“दी, आप के पास कुछ पेपर भेजा है, हस्ताक्षर कर भेज दीजियेगा”मानसी ने रीमा को फोन पर सूचना दी।
” कैसे पेपर भाभी”रीमा ने पूछा.
“वो दीदी.. वो बड़ी भाभी ने कहा था, मकान के और गांव की जमीन के पेपर पर आप के हस्ताक्षर ले लें, कहीं बाद में आप हिस्सा ना मांगने लगें ” मानसी थोड़ा संकोच से बोली।
“भाभी, पापा को गये एक महीना भी नहीं हुआ, और इतनी जल्दी आप लोगों ने भी ये सब सोच लिया, अरे जब पिता के रहते कभी कुछ नहीं माँगा तो आज आप लोगों से हिस्सा मांगूंगी, कितनी ओछी सोच हो गई है आप लोगों की। और भाई ने आपको एक बार भी मना नहीं किया।
“दी, सबकी सहमति से मैंने आपको बोला “।मानसी थोड़ी कटुता से बोली।
“ठीक है मैं हस्ताक्षर कर के भेज दूंगी, वैसे आपको एक बात बता दूँ, “ना मुझे आपके पैसे चाहिए और ना आपकी प्रॉपर्टी… सिर्फ आप सबके प्यार का एक छोटा सा टुकड़ा चाहिये था, जहाँ मै अपने बचपन को, मम्मी -पापा को, भाई -बहन का स्नेह महसूस कर सकूँ।”कह रीमा ने दुखी मन से फोन रख दिया।
पिछले महीने ही तो उसके पापा, श्यामसुंदर जी का देहांत हुआ था। जब खबर मिली तो, मायके पहुंचते रात हो गई, ये तय हुआ सारे कार्य अगले दिन किया जायेगा। रीमा का मन भरा हुआ था, पिता का जाना, उसके अंतस को सूना कर गया, सब कुछ वो उन्हीं से तो कहती थी। राजदुलारी जो थी उनकी,
शादी के बाद भी पिता के प्यार में कोई कमी नहीं आई, ना भाइयों के प्यार में कोई कमी। पर पिता के जाते ही जाने क्यों रीमा को उस घर में एक परायेपन की गंध आने लगी। भाभियों की खुसूर -पूसुर, कहीं रीमा को कुछ अनहोनी की सूचना दे रहा था,।फिर भी रीमा को अपने भाइयों पर बहुत विश्वास था।
और आज ये फोन, रीमा के दिल को तोड़ने के लिये काफी था। रीमा ने कभी भी, चाहे उसकी कैसी भी परिस्थिति रही हो, पिता से कभी सहायता नहीं मांगी।और आज भाई – भाभी को उस पर इतना अविश्वास हो गया। हस्ताक्षर कर रीमा ने पेपर भेज दिया। भाभी ने एक -दो बार कॉल किया पर रीमा का मन मायके से हट गया था।
कल को वहाँ गई भी तो क्या पता भाभी कह ना दे कि लेने आती हैं।सब कुछ दिल में दफना कर,रीमा अपना पूरा ध्यान अपनी गृहस्थी में लगाने लगी।कभी मायके की याद आती भी तो रीमा दिल के उस खाने पर मजबूती से ताला जड़ देती।
समय बीता, रीमा के भतीजे -भतीजियां बड़े हो गये, भतीजी की शादी पर बड़े दिनों बाद रीमा मायके गई, इस भतीजी से रीमा को बहुत लगाव था, अतः उसके आग्रह को टाल ना पाई। पर मायके में, उसने वो महक नहीं महसूस की, जो पहले आती थी। शादी का कार्यक्रम निपटा, रीमा लौटने के लिये सामान बाँधने लगी,
तब दोनों भाभियाँ उसके पास आई,-रीमा दी ये आपकी विदाई की साड़ी और दामाद जी के कपड़े. , और इस लिफाफे में कुछ कैश हैं, थोड़ा सा आपको भी देना तो बनता हैं।भाभी ये सब आप ही रखों, मेरी विदाई तो पापा के जाते ही हो गई थी। मैंने पहले भी कहा था,
मुझे आपके पैसों या उपहारों से कोई मोह नहीं हैं। कह रीमा सामान सहित बाहर निकल गई। पत्नियों के साथ खड़े भाई भी चाहते हुये भी रीमा को रोक ना पाये। शर्म से उनके सर झुके हुये थे
उनके सर शर्म से यूँ ही नहीं झुके, बेटी की शादी के समय भाई के बेटे -बहू ने उनको ज्यादा खर्च करने को मना किया, तब रीमा के भाई नाराज हो बेटे से बोले -प्रॉपर्टी पर जितना तुम्हारा हक़ हैं, उतना मेरी बेटी का भी हैं।
“नहीं पापा, बेटियों का कोई हक़ नहीं हैं, ये तो हमने आपसे और मम्मी से ही सीखा। आपने अपनी इकलौती बहन को प्रॉपर्टी नहीं दी,
तो मै अपनी दो बहनों को कैसे हिस्सेदार बना सकता हूँ, और हाँ, हर बार उन्हें महंगे उपहार नहीं देना हैं। मै भी वही करूँगा जो मेरी बीवी कहेगी, बच्चे भी वही सीखते हैं, जो माँ -बाप को करते देखते हैं “। बेटा मधुर बोला।
मानसी भाभी सन्न थी, उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था कि उनका बेटा ही उन्हें एक दिन सच का आईना दिखायेगा।
पर अब वो अपनी गलती नहीं सुधार सकती, बहुत समय बीत गया।रिश्तों में एक दूरी आ गई थी।एक लड़की से उसका मायका छुड़वा कर, बददुआ तो ली साथ ही उन्होंने अपने लिये कुआँ भी खोद दिया।
एक दिन सुबह कॉलबेल की आवाज से रीमा की नींद टूटी, दरवाजा खोला तो विमूढ़ सी खड़ी रह गई। भाई -भाभी के झुके सर और आँखों के आँसू ने उनके मन की व्यथा रीमा तक पहुंचा दी। तभी रीमा के पति उमेश आये -क्यों रीमा, भैया लोगों को अंदर नहीं आने दोगी क्या, तब रीमा होश में आई। भाई -बहन का मिलन सबके आँखों में आँसू ला दिया।” मुझे माफ कर देना ननद रानी, मै बीता समय तो नहीं लौटा सकती हूँ पर आने वाला समय आपका खूबसूरत बना सकती हूँ” मानसी कहते रो पड़ी। गिले -शिकवे देर से ही सही पर दूर हुये।
दोस्तों, कई बार पैसों की वजह की नाराजगी लम्बी हो जाती हैं, समय तो भागता रहता, और हम अहम में भूल जाते कि समय को पकड़ा नहीं जा सकता, तो क्यों नहीं समय रहते ही अपने रिश्तों को सुधार ले। जिंदगी बहुत छोटी हैं, इसे गिले -शिकवे में खत्म ना करें..।
—संगीता त्रिपाठी
VM