कुंठा – नीलिमा सिंघल

सतीश अजीब सी दुविधा मे था, लेते हुए पंखे को देखे जा रहा था, सोनिया 4 बार आकर खाने का बोल आयी थी पर usne एक बार भी नहीं सुना था, पांचवी बार सोनिया आयी और खाने का कहकर बाहर जाने को मुड़ी पर सतीश की हालत देखकर रुक गयी, अपने आंसू छुपा कर सतीश के पास आयी और बालों मे हाथ फेरने लगी,  सतीश तन्द्रा से जागा जैसे,

सवालिया निगाहों से सोनिया को देखता सतीश बोला ” क्या हुआ सोनी, परेशान हो क्या “

सोनिया ने कहा “नहीं!खाने के लिए बुलाने आयी थी “

सतीश उठा बाहर आकर चटाई पर बैठ गया जहाँ सोनिया ने खाना लगाया हुआ था, खाना क्या था कटू आलू पानी मे डले हुए ,आटा कम चौकर ज्यादा की रोटियां, जबसे सतीश का काम बंद हुआ तब से फाके  करने के दिन आ गए थे अच्छी बीमारी ने शहर को अपने कब्जे मे लिया था कोई किसी का नहीं सब अपनों के साए तक से बच रहे थे।

सरकार ने लॉकडाउन क्या लगवाया था सब तरफ से विपत्ति आ गयी थी।

बैंक से कर्जा लेकर काम बढ़ाया था सतीश ने बहुत खुश था पर साथ के जिगरी लोगों ने ही पहले उसको धोका दे दिया था, अब फिर लॉकडाउन लग गया,

पहले भी सतीश ने जब काम शुरू किया था तब भी बैंक से कर्जा लिया था पर कर्जा उतारने की शक्ल मे पत्नि के सारे जेलर बिक गए अब भी पत्नि ने मना किया था पर उसको समझ नहीं आया और ज्यादा कर्जा लेकर काम बढ़ा लिया,

कर्जे के एवज मे इस बार घर बिक गया सड़क पर आ गए,

भाई बहन रिश्तेदार सब पैसे वाले थे चाहते तो मिलकर मदद कर सकते थे, पर सतीश की मदद के लिये किसी के हाथ कभी नहीं बढ़े थे,

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सोनिया को सब समझ आता था और गाहे बगाहे सतीश को समझाती रहती थी पर अब इस हाल मे जबसे वो एक झोपड़ी मे रहने चले गए थे वो भी किराये की, पर सतीश को अब भी समझ नहीं आ रहा था,

सरकारी राशन और मदद के लिए लाइन मे खड़ी सोनिया को देखा था आज उसने और तभी से बैचेन था ,सोनिया ने हर कदम पर उसका साथ दिया समय से पहले ही कुम्हला गयी थी पर कभी कुछ नहीं कहती थी ।

सोनिया ने सतीश को चुपचाप बैठे देखा तो फिर टोक दिया “खाना खालो ना सतीश और सब भूल जाओ “

“भूल जाओ! भूल जाओ भूल जाओ,  सतीश चौंका उस बात पर उसने सोनिया का हाथ पकडा और कहा  अभी दुकान खुलने मे समय है पर कुछ करूंगा जरूर, कोई भी काम, अब कोई भी काम छोटा नहीं होगा अपनी हार से उभरता सतीश बोला तो सोनिया की आँखों मे आंसू भरा आए जो कि खुशी के थे,

सोनिया ने पड़ोस के शेखर से लाए हुए फल सामने रख दिए क्या हम इन्हें बेचने का काम करें,  सुनते ही सतीश ने हाँ मे गर्दन हिलायी और लॉक डाउन की बेचारगी को हवा मे उड़ा दिया।

कल का सूरज नयी किरणों के साथ ज्यादा चमकता हुआ निकला।

इतिश्री

शुभांगी

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