मैं मायके चली जाऊँगी – विनोद सिन्हा “सुदामा”

“शांति” मेरी धर्मपत्नी का शुभ नाम..

जाने क्या सूझा या क्या सोच माता पिता ने शांति नाम रखा… शादी के दस साल बाद भी समझ नहीं पाया…रूप एवं स्वभाव से बिल्कुल विपरीत और अलहदा..

वैसे तो मेरी धर्मपत्नी… किसी चंद्रमुखी से कम नहीं..लेकिन न तो कभी चंद्रमुखी दिखी मुझे..

और न ही कभी शांत रहने की प्रवृत्ति दिखी उसमें.

जब भी मुह खोलती…कानों में नगाड़े बजने लगतें…..दूसरी…चंद्रमुखी कब ज्वालामुखी बन जाए न चाहकर भी….इस रूप के संभावनाओं का अंदाजा लगाना मुशकिल भी है और काफी कठिन भी.

मिजाज अच्छा हो तो फिल्ड से लौटते ही चाय के साथ गर्मागरम पकोड़े नसीब हो जाते हैं…और गर किसी कारणवश श्रीमती का पारा चढ़ा हो तो…फिर पूछिए मत….क्या घर क्या आस पड़ोस क्या मोहल्ला…

मजाल कि कोई कुछ कह दे….

जिस दिन श्रीमतीजी का पारा सातवें आसमान पर होता..उस दिन रसोई में रखे बर्तनों का उपयोग ऐसे होता मानों एक मुल्क दूसरे मुल्क पर हमला करने हेतु…अपने शस्त्रों का परीक्षण कर रहा हो..

घर का कोना कोना काँपने लगता…

इस कहानी को भी पढ़ें:

ठोस कदम -अंजना ठाकुर Moral stories in hindi




झाडू डंडा कलछा बेलन सरसी चिमटा सभी अपनी शक्तियों पे इतराने लगते..मानों उनकी खोई शक्तियाँ…वापस मिल गई हो..जैसे

घर थियेटर बन जाता और मुहल्ले की भीड़ मुकदर्शक…

खैर….मेरी सामत आई हो जैसे…

काफी थक गया था आज..सेल्स मार्केटिंग का जॉब.. टार्गेट प्रेशर..पूछो मत..ऊपर से बॉस की दुनियाभर की झिकझिक…वो अलग…मन झ्ल्ला  उठता मेरा..जी करता है खुद के बाल खुद ही नोंच लूँ..

फिर हाँथों को ख़ुद ही रोक लेता हूँ..डरता हूँ कहीं गंजा न हो जाऊँ…

आज दफ्तर से लौटते हुए…सारे रास्ते यही सोचता आ रहा था कि आज श्रीमतीजी के साथ बैठ उनकी हाथों की गरमागरम चाय और पकौड़े का लुफ्थांसा उठाऊँगा….एवं अपनी मन की व्यथा साझा करूँगा…परंतु मेरे घर प्रवेश करते ही श्रीमती का रौद्ररूप देखकर रूह काँप गई मेरी…

सोफे पर बैठी श्रीमती अपना झोलाझक्कर संभाले मानो मेरे घर आने का ही इंतजार कर रही हो जैसे..

चेहरा गुस्से से तमतमाया लाल हुआ..

आँखों से बरसती चिंगारियां वातावरण में गर्मी घोलती..प्रतीत हो रही थी..

मैं सहमा सहमा घर में प्रवेश किया.. कांधे लटका बैग उसकी जगह टाँगा…और शांत भाव से पत्नी से पूछा…

क्या हुआ…क्या बात है …??

थोड़ी उदास दिख रही हो…कहीं जा रही हो…क्या..??

इस कहानी को भी पढ़ें:

दिल का रिश्ता -डाॅक्टर संजु झा Moral stories in hindi




मेरा इतना भर पूछना कि पत्नी का गुस्से से लाल हुआ चेहरे से आग बरसने लगी…

ऐसा लगने लगा किसी पड़ोसी देश ने हमला कर दिया हो..

शब्दों के बाणों के बौछार शुरू हो गए

गुस्से में तमतमायी लगी उलाहने देने..

हाँ..मैं मायके जा रही हूँ…

मेरी किस्मत फूटी थी कि तुमसे ब्याही गई मैं.

न जाने माँ बाप ने तुममे क्या देखा कि तुम्हें मेरे  गले बांध दिया…

मैने डरते डरते कह दिया…

पर गले तो तुम बाँधी गयी मेरे…

मेरा मतलब …मैं तो न गया था..

तुम्हारे माता पिता ही आए थे मेरा हाँथ माँगने…

श्रीमती ने तपाक से कहा

अच्छा होता बजाए तुमसे शादी के बिन ब्याहे घर पर ही रखते मुझे.

सच…में रखते तो अच्छा ही होता…

दबी आवाज में कहा…

मुझे लगा नहीं सुनी…

पर औरतों के कान और उनकी सुनने की क्षमता..ईश्वर भी नहीं जानता..

इस कहानी को भी पढ़ें:

कलावती -संध्या त्रिपाठी Moral stories in hindi




हाँ तुम तो कहोगे ही…

पीछा जो छुड़ाने चाह रहे मुझसे…

ताकि ले आओ दूसरी…

मैने दोनों कान पकड़ कहा..

तौबा तौबा…

अब इस उम्र में एक और गलती न बाबा न…

श्रीमतीजी जे ने मुह से निकली बात लपक ली..

मतलब मुझसे शादी कर तुमने गलती कर दी..?.

मैं बेचारा फँसता क्या कहता..

नहीं नहीं मेरा मतलब…

पहली के रहते दूसरी शादी करना गलत है..

मतलब मैं मर जाऊँगी तो कर लोगे..?

श्रीमती बिफरती हुई बोली..

नहीं नहीं …कहना ये था कि

तुम हो तो फिर….मुझे दूसरी का क्या करना..

और मारे तुम्हें दुश्मन..

मेरा मतलब मरे तुम्हारी दुश्मन..

कर लो…किसने रोका..श्रीमती जे ने चिल्लाते हुए कहा…

मै तो मायके जा रही..

उड़ाना गुलछल्ले..

खूब समझती हूँ तुम्हें…

मैं बगले झाँकने लगा

हालांकि मेरी श्रीमती का अपने मयके आना – जाना बहुत कम ही होता था…लेकिन बात बात पर “मैं मयके चली जाऊंगी” की धमकी देना आम सी बात हो गई थी…

इस कहानी को भी पढ़ें:

और वो मुस्करा दी-डॉक्टर संगीता अग्रवाल । Moral stories in hindi

शायद डिंपल के कहे का असर बहुत ज्यादा सवार रहता था

एक समय था जब पत्नियों का तकिया कलाम हुआ करता था..

“मैं मयके चली जाऊँगी” तुम देखते रहियो..

मेरी श्रीमतीजी जी भी इसी रोग का शिकार हुई बैठी थी..

वो जब भी कहती मै मायके चली जाऊँगी

मन हर्षोउल्लास से भर उठता..

मैं भी मन ही मन कहता कभी जाओ भी…

तो कुछ चैन की साँस ले सके मेरा मन…

लेकिन मुझे पता था यह अनहोनी कभी होनी में तब्दील नहीं हो सकती….

ऐसा नहीं था कि रोज मेरी पत्नी और मेरे बीच किसी तरह के झगड़े या अनबन होती रहती थी…

लेकिन पड़ोसियों के कारण रह रह कर जीवन में भूचाल जरूर आता रहता था..

शर्मा जी सपरिवार नैनीताल जा रहें इस गर्मी और तुम हो कि मुझे….???

न कहीं आना न कहीं जाना..

बस सड़ते रहो…दो कमरों में…

इससे तो अच्छा मैं अपने शहर..माँ के घर थी..

जहाँ इच्छा होती घूम ाती..जो चाहो बनाओ जो चाहो खाओ…..

न कोई रोकने वाला न कोई टोकने वाला…

इस कहानी को भी पढ़ें:

छोटे से सफर का मज़बूत साथ -स्नेह ज्योति । Moral stories in hindi

ओहहहह अब समझा….

अब पत्नी को क्या कहता यहां एक गली से दूसरी गली के चक्कर में नौ लीटर तेल जल जाते हैं…फिर नैनीताल की क्या कहें…

फिर कुछ सोच…मैने श्रीमती से कहा…

अच्छा निर्णय लिया….बिल्कुल ठीक सोचा..

इस गर्मी मायके हो ही आओ…

अपने माता पिता से मिल भी लोगी फिर

घूमना का घूमना भी हो जाएगा और पिकनिक का पिकनिक…भी…

वैसे भी शादी शुदा औरतों के लिए मायका किसी पिकनिक स्पॉट से कम नहीं…

चलो मैं स्टेशन छोड़ देता हूँ…

मैने लोहा गर्म है सोच बैग की तरफ़ हाँथ आगे बढाया…

लेकिन मेरी फूटी किस्मत..

वही हुआ जिसे नहीं होना था..

बड़े उतावले दिख रहे मुझे मायके भेजने के लिए…

इतने ही तंग आ गए हो तो तलाक कँयूँ नहीं दे देते…मुझे

देखती हूँ कौन रह लेती है तुम्हारे साथ….

एक कप चाय तो बनाने नहीं आती तुम्हें…



चली गई तो जाने क्या हो तुमहारा…

भला…होहहहहह…मेरे शब्द मेरे मुह में ही रह गएं

इस कहानी को भी पढ़ें:

भाव समर्पण का -बालेश्वर गुप्ता । Moral stories in hindi

मैने तुरंत भाव मुद्रा बदला

भला तुम्हारे जितना कौन खयाल रखेगा मेरा

वही तो….

अपना बैग अपने कमरे की ओर ले जाती बोली..

रखकर आती हूँ तो चाय बनाती हूँ…

मायके अगली गर्मी चली जाऊँगी..

मैंने मुस्कुराकर कहा….अच्छा ठीक है.

पर अंदर ही अंदर कुछ पल की इंडिपेंडेंस वाली फिलिंग्स को दम तोड़ते देख आँसूँ बहा रहा था..

श्रीमती का मायके जाना इस बार भी….बस कोरी धमकी निकली…काश कि उसका कहा  कभी सच हो..

मैं मायके चली जाऊँगी

मैं मायके चली जाऊँगी

विनोद सिन्हा “सुदामा”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!