पितृ दान-मुकेश कुमार

दमयंती जी अपने बेटे  दीपक को फोन लगा रही थी।  लेकिन फोन लग नहीं रहा था वह काफी परेशान हो गई थी क्योंकि घर पर बैंक  वाले आए हुए थे उन्होंने 15 दिन पहले ही घर खाली करने का नोटिस देकर गए थे कि अगर आपने समय पर लोन नहीं चुकाया तो आपका घर  नीलम करा दिया जाएगा।

वास्तव में हुआ यह था कि दीपक पढ़ाई में बहुत ही होनहार था उसकी पढ़ाई रुके नहीं इसलिए दीपक के बाबूजी ने अपने घर के ऊपर ही बैंक से लोन लिया था कि दीपक उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें।  उन्होंने सोचा जब दीपक की नौकरी लग जाएगी तो पैसे भेजेगा तो हम बैंक का लोन चुका देंगे।

दीपक की नौकरी भी लग गई थी और उसके बाद शादी भी हो गई थी लेकिन जब भी दीपक के बाबू जी दीपक से लोन की बात करते तो वह यह कह कर टाल देता कि बाबूजी इस महीने बहुत खर्चा हो गया है अगले महीने से मैं आपको पैसे भेज दिया करूंगा आप बैंक की किस्त चुका दिया करना।  लेकिन दीपक ने एक बार भी एक रुपए भी अपने बापूजी को नहीं भेजा।



राघोजी और दमयंती परेशान थे कि अगर उनका घर छिन जाएगा तो वह अब जाकर कहां रहेंगे।  दमयंती जी के आग्रह करने पर बैंक वालों ने बोला कि हम आपको एक घंटा का मोहलत देते हैं अगर आप 1 घंटे के अंदर हमारे पैसे चुका देती हैं तो हम आपके घर को नीलाम होने से रोक लेंगे।  जब दीपक का फोन नहीं लगा तो दमयंती जी ने अपनी बेटी राखी के पास फोन लगाया जो दिल्ली में ही रहती थी। राखी ने फोन उठाया तो राखी की मां फोन पर वह सारा वृत्तांत अपनी बेटी को बताया कि बैंक वाले आए हैं हमारा घर नीलाम होने वाला  है। राखी बोली की मां मैं बताओ क्या करूं मैंने कई बार दीपक को यह बात बोला है ।

लेकिन वह सिर्फ टालता रहता है।  दमयंती जी बोली कि वह फोन भी नहीं उठा रहा है समझ में नहीं आ रहा है कि अब हम लोग क्या करें कहां जाएं।  राखी बोली मां तुम लोग दिल्ली की बस पकड़ कर दिल्ली आ जाओ मैं तुम्हें बस अड्डे से पिकअप कर लूंगी और मैं दीपक के घर पहुंचा दूंगी।

दमयंती जी और राघव जी के पास इसके अलावा कोई रास्ता नहीं था उन्होंने अपना सामान उठाकर अपने बेटे के घर रहने के लिए दिल्ली के बस पकड़ लिया था।  बस अड्डे पर पहले से ही उनकी बेटी राखी उनका इंतजार कर रही थी और उनको लेकर अपने घर आ गई।

अगले दिन दीपक को जब यह बात पता चला कि उसका गांव का घर नीलाम हो गया है और उसके मां बाबूजी उसकी बहन राखी के यहां आकर ठहरे हुए हैं तो वह अपने मां बाबूजी को अपने  पास उनको ले जाने के लिए आ गया। अगली सुबह दीपक अपने मां बाबूजी को लेकर अपने घर पर आ गया था।

शुरू के कुछ दिन तो दीपक की पत्नी ने भी उसके मां बाबूजी को सही से सेवा सत्कार किया।  लेकिन उसको यह बात मालूम नहीं था कि उनका गांव का घर नीलाम हो गया है और यह लोग अब हमेशा के लिए यही रहने आ गए हैं।



जैसे ही दीपक की पत्नी को यह बात पता चला उस दिन के बाद से ही वह अपने सास ससुर को कष्ट देना शुरू कर दिया था।  यहां तक कि उनका खाना भी अब अलग तरह से बनाती थी। दीपक की पत्नी जब दीपक होता था तो उसके मां-बाप से ऐसे बात करती थी जैसे लगता हो कि वह अपने सास-ससुर को कितना मानती है लेकिन जैसे ही दीपक अपना ड्यूटी पर चला जाता था उनके साथ गाली-गलौज के साथ व्यवहार करना शुरू कर देती थी। दीपक के मां बाबूजी कई बार सोचते थे कि वह बहू की शिकायत अपने बेटे से करें।  फिर यह सोच कर चुप हो जाते थे कि आखिर जैसे भी है अब रहना तो यही है शिकायत करके भी क्या करेंगे।

दीपक भी अपनी पत्नी के आगे कुछ नहीं बोलता था क्योंकि जिस घर में वह रहता था वह दीपक के ससुर ने अपनी बेटी को रहने के लिए दिया था।

ऐसे कर के एक-दो  साल गुजर गए थे दीपक के मां बाबूजी ने भी अपने आपको इसी माहौल में ढाल लिया था जैसी भी उनकी बहू रखती थी वह चुपचाप रह जाते थे क्योंकि उनके पास भी कोई दूसरा सहारा नहीं था कि वह जाएं तो जाएं कहां।  लेकिन इस बार तो दीपक की पत्नी ने दीपक से साफ-साफ कह दिया था कि तुम अपने मां बाबूजी को किसी वृद्धाआश्रम में भर्ती कर दो या तुम कहीं किराए का मकान लेकर इनको रख दो क्योंकि अब मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं उन्हें पढ़ने  के लिए अलग कमरा चाहिए अब हमारे पास कुल मिलाकर दो ही तो कमरे हैं।

मैं अपने बच्चों की जिंदगी खराब नहीं करना चाहती।  यह घर मेरा है मेरे बाबूजी ने मुझे दिया है अगर तुम्हें अपने मां बाबूजी को रखना है तो तुम जाकर किराए पर घर लेकर रख दो।



दीपक का अपने पत्नी के आगे एक  भी नहीं चलती थी जो वह बोलती थी वही दीपक करता था।  उसने आखिर में अपने मां बाबूजी से जा कर यह बात बोल ही दिया कि मां बाबूजी मैं आप लोगों को एक यही शहर में ही अच्छे बृद्धा आश्रम को जानता हूं आप लोग वहीं पर रह जाए क्योंकि आप तो देखी रहे हैं कि घर कितना छोटा है इसमें इतने लोग तो रह नहीं पाएंगे मैं वहां पर आप से  हर संडे को मिलने आ जाया करूंगा।

दीपक की मां ने बोली बेटा हम दरवाजे पर बाहर हमें चारपाई डाल दो हम वहीं पर सो लेंगे लेकिन हमें अपने से अलग मत रखो।  दीपक बोला मां तुम समझती क्यों नहीं हो वहां पर यहां से ज्यादा सुविधा मिलेगा और फिर मैं तो कहीं रहूं हर संडे तुम लोगों से मिलने आया करूंगा।

दीपक के बाबूजी बस इतना ही बोल पाए कि हां बेटा तुम सही कह रहे हो तुम्हारे लिए हमने अपना घर  नीलाम कर दिया और आज तुम हम लोगों को वृद्धा आश्रम में भेज रहे हो।

राघवजी अपनी पत्नी दमयंती को बोले तुम तैयार हो जाओ अब हम लोग यहां पर 1 मिनट भी नहीं रहेंगे।

शाम होते ही दीपक ने अपने मां बाबूजी को दिल्ली के ही एक वृद्धआश्रम में जाकर छोड़ आया।  उसके बाद दीपक की बहन राखी का जब भी फोन आता तो दीपक यह नहीं बताता था कि उसके मां बाबूजी अब उसके साथ नहीं रहते हैं बल्कि वृद्धाआश्रम में रहते हैं जब भी राखी फोन करती की मां बाबूजी कैसे हैं तो दीपक बोलता ठीक है अगर वह बोलती की मां को फोन दो बात करना है तो वह बहाना लगा देता था कि वह बाहर घूमने गए हैं कल बात कराऊंगा।



दीपक के इस तरह की बातों से राखी के मन में पता नहीं क्यों शक हुआ क्योंकि वह इतना तो जानती थी कि दीपक को अपने मां बाबूजी से इतना प्यार नहीं है अगर होता तो आज वह घर को नीलाम नहीं होने देता।  राखी ने सोचा कि कल सुबह जाकर मां बाबूजी से मिलूंगी कि आखिर माजरा क्या है।

अगले दिन राखी जब अपने भाई के घर जाती है तो वहां पर उसकी भाभी और उसकी भाभी के बच्चे होते हैं पूछती है कि भाभी मां बाबूजी कहां है।   राखी की भाभी का जवाब आता है कि आपके मां बाबूजी तो कब से वृद्ध आश्रम में जाकर रह रहे हैं. हम लोगों ने तो कितनी बार बोला कि आप हमारे साथ रहो उन्होंने बोला कि नहीं नहीं हम वहीं पर रहेंगे।

राखी को  इस बात का विश्वास नहीं हुआ कि उसके मां बाबूजी अपने आप वृद्ध आश्रम में जाकर रहने लगेंगे उस दिन दीपक से वृद्धा आश्रम का पता लिया और वह उसी समय आश्रम में जाकर पहुंच गई।

आश्रम में जैसे ही पहुंची अंदर घुसते ही उसके मां बाबूजी वहीं पर मिल गए उसकी मां अपनी बेटी से मिलते ही गले लगकर खूब रोने लगी।  और रोते रोते ही बोली कि जिस बेटे के लिए हमने अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया आज उसी बेटा ने हमें अपने घर से निकाल कर वृद्ध आश्रम के दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया।  

राखी  के बाबूजी बोले  बेटी हमने यह तो सुना था कि एक बाप अपने बेटी का कन्यादान करता है लेकिन हमने यह कभी नहीं सुना था कि एक बेटा भी अपने बाप का पितृ दान करता है और अपने से अलग कर किसी दूसरी जगह भेज देता है।

राखी के बाबूजी बोले अपनी बेटी से बेटी जैसा भी है यहां पर फिर भी दीपक के घर से ठीक है वहां पर तो हम जब से आए हैं कभी भी हमें सही से खाना नसीब नहीं हुआ है लेकिन हम फिर भी बर्दाश्त करते रहते थे कि कोई बात नहीं है बेटा का घर छोड़कर कहां जाएंगे।  यहां सही से दो टाइम खाना तो मिलता है और इतने सारे लोग रहते हैं कब समय गुजर जाता है पता नहीं चलता है हमने तो कई सारे नए दोस्त बना लिए हैं।



राखी मां बाबूजी अब आपको यहां रहने की जरूरत नहीं है दीपक नहीं रखता है तो कोई बात नहीं मैं अभी आपके दामाद से बात करती हूं वह अच्छे हैं वह मान जाएंगे।  राखी ने अपने हस्बैंड को फोन लगाकर सारा किस्सा सुनाया दीपक ने कैसे उसके मां बाबूजी को घर से निकाल कर वृद्धा आश्रम में भर्ती कर दिया है। और अपने हस्बैंड से यह पूछा कि आपकी इजाजत हो तो क्या मम्मी पापा को हम अपने साथ रख सकते हैं।  राखी के हस्बैंड ने जवाब दिया यह भी कोई पूछने की बात है तुम्हारे मम्मी-पापा और मेरे मम्मी-पापा में क्या अंतर है खुशी खुशी उनको घर लेकर आओ।

उसी समय राखी ने वृद्धा आश्रम से अपने मम्मी पापा का नाम कटवा कर अपने घर पर ले आई। रांची के मम्मी पापा अपने बेटी के यहां बहुत ही प्यार से रहने लगे राखी के हस्बैंड भी इनको अपने मां बाबूजी से कम नहीं मानता था।  राघव जी अपनी पत्नी दमयंती से बोले। मां बाप को राखी जैसी बेटियां दे तो कोई भी मां-बाप वृद्ध आश्रम में नहीं पहुंचेंगे।

दीपक को जब यह बात पता चला कि उसके के मां-बाप अब वृद्ध आश्रम में नहीं रहते हैं बल्कि उसके बहन के यहां रहते हैं तो वह उनसे मिलने के लिए अपनी बहन के घर आया।  राखी ने दरवाजे पर ही देखा कि दीपक आ रहा है उसने साफ मना कर दिया दीपक आज के बाद तुम्हें यहां आने की कोई जरूरत नहीं जब तुमने मां बाप से ही रिश्ता तोड़ लिया था तो फिर तुमसे रिश्ता कैसा।  

दीपक वहां से लौटने लगा तो  दीपक के बाबूजी ने दीपक को आवाज़ लगाकर कहा कि दीपक एक बात कान खोलकर सुन लो आज के बाद यहां पर तुम कभी मत आना तुम्हारे लिए हम कब के मर चुके हैं।  और उन्होंने उसी समय कहा कि अगर हम मर भी जाएंगे तो हमारी चिता को हमारी बेटी अग्नि देगी क्योंकि आज के बाद सिर्फ हमारी एक बेटी है बेटा नहीं।

दीपक अपने आप को बहुत ही छोटा महसूस कर रहा था उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह करें तो क्या करें जिस मां बाप ने उसे पाल पोस कर इतना बड़ा किया उसको आज इंजीनियर बनाने में अपने घर को नीलाम करा दिया

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