#मायका
” बेटा कब तक पहुंच रही है तू ?” तन्वी से उसके पापा महेंद्रनाथ जी ने फोन पर पूछा।
” पापा आधे घंटे में पहुंच जाऊंगी थोड़ा जाम है इसलिए देर हो रही है !” तन्वी बोली।
फोन रखकर तन्वी सोचने लगी मां के बिना मायका कैसा होगा। पापा की खुशी के लिए आ तो गई वो मायके पर मन में उथल पुथल थीं। बचपन से मम्मी के करीब रहे थे तन्वी और तनिष्क दोनो भाई बहन। पापा से तो बस मतलब को बात होती थी इसकी वजह पापा का व्यक्तित्व था या उनकी व्यस्तता जो भी हो पर दोनो भाई बहन के लिए मम्मी ही सब कुछ थी। अभी दो महीने पहले मम्मी सबको छोड़ चली गई और तन्वी का मायका मां विहीन हो गया। खुद दो बच्चों की मां है तन्वी पर मायके जाते ही खुद बच्चा बन जाती थी अब कौन लाड़ करेगा। तनिष्क भी विदेश में रह नौकरी कर रहा है। पापा ने खुद से फोन करके उसे छुट्टियों में आने को बोला था तो आना तो था ही।
अचानक कैब रुकने से तन्वी ख्यालों की दुनिया से बाहर आई घर आ चुका था तन्वी दोनो बच्चों को उतार जैसे ही सामान उतारने लगी।
” ला बेटा मैं उतारता हूं तू बच्चों को ले अंदर चल !” महेंद्रनाथ जी बाहर आ बोले।
” अरे पापा आप चिंता मत कीजिए बस उतर गया समान तो !” आखिरी बैग उतारती तन्वी बोली।
इस कहानी को भी पढ़ें:
हर मर्ज का इलाज दवाई नहीं है- मंजू ओमर । Moral stories in hindi
” कैसी है मेरी बेटी ?” कैब के जाते ही उन्होंने तन्वी को गले लगा पूछा।
” बिल्कुल ठीक हूं पापा !” नम आंखों से तन्वी बोली जाने क्यों आज उसे पापा के गले लग ऐसा लगा मानो मां के गले लगी है।
पापा दोनो बच्चों को साथ ले बैग उठा अंदर चल दिए साथ साथ तन्वी भी चल रही थी। अभी भी उसे अंदर जाते में ये लग रहा था अभी मां भाग कर आएंगी।
तू बैठ बेटा यहां थकी होगी …छोटू जल्दी से शर्बत लेकर आ !” पापा तन्वी को सोफे पर बैठने को बोल घरेलू सहायक को आवाज देने लगे।
” पापा आप भी बैठो !” तन्वी बोली।
” अरे मैं इन शैतानों को जरा आइसक्रीम तो दूं पहले !” ये बोल पापा रसोई की तरफ भागे और दोनो बच्चों की पसंद की आइसक्रीम ले लौटे। दोनो बच्चे आइसक्रीम पाकर खुश हो गए इतने छोटू भी शरबत और नाश्ता ले आया और नमस्ते करके नाश्ता रख दिया।
” अरे छोटू ये सब …तुम्हे कैसे पता मुझे क्या पसंद है ?” अपनी पसंद का नाश्ता देख तन्वी आश्चर्य से बोली।
” दीदी हमे कुछ कैसे पता होता हम तो अभी दो महीने पहले ही आए हैं ये सब तो साहब ने बताया हमे की तन्वी बिटिया को ये पसंद है तुम्हारी मेमसाहब ये बनाती थी उसके लिए वो बनाती थी तुम भी सब बनाओ जिससे उसे कुछ भी अलग ना लगे!” छोटू एक सांस में बोल गया। तन्वी अचंभित थी पापा को उसकी पसंद पता है? उसने पापा की तरफ देखा उसे उनमें मां की परछाई नजर आई। क्या पापा भी इतने ममतामई होते है ? उसने खुद से सोचा क्योंकि एक सख्त पिता की छवि जो उसके मन में बसी थी वो दरकने लगी थी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
हर बीमारी दवा से ठीक नहीं होती- कान्ता नागी । Moral stories in hindi
” चलो बेटा जल्दी शरबत खत्म करो अपना फिर हाथ मुंह धो थोड़ा आराम करो थक गई होंगी तुम इतने खाना तैयार हो जाएगा !” महेंद्रनाथ जी उसे ख्यालों में डूबे देख बोले।
नही पापा थकी तो नही हूं बस बच्चों को थोड़ा सुला देती हूं !” ये बोल तन्वी बच्चों को ले अपने कमरे में आई…उसका कमरा भी बिल्कुल वैसा ही था जैसा मां के समय रहता था साफ सुथरा उसकी पसंद की ही चादर बिछी थी। उसने हाथ मुंह धो कपड़े बदले बच्चों के भी कपड़े बदल उन्हे लिटा दिया। बिस्तर पर लेटते ही फिर मां की याद घिर आई मां होती तो ये होता वो होता।
” दीदी चलिए खाना तैयार है !” थोड़ी देर बाद बाहर से छोटू की आवाज आई तो बच्चे जो मां के डर से चुपचाप लेटे थे उठकर भाग लिए। पीछे पीछे वो भी नीचे आई तो देखा पापा मेज पर सब रख रहे हैं वैसे ही जैसे मां रखती थी।
” आ बेटा खाना खा !” उसे देखते ही पापा बोले और उसकी प्लेट लगाने लगे।
” पापा मैं लगा लूंगी आप बैठिए ना!” तन्वी पापा के हाथ से सब्जी का डोंगा लेते हुए बोली।
” अरे पगली कुछ दिन को तो आई है खिला लेने दे फिर तो ये घर सूना हो जायेगा !” पापा नम आंखों से बोले। उसके बाद तन्वी ने कुछ नही कहा। खाना सब तन्वी की पसंद का ही था जैसे मां बनाया करती थी पापा बहुत खुश नजर आ रहे थे कभी बच्चों को अपने हाथ से खिलाते कभी तन्वी की प्लेट में परोसते। बच्चे भी नाना के साथ बहुत खुश नजर आ रहे थे।
खाना खाकर तन्वी ने बच्चों को सुला दिया और खुद पापा के पास आकर बैठ गई।
” पापा जल्दी ही तनिष्क वापिस लौट रहा है अब उसकी शादी कर दीजियेगा जिससे घर संभालने को कोई आ जाए !” तन्वी पापा से बोली।
” हां बेटा मेरी तनिष्क से बात हुई है उसे शायद कोई लड़की पसंद है मुझे खुल कर नही बता रहा तुम पूछना अगर सब सही रहा तो जल्दी ही शादी कर देंगे !” महेंद्रनाथ जी बोले।
इस कहानी को भी पढ़ें:
” हां पापा मुझे सब पता है बस आपका डर है उसे की आप इनकार ना कर दो!” तन्वी बोली।
” बेटा माना मेरी छवि एक बुरे पिता की है तुम दोनो की नजर में पर पिता इतना बुरा होता नही है तुम्हारी मां थी तो मुझे पता था वो ममता के आंचल में समेट कर रखेगी तुम्हे इसलिए मैने अपनी छवि थोड़ी सख्त रखी जिससे तुम लोगों के कदम ना बहके। वैसे भी तुम्हारी जरूरतें पूरी करने की जद्दोजहद में प्यार दिखाने का मौका ही नही मिला। पर ऐसा तो नहीं कि मुझे तुमसे या तनिष्क से प्यार नहीं। बेटा मां हो या पिता दोनो अपने बच्चों के लिए बराबर करते हैं बस दोनो के प्यार जताने का तरीका अलग होता है ।” महेंद्रनाथ जी बोले।
” सच में पापा हम बच्चे भी पापा का सख्त चेहरा तो देख लेते है पर उसके पीछे छिपा एक ममतामई पिता नही देख पाते। मैं खुद यहां आते में झिझक रही थी कि मां के बाद मेरा मायका जाने कैसा होगा !” तन्वी पापा की गोद में सिर रखकर बोली।
” बेटा ये घर तेरा मायका है और हमेशा रहेगा क्योंकि अब तेरा ये पिता दोहरी जिम्मेदारी निभायेगा मां की भी और पिता की भी समझी !” महेंद्रनाथ जी बेटी का माथा चूमते हुए बोले और उसका सिर सहलाने लगे वैसे ही जैसे मां सहलाती थी। पिता के स्पर्श में मां की ममता पा तन्वी बेफिक्री की नींद सो गई। उसके चेहरे पर एक सुकून था कि उसके पिता से उसका मायका सलामत है।
दोस्तों ये सच है हममें से ज्यादातर लोगों की सोच यही होती कि मां ममता की मूरत है पर पापा एक सख्त मिजाज इंसान है पर ज्यादातर ऐसा होता नहीं है क्योंकि ज्यादातर पिता के सख्त चेहरे के पीछे एक ममतामई इंसान ही होता है बस नजर कम आता है।
क्या आप मुझसे इत्तेफाक रखते हैं?
आपकी दोस्त
संगीता