सुबह के पाँच बजे थे । डोर बेल की आवाज़ को सुनकर पंकज की नींद खुली तो उसने सोचा कि अब इस समय कौन हो सकता है सोचते हुए ही धीरे से दरवाज़ा खोलने के लिए गया तब तक बेल तीन बार बज चुका था ।
उसने जैसे ही दरवाज़ा खोला आश्चर्य से उसका मुँह खुला रह गया था क्योंकि उसके माता-पिता वहाँ खड़े हुए थे । जल्दी से उसने उनके पैर छुए और गले लगाया । उनके सामान हाथ में लेकर दोनों को अंदर लेकर आया यह कहते हुए कि आप दोनों को मैं दो साल से बुला रहा हूँ आप नहीं आए थे तो मैंने तो आपके आने की आशा ही छोड़ दी थी ।
आज अचानक आप दोनों को यहाँ देखकर बहुत ही अच्छा लग रहा है । आप दोनों को एक साथ छुट्टी मिल गई बहुत बढ़िया है ।
वह बातें करते हुए ही रसोई में चाय बनाने लगा । सुजाता ने कहा कि मैं बना देती हूँ तू हट । परंतु उसने उनकी एक ना सुनी और चाय बनाकर ले आया था । तीनों ने मिलकर चाय पिया । पंकज ने उन्हें उनका रूम दिखाया और कहा कि आप दोनों फ्रेश हो जाइए।
सुजाता और जगन्नाथ दोनों हैदराबाद में रहते हैं । वे एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं । दोनों को एक साथ छुट्टी नहीं मिलती थी । इसलिए पंकज के लाख बुलाने पर भी वे उसके साथ रहने के लिए बैंगलोर नहीं आ सके थे । इस बार भाग्यवश उन दोनों को पंद्रह दिनों की छुट्टी एक साथ मिल गई थी तो सोचा पंकज को सरप्राइज़ दे देते हैं इसका ही नतीजा है कि वे दोनों यहाँ हैं ।
वे दोनों नहा धोकर बाहर आए तो देखा पंकज ने उपमा बना दिया था । सुजाता ने कहा कि तूने क्यों बनाया है बेटा मैं बना देती थी ना । उसने उन दोनों को प्लेट में परोसा और एक प्लेट में उपमा लेकर अपने कमरे में चला गया ।
सुजाता ने फुसफुसाते हुए जगन्नाथ जी के कान में कहा कि देखा आपने हमें आए हुए इतनी देर हो गई है परंतु बहू अभी तक हमसे मिलने नहीं आई है । पंकज जिसे मैंने बहुत ही लाड़ प्यार से पाला है उससे घर के काम करा रही है।
जगन्नाथ ने कहा कि देख सुजाता उनके बारे में कुछ मत कह हमें मालूम नहीं है ना कि आख़िर बात क्या है ।
इतने में पंकज आया और तीनों ने नाश्ता किया । सुजाता ने कहा कि खाना मैं बना देती हूँ तुम ऑफिस के लिए तैयार हो जाओ ।
उसी समय बहू सुप्रिया कमरे से बाहर आई और दोनों के पैर छूकर उनका हाल-चाल पूछकर ऑफिस के लिए निकल गई थी ।
पंकज माँ के पास आकर बैठ गया और कहने लगा कि मैंने ऑफिस से छुट्टी ले ली है माँ मैं आप लोगों के साथ समय बिताना चाहता हूँ ।
सुजाता खुश हो गई और उस दिन उसने पंकज की पसंद के व्यंजन ही खाने पर बनाए ।
पंकज रसोई में उसकी मदद करते हुए वहीं खड़ा रहा । सुजाता ने खाना बनाते हुए ही कहा कि बेटा बहू को क्या हो गया है उन्हें हमारा यहाँ आना पसंद नहीं है शायद ।
इसलिए तू बुरा मत मानना तुम्हें हम देखना चाहते थे देख लिया है । हम लोग कल चले जाएँगे ।
पंकज के हाथ रुक गए और कहा माँ आज ही तो आई हो । पंकज मैंने तुम्हें बहुत ही लाड़ प्यार से पाला है बेटा । तुम्हें इस तरह मेरी आँखों के सामने काम करते देख मेरा दिल दुखता है ।
पंकज ज़ोर से हँसते हुए कहने लगा माँ पहली बात यह है कि पंद्रह दिन मुझे रात को काम करना पड़ता है और पंद्रह दिन सुप्रिया को रात को काम करना पड़ता है तो हम दोनों में से जब जिसको समय मिलता है हम काम कर लेते हैं वैसे भी माँ घर हम दोनों का है तो काम भी दोनों करेंगे तो क्या हो जाएगा ।
मनुष्यों में स्त्री पुरुष में भेदभाव हमने कर लिया है । अब कामों में भी भेदभाव होगा क्या कि घर के काम सिर्फ़ औरत करेगी पुरुष नहीं करेंगे । जब स्त्री बाहर नौकरी करके पैसे कमा सकती है तो पुरुष घर के काम क्यों नहीं कर सकते हैं ।
सुप्रिया के इस व्यवहार पर दुखी मत होना क्योंकि वह खुद बहुत दुखी है । कुछ दिन पहले ही उसे प्रमोशन मिला था वह बहुत ही खुश थी अपने सभी साथियों को बता दिया था कि उसे प्रमोशन मिल गया है । ऑफिस के कुछ सीनियर्स को यह बात हज़म नहीं हो पाई ।
उन्होंने उसके ख़िलाफ़ ग़लत प्रचार किया और उसके प्रमोशन को रोक दिया गया है । उसकी क़िस्मत ऐसी है कि यह सब कल ही उसे पता चला है । वह सदमे में है आप लोगों को कैसे मुँह दिखाऊँ और आप उसके बारे में क्या सोचेंगे सोचते हुए वह खाना भी नहीं खा रही थी । मैंने ही कल ज़बरदस्ती उसे थोड़ा सा खिलाया है ।
वह इतनी अपसट हो गई है कि नया जॉब ढूँढने की कोशिश कर रही है वह यहाँ काम नहीं करना चाहती है ।
सुजाता ने उसकी बातों को सुनकर कहा सॉरी पंकज मैंने कुछ ज़्यादा ही सोच लिया था ।
पंकज से बातें सुनकर भी सुजाता खुश नहीं हुई थी । उसने सोते समय जगन्नाथ से कहा कि मुझे बहू का व्यवहार बिलकुल पसंद नहीं आ रहा है । यह क्या बात हुई कि ऑफिस के लफड़े घर तक लेकर आई और सारा काम पंकज से करा रही है । मैं भी तो नौकरी कर रही हूँ कभी भी आपसे कुछ काम कराया है क्या?
कहते हैं ना कि जो करे नौकरी उसकी क्या हेकड़ी । जब चार लोगों के साथ काम करते हैं तो ऐसी स्थितियों का सामना करना ही पड़ता है ।
इस तरह से घर में लोगों के साथ रहने से अच्छा लगता है क्या? आप तो जानते हैं कि मैं जब शादी करके आई थी तब हमारा संयुक्त परिवार था । आपके माता-पिता दो भाई दो बहनें आने जाने वाले लोगों का तो ताँता ही लगा रहता था ।
मैंने कभी चूँ चाँ नहीं की थी । सबके लिए नाश्ता , खाना बनाकर जाती थी और शाम को आते ही फिर काम पर लग जाती थी । मेरे साथ भी ऑफिस में ऐसी घटनाएँ हो जाती थी आपको याद है जब प्रमोशन मुझे ना देकर मेरी जूनियर को मिला था ।
हमें दुख होता है परंतु ऑफिस को घर की दहलीज़ के बाहर ही छोड़ कर आना चाहिए । ऑफिस और घर के बीच एक सीमा रेखा खींची जाये तो ऐसे प्रॉब्लम नहीं होंगे ।
जगन्नाथ ने उनकी सारी बातें सुनी और कहा कि मैं एक बात कहूँ सुजाता यह ठीक है कि मैं तुम्हारी मदद नहीं करता हूँ तुम्हें अकेले ही सारा काम करना पड़ता है । मेरी परवरिश ही ऐसी हुई थी।
तुम कह रही हो ना कि मैं सारा काम करके ऑफिस जाती थी और वहाँ से आकर सब काम करती थी । तुम्हें नहीं पता है कि मेरी माँ तुम्हारे लिए क्या सोचती थी । उनका कहना है कि सुजाता दिन भर काम के बहाने घर से बाहर रहती है और उसके जाने के बाद से वापस आने तक कितना काम होता है उसे क्या मालूम होगा । मैं काम करती हूँ का ढोल पीटने के सिवा उसे क्या आता है ।
सुजाता आश्चर्यचकित होकर जगन्नाथ को देखने लगी थी ।
उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सासुमाँ उसके बारे में ऐसा कुछ सोचती हैं । जगन्नाथ ने कहा कि यह तुम्हें पता है… नहीं ना और मजे की बात यह है कि मेरी माँ को मेरी दादी बातें सुनातीं थीं । इसलिए मेरी बात मानो और सास बनकर नहीं बहू की तरह सोचो ।
हमारा बेटा समझदार है इसलिए चल गया वर्ना तुम्हारी बातों को सुनने लगा तो दोनों के बीच तकरार का कारण तुम बन जाती थी । इस बात पर खुश रहो कि वे दोनों मिलकर अपना काम बिना किसी अनबन के आराम से कर रहे हैं ।
एक बात कहूँ पंकज ने तुम्हें बताया था कि सुप्रिया उदास क्यों है फिर भी तुमने उसके पास जाकर उससे बात करने की कोशिश नहीं की है । तुम सोचती हो कि तुम सास हो तो बहू ही तुमसे आकर मिले पढ़ी लिखी हो समझदार हो मेरी बात तुम्हें समझ में आ गई होंगी। अपने रिश्ते में एक सीमा रेखा बनाए रखोगी तो रिश्ते में दरार नहीं पड़ेगी । कहकर जगन्नाथ जी सोने चले गए ।
सुजाता को लगा कि वे ठीक ही तो कह रहे हैं मैंने बहू से बात नहीं की कि उसे आकर मुझसे करना चाहिए । वह धीरे से उठकर बहू के कमरे की तरफ़ गई थी तो कमरे में बत्ती जल रही थी । उसने दरवाज़े को खोला और अंदर पहुँची तो देखा सुप्रिया आँखों पर हाथ रखकर सो कही थी ।
उसने धीरे से पुकारा सुप्रिया सो रही हो क्या ? वह झट से उठकर कहती है माँ आप अभी तक सोई नहीं । कुछ चाहिए है क्या?
सुजाता ने कहा कि तुम तो दिन भर नौकरी करके ऑफिस से थकी हारी आकर भी नहीं सोई हो । वह सिर झुकाए हुए खड़ी थी । उसका सर ऊपर उठकर सुजाता ने कहा मुझे पंकज ने तुम्हारे ऑफिस के बारे में सब कुछ बता दिया है । जब तुम्हारी कोई गलती नहीं है तो तुम क्यों सर झुकाए खड़ी हो बेटा ।
सुप्रिया ने कहा कि उन्होंने सब कुछ बता दिया है आपको । हाँ परंतु मैं तुम्हारे मुँह से सब सुनना चाहती हूँ ।
सुप्रिया ने सब कुछ विस्तार से सुजाता को बताया उसकी आँखें भर आईं थीं ।
उसने यह भी कहा कि मैं यहाँ नौकरी नहीं करूँगी दूसरे जगह ढूँढ लूँगी । सुजाता ने कहा कि अगर वहाँ भी ऐसा ही हुआ तो ।
बेटा नौकरी चैंज करना समस्या का समाधान नहीं है । यहाँ रहकर अपने आप को प्रूव करो और लोगों को बताओ कि तुम्हें प्रमोशन क्यों मिला था । जा अपना लैपटॉप लेकर आ और मेरे सामने अपने मैनेजर को मेल कर। मैं तुम्हारे साथ हूँ । तुम्हें घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है । सासु माँ की बातों से सुप्रिया को हिम्मत आई और वह लैपटॉप लाने के लिए फुदकती हुई चली गई ।
दोस्तों जनरेशन गेप के कारण बच्चे अपनी समस्या को बड़ों से बताने के लिए हिचकिचाते हैं । उन्हें हौसला दीजिए कि समस्या का समाधान हो ना हो परंतु बड़े उन्हें सलाह तो दे सकते हैं ।
के कामेश्वरी
Excellent . Generation change ho raha hai. Parents and children need to understand each other’s needs and feelings 👌
https://www.betiyan.in/sarthak-budapa/#comment-6316