौधे कैसे सुख गए?
मुझे क्या पता ….(उमा बोली)
नजदीक जाकर गौरीशंकर ने देखा तो पाया की एक छिपकली तुलसी के जड़ के पास मरी पड़ी है और उसके शरीर में चींटी लगे पड़े है
लगता है छिपकली के सड़ जाने के कारण ये सुख गया है और उन्होंने छिपकली सहित उस तुलसी के पौधे को उखाड़कर घर के बाहर रख दिया और एक दूसरे तुलसी के पौधे को लेकर जमा दिया ..
उधर एक ही कमरे में बैठे बैठे दोनो भाई बहन बातें कर रहे थे
भैया आप कहां चले गए थे ?
अरे मैं वहीं बेर के पास चला गया था और पता है मुझे कौन मिली वहीं जो हमारे घर उस रात रुकी थी
चंद्रिका
सच में भैया आपने उनको बुलाया नही वो कितनी अच्छी कहानी सुनाती है…( अपूर्वा ने कहा)
अरे मैने तो उन्हें आने के लिए कहा ही पर वो कह रही थी की विष्णु पहले एक दिन तुम भाई बहन मेरे पास आओगे तभी मैं दूसरी बार तुम्हारे घर आऊंगी
उन्होंने कल फिर बुलाया है वहीं बेर के पास और कहा है की तुम और अपूर्वा दोनो साथ आना..
लेकिन भैया पापा मम्मी तो आज गुस्सा किए है कल वो जाने देंगे क्या?
हां जायेंगे लेकिन जल्दी चले आयेंगे ( विष्णु बोला)
ठीक है
तुम ये बात किसी को मत बताना अपूर्वा नही तो मैं तुम्हे लेकर नही जाऊंगा
ठीक है भैया नही बताऊंगी
शाम होते ही अपूर्वा को फिर से बुखार हो आता है और फिर से गौरीशंकर जी ने वैध के दवाई से अपूर्वा का बुखार ठीक किया
रात को अपूर्वा ने विष्णु से कहा भैया तुम चंद्रिका को ही यहां बुला लेना कल मेरी तबियत ठीक नहीं है न इसलिए मैं कैसे जाउंगी
अच्छा तू सो जा मैं कल देखता हु क्या करना है
सभी सो गए
अचानक करीब 1 बजे उमा की नींद खुली तो उन्हें उनके आंगन से फुसफुसाहट की आवाज आ रही थी वो धीरे से कमरे से बाहर निकली तो बच्चे आंगन में बैठकर बातें कर रहे थे उमा को लगा विष्णु और अपूर्वा दोनो बैठकर बातें कर रहे है…
उमा ने दोनो को पुकारा अपूर्वा …. विष्णु क्या कर रहे हो आंगन में बैठ कर इतनी रात को
इतने में गौरीशंकर की नींद खुल गई और पूछने लगा..
क्या हुआ?
तब तक दोनो बच्चे हंसते हुए कमरे की तरफ दौड़ पड़े फिर भी उमा ने गौरीशंकर को सारी बात बताकर उन दोनो को देखने उसके कमरे में गए तो देखा दोनो निढाल होकर पड़े है..
बच्चों शैतान मत बनो
इतनी रात को परेशान मत किया करो बेटा..( उमा बोली)
चलो अब सो रहे है तो सोने दें..
कहकर दोनो अपने कमरे में चले गए
सुबह नींद खुली तो उमा ने पहले विष्णु और अपूर्वा को जगाया पर ये क्या दोनो का शरीर गरम तवे को तरह तप रहा था
अजी सुनते हो ..(उमा चिल्लाई)
क्या हुआ..( गौरीशंकर बोला)
इन दोनो को काफी तेज बुखार है आप जल्दी से वैधजी को बुला लाइए
गौरीशंकर ने आकर दोनो को देखा तो सचमुच में दोनो की स्थिति चिंताजनक थी इसलिए उन्होंने तुरंत वैध जी को बुला लाया…
अरे कुछ नही लगता है ये रात को अच्छे से सोए नही है इसलिए ये बुखार जो आया है…( वैध जी ने कहा)
गौरशंकर ..ये लो दवाई इसे तुलसी के पत्ते के साथ काढ़ा बना कर पीला दो दोनो घंटे दो घंटे में बिलकुल स्वस्थ हो जाएंगे ..परेशानी की कोई बात नही है.
ठीक है वैध जी ( गौरीशंकर)
उधर उमा सर पे पल्लू डाल कर पीछे खड़ी थी …
बहु जरा एक कपड़ा भिगो कर इन दोनो के सिर पर कुछ देर तक पट्टी कर दो ताकि बुखार जल्दी उतार जाए..( वैध जी ने उमा से कहा)
इतना कहकर वैध जी चले गए ..
परंतु बाद वाली दवाई के लिए उमा जैसे ही तुलसी के पत्ते तोड़ने जाति है वो तुलसी का पौधा बिलकुल सुख गया था…
उधर वैध जी को छोड़ने जाते समय गौरीशंकर को ध्यान आया कि तुलसी का पौधा तो कल ही लगाया है इसलिए गौरीशंकर ने मंदिर जाकर तुलसी के पत्ते ले आए..
आ गए आप ..( उमा ने गौरी शंकर से कहा)
वो तुलसी के पत्ते तो है नही और कल जो आपने आंगन में पौधे लगाए थे वो तो बिलकुल ही सुख गए है..
क्या …पौधे सुख गए?
गौरीशंकर ने आंगन में जाकर देखा तो पौधे बिल्कुल सूखे पड़े थे..
तुलसी के पौधे का यूं बार बार सुखना गौरीशंकर को खटक गया..
तभी उमा कहती है अब ले भी आइए बाहर से कुछ पत्ते तोड़कर
अरे वो तो मैं लेकर आया ही हूं क्योंकि मुझे लगा था की कल ही तो तुलसी लगाया है आज पत्ते तोडूंगा तो पौधे खराब हो जायेंगे इसलिए मैने मंदिर पर से पत्ते ले आए है..
उमा ने वो पत्ते लेकर उसका काढ़ा बना शुरू किया और बनते ही उसने दवाई मिलाकर विष्णु और अपूर्वा को देने गए ..
पर ये कया वो दोनो उस काढ़ा से ऐसे दूर हट रहे थे जैसे उसमे जहर मिला हो लेकिन गौरी शंकर ने दोनो को जबरदस्ती काढ़ा पिला दिया
इधर काढ़ा पीना उधर चंद्रिका का फिर से भयानक रूप में परिवर्तित होकर उस जगह के वातावरण को भयभीत कर दिया और फिर से चिल्लाई…
आओ
आओ…..
शशिकान्त कुमार
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पापी चुड़ैल (भाग -4)- शशिकान्त कुमार : Moral stories in hindi