संजय शुक्ला रिटायर्ड IAS जो सचिव के पद से रिटायर हुए एक काॅलोनी में अपने
निजी बनाये मकान में एक वर्ष पूर्व ही शिफ्ट हुए थे। रिटायर होने के बाद भी उनका रुतबा अभी वही बना हुआ था। वे अडोस – पडोस में न किसी से बात करते न घुलने मिलने का प्रयास। यदि कोई आगे से नमस्कार भी करता तो वे गर्दन हिला उसी तरह नमस्कार स्वीकार करते जैसे कोई उनका मातहत कर रहा हो। परिवार में पत्नी, एक बेटा-बहू-पोता एक बिनव्याही कालेज जाती बेटी थी।
बेटा खुद तो इतना योग्य नहीं था किन्तु पिताजी के रुतवे से राजस्व विभाग में अधिकारी था और उसकी पत्नी सामाज सेबी। उनकी पत्नी जरूर सीधी सरल स्वभाव की थीं वे जमीनी हकीकत से जुड़ी हुई सबसे मिलना-जुलना , व्यवहार रखती थी।
जब तक संजय जी नौकरी में थे अलग ही ठाठ-बाट थे। इतने उच्च पद पर आसीन बड़ा सा बंगला, सरकारी कर्मचारी, अमला सारे काम हो जाते चाहे वे घर के हों या बाहर के । घर की साफ सफाई, अन्य घरेलु कार्य बागवानी के लिए माली सब उपलब्ध थे। बच्चे भी इस तरह के वातावरण में रहकर थोडे घमंडी, खुले हाथ से खर्च करने वाले, घूमने -फिरने के शौकीन थे। पढाई लिखाई में ज्यादा मन नहीं लगता।
कहते हैं जब इंसान को सब सुख सीधा मिल जाए तो वो क्यों हाथ-पैर चलाए। सो इनका बेटा कुछ खास नहीं बन पाया। ग्रेजुएशन किया और संजय जी ने अपने पद के प्रभाव से उसे राजस्व विभाग में अधिकारी लगवा दिया।एक अच्छे विजनेसमेन के परिवार की लड़की से उसकी शादी हो गई।
लडकी भी दौलत में खेलती आई थी सो बह कोई काम नहीं करती, सिर्फ अपनी किटी पार्टी, शापिंग, सहेलियों के साथ घूमना फिरना। समय बिताने के हिसाब से सामजिक संगठनों से जुड गई ।
रिटायर होने के बाद अब यहाँ इतने नौकर चाकर तो थे नहीं ।दूधवाले से दूध भी लेना पड़ता, सब्जीवाले से सब्जी| काम करने आती है मैड से काम भी करवाना पड़ता। किन्तु बहू को कहाँ समय था। यह सब काम संगीता जी ही देखती थीं । वे इतनी मिलनसार थीं कि दूध लेते कभी दूधवाले से उसकी दो बातें सुख-दुख की सुन लेतीं। सब्जीवाले से उसके परिवार के हालचाल जान लेतीं ।
कभी उसे ठंडा पानी लाकर देतीं कि धूप में ठेला खींच रहा है। उनकी ये बातें परिवार में किसी को न सुहाती। उनकी नजर में इससे रुतबा कम होता है। क्या इन गली मोहल्ले बालों के मुँह लगो।
एक बार काॅलोनी के सभ्रांत व्यक्ति उनसे परिचय करने आगे होकर आए और उनसे बोले संजय जी आप पार्क में आया करें वहाँ बहुत अपनी उम्र के लोग मिलेंगे बातचीत करने, योगा करने में ,हंसी मजाक करने अच्छा समय बीत जाता है।
उन्हें उन्होंने बडे ही रुखे शब्दों में बोला में ज्यादा किसी से मिलना-जुलना पसंन्द नहीं करता । आप लोग अपने काम में व्यस्त रहें मेरी चिन्ता न करें। फिर किसी ने उनकी तरफ रुख नहीं किया। वे अभी भी अपने पद के नशे में चूर थे।
एक दिन अचानक उनकी पत्नी की तबीयत खराब हो गई उन्हें सीने में जोर
से दर्द की शिकायत हुई और वे वेहोश हो गईं । उन्होंने बच्चों को आवाज लगाई जल्दी आकर देखो तुम्हारी माँ को क्या हो गया है। बेटा जो ऑफिस जाने की तैयारी रहा था बोला पापा डाक्टर को फोन लगाओ। मेरे आफिस में आज अर्जेंट मीटिंग है सो मैं नहीं रुक सकता। घर में जूही,( बहू) और रिया(बेटी )है उनकी मदद ले लो कह वह चला गया।
उन्होंने अपने पुराने ऑफिस फोन लगाया ओर पीए को बोला तुरन्त डाक्टर को भेजो मेरी पत्नी की तबियत बहुत खराब है। जब बहुत देर हो गई और कोई जवाब नहीं आया तो उन्होंने फिर फोन लगाया और थोड गुस्से से बोले अभी तक व्यवस्था क्यों नहीं हो पा रही है
इमरजेन्सी है। उधर से जवाब आया सर अभी आपकी जगह जो नये सचिव आये हैं उनकी मम्मी की तबियत खराब है सो सारे डाकर्टस की टीम उन्हें सम्हालने में व्यस्त है। आपके पास अभी नहीं पहुँच सकते। यह सुन आगबबूला हो गये। रिटायर अधिकारी की कोई पूछ ही नहीं है। नये सचिव की मां को सम्हालने में लगे हैं ।
उधर कार्यालय के कर्मचारी बात कर रहे थे किसे सम्हालें रिटायर को या जो पद पर हैं उसे । तभी फिर फोन बजता है, संजयजी कह रहे थे कि जल्दी से एम्बुलेन्स की व्यवस्था करो हास्पीटल ले कर जाना है। तब तक उन्होंने अपनी बहू से कहा जूही तुम मेरे साथ हास्पिटल चलो मैं अकेला
नहीं सम्हाल पाऊंगा।
जूही पापाजी मैं कैसे चल सकती हूं , मेरी तो आज एक नारी सशक्तीकरण की सभा है और मुझे उसमें स्पीच देना है में चीफ गेस्ट भी हूँ सो चलना संभव नहीं है। आप रिया को ले जाएं। तब वे रिया से बोले रिया बेटी तुम मेरे साथ चलो मैं अकेला नहीं सम्हाल पाऊंगा। वह बोली पापा, इतनी भी तबीयत खराब नहीं है मम्मी की आपने पहले भी तो अकेले ही सम्हाला था मुझे कालेज जाना है आप ले जाओ यदि जरूरत लगे तो मुझे फोन कर देना में पहुंच जाऊंगी।
तब तक एम्बुलेन्स सायरन बजाती आ गई। एम्बुलेंस कर्मचारियों की मदद से पत्नी को चढाया अकेले ही खुद चढ गये। एम्बुलेन्स की आवाज सुनकर आस-पड़ोस के लोग बाहर निकल आये थे दूर से ही देख रहे थे कि क्या हुआ।
बहू, बेटी को साथ न जाते देख एक सज्जन जो उनके बिल्कुल ही पड़ोस में रहते थे आगे आये और बोले आप अकेले ही जा रहे हैं अस्तपताल में एक से दो व्यक्तियों की जरूरत पडती है चलिए हम आपके साथ चलते हैं कह उन्होंने अपने बेटे को अवाज लगाई। बेटा तुम भी हमारे साथ चलो पता नहीं क्या जरूरत पड जाये और हाँ कुछ पैसे भी ले आओ। संजय जी इतने दुखी थे कि उनकी आवाज नहीं निकल रही थी।
वे अस्तपताल पहुँचे उन्हें इमरजेंसी में एडमिट कर लिया। दोनों बाप- बेटे ने खूब भाग दौड़ की उन्हें पत्नी के पास रूकने को कह दिया। बाद में सुबह से दोपहर हो गई। उनके बच्चों में से कोई उनके पास नहीं आया। न किसी ने मम्मी की सुध ली और न किसीने उनके खाने-पीने की चिन्ता की।वो तो भला हो उस पडोसी का जिसने फोन कर अपने और शुक्ला जी के लिए बेटे को भेजकर घर से खाना मंगवा लिया। बडे संकोच के साथ उन्होंने खाना खाया।
शाम तक उनकी पत्नी की हालत में सुधार हुआ तो उन्हें कुछ तसल्ली हुई। किन्तु शाम तक भी परिवार का कोई सदस्य अस्पताल नहीं पहुँचा। तब उन्होंने बेटे को फोन किया कि तुम लोग यहाँ आकर सम्हालो मैं बहुत थक गया हूँ।
तब बेमन से बेटा एवं बेटी आई। आते ही बेटा उन पर झल्ला पडा अकेले आप ही नहीं थके हैं में भी तो सारा दिन ऑफिस से थक कर आया हूँ यहाँ क्या सम्हालना है ,ICU में अटेण्डेंट सम्हालता तो है।
बेटी भी भाई के सुर में सुर मिलाकर बोली हां पापा भाई सही कह रहे हैं आप भी घर चल कर आराम करें यहाँ स्टाफ सम्हाल लेगा।
वे अचम्भीत से बेटे-बेटी का मुंह देखते रह गये। ये बच्चे क्या बोल रहे हैं। इन्हें अपनी माँ की रत्तीभर भी फ़िक्र नहीं है। जो मां रात दिन इनकी फरमाइशें पूरा करने में लगी रहती थी। कभी अपने आराम के बारे में नहीं सोचा आज उसकी जरूरत के समय कैसे विमुख हो गए। इस तरह का
व्यवहार तो कोई परायों के साथ भी नहीं करता ये तो उनकी मां है।
थोडी देर रुकने के बाद वे बोले पापा घर चलो मैंने बात करती है स्टाफ सम्हाल लेगा।
नहीं तुम जाओ मैं यहीं रूकूंगा।
पडोसी सज्जन कुछ दूरी पर बैठे सारा वार्तालाप सुन रहे थे परिस्थिती को भांप उन्होंने अपने घर फोन किया और बेटे से बोले बेटा दो व्यक्ति का खाना लेकर आ जाओ ।
ठीक है पापा आप नहीं चलना चाहते तो हम जा रहे हैं आपका खाना।
नहीं मुझे खाने की भी जरूरत नहीं है भूख नहीं है।यह सुन दोनों चले गए। अपने बच्चों का व्यवहार देख शुक्ला जी सोच रहे थे कि मैंने अपने बच्चों को क्या संस्कार दिये हैं कि आज उन्हें अपनी मरणासन्न मां की भी चिन्ता नहीं है। अपने बूढ़े बाप की चिन्ता नहीं है जो सुबह से यहां बैठा है। अरे में स्टाफ के भरोसे कैसे अपनी पत्नी को छोड़ जाऊँ। रात को कोई जरूरत पड गई तो।
आज चलचित्र की भाँति उन्हें अपना अतीत आंखों के सामने घूमता दिखाई दिया। वे भी ग्रामीण परिवेश से थे किन्तु कुशाग्र बुद्धि होने के कारण अपनी लगन और मेहनत से जीवन में यह मुकाम पाया था। उन्हें याद आया कि एक बार गांव में पिताजी की तबियत खराब होने पर कैसे कितनी दूर पैदल पिता को डाक्टर के पास ले गये थे। कैसे दिन रात
उनकी सेवा करते जबकि ये सब करने में उनकी पढ़ाई का नुकसान भी हो रहा था।किन्तु जब-तक वे ठीक नहीं हो गये, उनकी सेवा जारी रही और ये बच्चे मां को स्टाफ के भरोसे छोड़ने को कह रहे है।पद, पैसे के गुरूर में कैसे वे अपनी जड़ों से दूर हो गए। उन्होंने अपनी तरह अपने बच्चों को भी अंहकारी, बना दिया। जबकि संगीता आज भी अपनी औकात नहीं भूली थीं ,
और सबसे हिलमिल कर रहना पंसद करती थी जो उनकी नजर में गंवारूपन था ओर उन्हें देख बच्चे भी उन्हें गंवारूं ही समझते थे। नौकरी करते जब बेटे की तबियत खराब हुई थी कैसे ICU के सामने लोगों की भीड़ लगी थी। आज जानते हुए भी कोई मदद के लिए या हाल-चाल पूछने के लिए नहीं आया।
मैं कितना गलत था पद के नशे में जीवन भर चूर रहा और अब रिटायरमेंट के बाद भी उसी रूतबे में रहना चाहता था, इसीलिए कभी किसी से मिलना जुलना पंसद नहीं किया। आज पडोसी ही काम आया। जब बच्चों ने भी मुंह मोड़ लिया। दुख, क्षोभ से उनकी आँखे छलछला उठीं और वे निढाल से हो गए।
तभी पडोसी का बेटा खाना लेकर पहुँचा और बोला अंकल जी आइये खाना खा लें। पडोसी सज्जन बोले आप चिन्ता न करें सब ठीक हो जाएगा। पहले गर्मागर्म खाना खा लें और फिर कुछ देर आराम कर लें तब तक में बैठा हूं । फिर आप उठ जाना मैं सो जाऊँगा। खाना खाते-खाते उनके आंसू निकल आए और अपने व्यवहार पर शर्म से गर्दन झुकी थी। सारा पद का नशा उतर चुका था। इस घटना ने उन्हें एक सामान्य नागरिक की श्रेणी में ला खडा कर दिया।
शिव कुमारी शुक्ला
1-5-24
स्वरचित,मौलिक एवं अप्रकाशित
हां ये संपूर्ण कहानी है लेकिन बच्चे तो ठूंठ के ठूंठ ही रहे वो कैसे अच्छे नागरिक बनेंगे
Absolutely,