ऐसा बिल्कुल नहीं था कि भावना जी अपनी बहू नीता को प्यार नहीं करती थीं या उसे कमतर समझती थीं, बस यह उनकी बहुत पुरानी आदत थी कि वह अनुशासनहीनता या कोई भी गलती सहन नहीं कर पाती थीं और उसे ठीक करने की पूरी कोशिश करती थीं। यूं भी वह गर्ल्स स्कूल की रिटायर्ड प्रिंसिपल थीं। सफाई और बच्चों को समझाना उनकी आदत में ही शामिल हो गया था।
अब जब उनकी बहू आई तो ऐसा मानो कि उन्हें समझाने के लिए एक विद्यार्थी घर पर ही मिल गया हो। बहु नीता एकदम मस्त मौला अपने घर की इकलौती बेटी थी जिसने सिवाय पढ़ाई और मस्ती के कभी कोई काम करा ही ना हो। ससुराल आने के बाद साल भर के अंदर में ही वह मां भी बन गई थी। उससे भला पूरी परफेक्शनिस्ट होने की कैसे उम्मीद कर सकता है।
भावना जी का लेक्चर सुबह से ही शुरू हो जाता, कामवाली के आने से पहले यदि नीता ने अपना पर्स यूं ही फेंक रखा हो तो भावना जी जरूर टोकती, कोई भी लाइट फालतू जल रही हो तो टोकतीं। हालांकि कहने के बाद वह खुद भी यह सारे काम करती हुई ही बढ़ती, फैले हुए बर्तन मिले या कपड़े सब यथास्थान ही रखतीं।
टोके जाने पर धीरे धीरे नीता का गुस्सा उसके चेहरे पर भी स्पष्ट हो उठता था लेकिन वह कहती तो कुछ नहीं थी। नाश्ता हो या खाना हो भावना जी उसी तरह से सही वक्त पर बना कर रख देती थीं। यह उनकी देखभाल और अनुशासन का ही नतीजा था कि बंटी के होने के बाद भी नीता कहीं से भी बेडौल नहीं लगती थी।
कब क्या और कितनी मात्रा में खाना है, इसके अतिरिक्त छोटे बंटी को भी उन्होंने ऐसी आदत डाल दी थी कि हर बार बाथरूम जाने से पहले अपने बिस्तर पर ही हिल कर एक बार वह अपने बाथरूम आने की सूचना दे देता था। नीता को भावना जी का यह लीडर जैसा व्यवहार बिल्कुल नहीं सुहाता था। एक दिन जब हाथ की उंगली से ऊपर की ओर इशारा करती हुई भावना जी जब नीता को कमरे में लगे जाले दिखा रही थीं तो गुस्से से नीता का चेहरा लाल हो उठा।
बस उसी दिन भावना जी ने फैसला किया कि वह अपनी मुंबई वाली बहन के पास कुछ दिनों के लिए रहने जाएंगी। वैसे भी मुंबई वाली बहन बहुत दिनों से उनसे अपने घर आने का आग्रह कर रही थी। प्रोग्राम बना कर दूसरे ही दिन भावना जी अपने पति के साथ मुंबई के लिए यात्रा पर रवाना हो गई।
यूं भी बंटी के होने के बाद भावना जी घर से कहीं निकली भी नहीं थीं। भावना जी के जाते ही नीता की खुशी का अहसास बिल्कुल ऐसा ही था मानो कि वह है जेल से छूट गई हो।
उस दिन नीता ऐसी निश्चिंत नींद सोई कि 8:00 बजे आने वाली कामवाली बिना काम किए घर से जा चुकी थी। क्योंकि नीता उठी ही 9:00 बजे के बाद थी। बंटी को भी रात को दूध नहीं पिलाया गया। वह भी रात को उठ कर रोया होगा लेकिन अब तो वह भी सो रहा था। बंटी ने पूरा बिस्तर गंदा कर रखा था।
कामवाली भी सुबह आकर वापस चली गई थी अब उठते ही रात के ढेरों बर्तन उसे खुद ही मांजने थे। अमित की गाड़ी भी साफ नहीं हो सकी क्योंकि 7:00 बजे गाड़ी वाला भी बैल बजाकर जा चुका था। अमित को भी दफ्तर को देर हो रही थी इसलिए वह बिना कुछ खाए पीए अपने ऑफिस चला गया था।
पूरा दिन वह घर के कामों में ही व्यस्त रही। जैसे तैसे शाम का खाना बनाया। पूरा दिन थकी होने के कारण शाम को उसे जल्दी ही नींद आ गई। रात को बंटी को दूध देने के कारण उसे उठना पड़ा । बंटी को शायद हर वक्त डायपर पहन के बहुत बेचैनी लग रही हो। इसलिए उसने उस रात को 2:30 पर भी नहीं पहनाया था।
डर के मारे दूसरे दिन तो नीता की नींद 5:00 बजे ही खुल गई। वह सब काम जिनके लिए वह सासू मां से गुस्सा होती थी अब खुद ही कर रही थी। अमित का लाइट खुला छोड़ जाना और अपना सामान यथास्थान ना रखना, यह सब नीता को परेशान कर रहा था। हालांकि हंसते हुए अमित उसे कह देता था कि तुम्हें नहीं पता मां के जाने के बाद तुम खुद ही मां के जैसी हो गई हो। लगभग हर शनिवार और इतवार नीता और अमित घूमने के लिए निकल जाते थे लेकिन अब बंटी को कहां छोड़े और घर का काम था कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
भावना जी के मिलने जुलने वाले भी आते तो नीता को बिना तैयार हुए और घर को फैला हुआ ही पाते। उनके लिए कुछ व्यंजन तो दूर, चाय ही बन जाए वही बहुत था। अमित की घड़ी और पेनड्राइव भी नहीं मिल रहे थे। कहां रखी थी यह दोनों को ही याद नहीं।
आज मम्मी के द्वारा किए हुए सारे काम की और मम्मी की बहुत याद आ रही थी। घर में आने वाले धोबी, बर्तन वाली, सफाई वाली उन सब के आने से पहले मम्मी का यह नियम था कि हर चीज संभाल कर रखी जाए। बाद में प्रत्येक पर शक करना और दुखी होना इस चीज से उन्हें सख्त नफरत थी। इसलिए सवेरे उन सब के आने से पहले वह खुद पूरे घर में घूमते हुए हर सामान को संभाल कर रख देती थी। अब घर में धोबी बर्तन वाले सब आए थे लेकिन सामान ना मिलने के लिए किसी पर बिना देखे शक करना भी तो उचित नहीं था। अमित और वह दोनों मिलकर घड़ी और पेनड्राइव को ढूंढ रहे थे।
इतने में ही फोन की बैल बजी। फोन मम्मी का था इससे पहले कि मम्मी घर के और सब के बारे में पूछती, नीता लगभग रूआंसी सी होकर बोली “मम्मी आप कब आओगी?”
“मेरा भी तुम्हारे बिना कहां मन लग रहा है, कल तक हम दोनों आ जाएंगे।” ऐसा बोलकर भावना जी को ज्यादा सुकून मिला या सुनकर नीता को, कह नहीं सकते। लेकिन घर में सबकी अपनी अहमियत और जरूरत होती है।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा