सुबह के छह बज रहे थे रुक्मिणी को पाँच बजे ही चाय पीने की आदत थी। उन्होंने आवाज़ दी कि बहू चाय बनाएगी क्या?
उनकी पुकार सुनते ही सौरभ की नींद भी खुल गई थी । पास में ही सो रही रम्या बड़बड़ाते हुए उठी कि दो मिनट रुक नहीं सकतीं हैं चाय चाय की रट लगाते हुए उठा देती हैं । और कितने दिन इन दोनों की सेवा करनी पड़ेगी नहीं मालूम है। इनकी सेवा करते हुए मैं तो थक गई हूँ ।
उनका अकेला सुपुत्र है जिसके कारण किसी और से साझा करने के चांस भी नहीं है कहते हुए उठकर बाहर की तरफ़ गई थी ।
माँ शायद बर्तन माँज रही थी । वैसे पहले माँ ही चाय बना लेती थी । एक दिन माँ दूध गरम करने के लिए गैस पर रखकर बाहर आकर बैठ गई थी उधर दूध उफन कर बाहर गिर गया था । उसी समय रम्या रसोई में गई बड़े छोटे का लिहाज़ ना रखते हुए उसने माँ की क्लास ले ली थी ।
उनसे यह भी कह दिया था कि आज के बाद से चाय मैं बनाकर दूँगी आप नहीं बनाएँगी । इसलिए माँ को रम्या के उठने का इंतज़ार करना पड़ता था ।
रुक्मिणी बर्तन करके झाड़ू लगा रही थी तब तक सौरभ भी उठकर आ गया और उसने भी चाय माँगी बहुत ही सौम्य स्वर में उसने सौरभ से कहा कि बस पाँच मिनट में लेकर आ रही हूँ । पेपर पढ़ते हुए सौरभ से माँ ने कहा कि बेटा थोड़ा सा पैर उधर कर झाड़ू लगा देती हूँ ।
उसने तब ध्यान से माँ की तरफ़ देखा सोचने लगा था कि माँ को सुबह चाय पीने की आदत है वह एक बार ही पीती थी परंतु उसके बाद कितना भी काम हो सब कुछ कर लेती थी । उसी समय रम्या चाय के दो कप ले आई एक मुझे दिया और माँ का कप टेबल पर रख दिया था ।
बेटे मनीष ने कहा कि माँ मुझे भी बार्नविटा दो ना । रम्या चिल्लाते हुए कहने लगी कि मेरे दो ही हाथ हैं उठते ही कुछ पीने की अपनी लत पर क़ाबू करना सीखो ।
माँ झाड़ू लगाने लगीं तो मैंने कहा कि माँ चाय पी लो फिर झाड़ू लगाना उसने कहा बस यह ख़त्म करके फिर पी लूँगी ।
झाड़ू लगाकर हाथों को धोकर पोंछते हुए आती है ठंडी हुई चाय को पी लेती है और सौरभ के हाथ से कप लेते हुए कहती है कि यह दिल भी कैसा है ना बचपन से जैसे चल रहा है वैसे ही चलना चाहता है पर जरूरी नहीं है कि हर समय हमारे मर्ज़ी के मुताबिक़ वैसा ही चले ।
अपने दिल को कितना भी सँभालने की कोशिश करती हूँ पर यह दिल है कि मानता ही नहीं है । समय होते ही चाय पीने के लिए जी ललचाने लगता है ।
एक उम्र के बाद इन्हीं आदतों के कारण अपने से छोटों की भी बातें सुननी पड़ती हैं ।
सौरभ ने पेपर एक तरफ़ रखकर कहा कि माँ आप रम्या को जानती हैं ना वह नारियल के समान है ऊपर से कड़क और अंदर से नरम है दिल की बहुत अच्छी है कहते हुए माँ को समझाने की कोशिश कर रहा था ।
माँ ने कहा कि कोई बात नहीं है बेटा हमें इस बात की ख़ुशी है कि वह तुम्हें अच्छे से देख लेती है ।
उनकी इस बात के अर्थ की गहराई को समझते हुए मेरा दिल दुखने लगा था । तीन लड़कियों के बीच मैं एक अकेला होने के कारण बहुत ही लाड़ प्यार से मेरा बचपन बीता था । पिताजी एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे । माँ एक रेडियो आर्टिस्ट थीं । वहाँ भी अपना प्रोग्राम देकर आतीं थीं।
वे घर पर भी बच्चों को संगीत सिखातीं थीं । पिताजी के वेतन के साथ माँ की कमाई भी जुड़ जाने के कारण हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी थी । हम अपनी ज़िंदगी आराम से ही गुजार रहे थे ।
बड़ी दो बहनों और दो बुआओं की शादी करके पिताजी के पैसे ख़र्च हो गए थे । रिटायर होने के बाद जो भी पैसे आए उससे तीसरी बहन की शादी करा दी थी ।
उस समय तक मैं भी अपनी पढ़ाई पूरी करके नौकरी करने लगा था । हम चारों भाई बहनों को पार लगाते हुए माँ पिताजी ने अपने लिए एक घर भी नहीं बनवाया था ।
मेरे लिए दोनों रिश्ते ढूँढने लगे थे और उन्होंने रम्या को पसंद किया था जो सरकारी नौकरी करती थी । मैंने और रम्या ने मिलकर घर बनवाया था और माँ पिताजी को अपने साथ रख लिया था ।
इसके लिए मुझे बहुत गर्व होता था परंतु माँ और रम्या की पटतीं नहीं थी मेरे ऑफिस से आते ही रम्या के बारे में माता-पिता बताया करते थे ।
रम्या कमरे में जाते ही उनकी शिकायत करती थी । मेरे घर में अशांति का वातावरण फैला रहता था पर क्या करूँ रम्या को कुछ नहीं कह सकता था
क्योंकि मेरी तनख़्वाह घर का लोन फ्रिज और टीवी का ई एम आई पटाने के लिए चला जाता था । रम्या के तनख़्वाह से ही घर चलता था ।
उनकी तरफ़दारी करूँगा तो वे बेघर हो जाएँगे इसलिए चुपचाप इस अशांति को झेल रहा था ।
एक दिन रम्या जैसे ही ऑफिस से आई तो देखा कि माँ पिताजी टी वी में महाभारत देख रहे थे । उसने आते ही टी वी बंद करते हुए कहा कि सुबह सुप्रभात से लेकर रात को शुभरात्रि तक टी वी के सामने बैठे रहते हो । करेंट बिल कौन भरेगा कैसे भरेगा इसकी कोई फ़िक्र है या नहीं है । बूढ़े हो गए हो चुपचाप जो भी मिल रहा है उसे खाना और अपने कमरे में बैठना चाहिए दिमाग़ ख़राब कर दिया है इन लोगों ने मेरा ।
मैं भी पीछे से ही घर के अंदर आ रहा था रम्या की बातों को सुना । देखा पिताजी का चेहरा उतर गया था और वे दोनों सीधे अपने कमरे में चले गए ।
मैं कुछ कह नहीं पाता था क्यों यह आपको पहले ही बताया है ।
यह सब मैं ऑफिस के कैंटीन में बैठकर सोच रहा था कि पीछे से मेरे दोस्त मुकेश ने पुकारा और कहा कि सौरभ क्या सोच रहा है ।
मैंने अशांत मन से कहा कि मैं कुछ नया सोच सकता हूँ क्या बोल बीबी और माता-पिता के बीच पिस रहा हूँ कहते हुए टी वी वाली बात बता दिया था ।
मुकेश ने कहा कि यह सब तो चलता रहता है । चार बर्तन एक जगह हैं तो खनकेंगीं ही ।
तुम्हें एक अच्छी ख़बर सुनाता हूँ । तुम्हें याद है हम दोनों ने मिलकर हर महीने चिट में पैसे डालते थे पिछले महीने चिट ख़त्म हो गया है । हमें तीस हज़ार मिलने वाले हैं।
मुझे याद आया था कि रम्या को बिना बताए मैं हर महीने चिट में कुछ पैसे भरता था ।
अब एक साथ तीस हज़ार मिलने वाले हैं तो रम्या कबसे सोने की चूड़ियाँ माँग रही थी उसे ख़रीद सकता हूँ या फिर टी वी और फ्रिज का इन्स्टॉल मेंट एक साथ भर दूँगा तो महीने में कुछ पैसे बच जाएँगे।
देख सौरभ सपने देखना बंद कर और मेरी बात मान यह पैसे तुम्हारे माता-पिता को दे दे
और रम्या को वे अपनी तरफ़ से ये पैसे दे देंगे तो रम्या थोड़े दिन तक उनकी तरफ़ ध्यान नहीं देगी। उसकी यही शिकायत है ना कि माँ पिताजी की तरफ़ से कुछ भी पैसे नहीं मिलते हैं मुफ़्त की रोटी तोड़ रहे हैं ।
सौरभ ने कहा कि नहीं यार रम्या बहुत जल्दी बात पकड़ लेती है और माँ पिताजी भी झूठ बोलने के लिए तैयार नहीं होंगे ।
अचानक से मुकेश ने कहा तुम्हारी माँ रेडियो स्टेशन में काम करतीं थीं ना । सौरभ ने कहा कि थी नहीं अभी भी कर रही हैं परंतु तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो ।
मैं तुम्हें एक उपाय बताना चाहता हूँ कि तीस हज़ार रुपये का डी डी माँ के नाम पर ले और एक पत्र तैयार कर कि पुराने कलाकारों को तीस हज़ार रुपये और हर महीने पाँच सौ रुपये पेंशन के रूप में दिया जाएगा । सौरभ ने कहा कि वर्कआउट होगा ना । मुकेश ने कहा कि बिना डरे पहले काम कर सब ठीक हो जाएगा । पहली तारीख़ को पत्र और डी डी माँ के नाम पर भेज दिया था ।
ऑफिस से घर आते हुए मैं सोच रहा था कि आज ही इन्हें डी डी मिल गया होगा । घर पहुँच कर देखा कि सब अपना काम कर रहे हैं पिताजी बाहर बैठे हुए थे ।
मैं जैसे ही अंदर जा रहा था कि पिताजी ने मुझे बुलाकर कहा कि तैयार होकर आजा तुझसे बात करनी है।
मैं जैसे ही अपने कमरे में पहुँचा रम्या ने खुश होकर कहा कि आपको मालूम है माँ जी को रेडियो स्टेशन से पत्र मिला है साथ ही तीस हज़ार रुपये की डी डी भी मिला है और हर महीने पाँच सौ रुपये पेंशन भी मिलेगा ।
मैंने सोचा हमेशा तुम्हारी माँ कहने वाली रम्या आज माँ जी माँ जी कहकर संबोधित रही है याने कि पैसे का असर हो रहा है । मैं सिर्फ़ हँसते हुए उसे देखकर वाशरूम फ़्रेश होने के लिए चला गया था ।
मैं फ्रेश होकर बाहर आया तो रम्या मेरे लिए चाय लाई उसने पिता जी से भी पूछा आपके लिए चाय लाऊँ । मैं मन ही मन मुकेश को धन्यवाद कहने लगा ।
पिताजी ने मुझे बैठने के लिए कहा जब मैं उनके करीब बैठ गया तो उन्होंने कहा कि हम दोनों ने मिलकर एक निर्णय लिया है ।
मेरे चेहरे को देख कर कहा देखो बेटा अब हमारी उम्र हो गई है इस उम्र में हम से छोटों से बातें सुनना हमारे लिए शोभा नहीं देता है ।
मैं बहुत दिनों से वृद्धाश्रम की खोज कर रहा था । वहाँ कुछ पैसे डिपॉजिट करने पड़ते हैं जिसके लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं इसलिए मैं चुप हो गया था ।
कल जब तुम्हारी माँ के पैसे आए तो मैंने सोचा है कि वहाँ हम दोनों के लिए बीस हज़ार रुपये भर दूँगा । बाक़ी के बचे दस हज़ार रुपये से बहू के लिए सोने के कड़े बनवा दूँगा सोच रहा हूँ ।
उनकी बातों को ध्यान से सुनकर मैंने कहा कि आप मेरे रहते हुए वृद्धाश्रम नहीं जाएँगे ।
माँ ने कहा कि नहीं बेटा घर में अशांति फैलाने के बदले में हम दोनों चले जाएँगे तो अच्छा है तुम अपने परिवार के साथ खुश रहो । हम शहर में ही हैं । तुम हर सप्ताह हमें देखने के लिए आना ! आओगे ना । महीने में एक बार बहू और बच्चों को लेकर आ जाना । हम लोग कभी हम आ जाएँगे । आज सुबह ही हम दोनों वृद्धाश्रम गए थे और पैसे भरकर आ गए हैं ।
उनकी बातों को सुनकर मुझे बुरा लग रहा था कि उन्हें पैसे देकर मैं घर में शांति लाना चाहता था । यहाँ सब कुछ उल्टा हो गया है । मैं उन्हें अपने घर में ही रखकर ख़ुशियाँ देना चाहता था लेकिन उनके फ़ैसले ने मेरे दिल के टुकड़े कर दिए थे । दूसरे ही दिन माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़कर आ गया था ।
रम्या ने एक बार ही कहा कि यह निर्णय क्यों लिया है क्योंकि पैसे जाने का दुख था फिर उसने भी उन्हें नहीं रोका । उनके जाने के बाद घर में शांति आ गई थी । किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं थी । मैं ही सप्ताह में एक दिन उनके साथ बिताकर आ जाता था ।
के कामेश्वरी