” हाय…! मेरी बहू….भगवान ने क्यों छीन लिया मेरी फूल -सी बच्ची को..।” बहू की अर्थी को चार लोग कंधा देकर ले जाने लगे तो पचपन वर्षीय सुलोचना छाती पीट-पीटकर रोने लगी और मोहल्ले की महिलाएँ उनको #घड़ियाली आँसू बहाते देख चकित थीं।
सुलोचना के पति गजेन्द्र बाबू की गाँव में एक परचून की दुकान थी जिससे उनके परिवार के गुजारे भर की आमदनी हो जाती थी।स्वभाव से दोनों पति-पत्नी कंजूस और लालची थें इसलिये लोगों से उनकी कम ही बनती थी।एक बेटी रजनी थी जिसे पढ़ाना उन्होंने उचित नहीं समझा और कम उम्र में उसका ब्याह करके अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर ली। रजनी से दो साल छोटा था प्रदीप।सुलोचना चाहती थी बेटा बाप की दुकान संभाले और उसकी शादी से वह दहेज़ बटोरे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।इंटर के बाद प्रदीप दिल्ली चला गया।
छोटे-मोटे काम करके उसने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया और एक दफ़्तर में नौकरी करने लगा।फिर उसने गाँव के ही एक गरीब परिवार की लड़की बेला से विवाह करके अपने माता-पिता की इच्छाओं पर पानी फेर दिया।(लेखिका-विभा गुप्ता)
सुलोचना और गजेन्द्र बाबू अपना गुस्सा पी गये और हँस कर बेटे-बहू को गले से लगा लिया।प्रदीप जब अपनी पत्नी को शहर ले जाने लगा तो सुलोचना नकली आँसू बहाते हुए बोली,” अभी तो बहू को ठीक से देखा भी नहीं..कुछ दिन बहू के हाथ से चाय पी लेती तो…।” प्रदीप ने ‘ठीक है’ कहकर अकेला ही शहर चला गया।बेटे के जाते ही उसने बहू से बंधुआ मजदूर की तरह काम लेना शुरु कर दिया।उसपर माँ-बाप से पैसे माँगने के लिये दबाव भी डालती।प्रदीप आता और पत्नी को कमजोर देखता तो वह झूठ बोल देती। प्रदीप जब भी बेला को साथ ले जाना चाहता तो सुलोचना कोई न कोई बहाना बना देती।इसी तरह से साल बीत गये।
एक दिन सुलोचना पति से बोली कि कब तक प्रदीप को टालते रहेंगे।आज ही इसका काम तमाम कर देते हैं और प्रदीप का दूसरा ब्याह करके हम मालामाल हो जायेंगे।बस दोनों ने मिलकर सीधी-सादी बेला का सोते में गला दबा दिया..अस्पताल के डाॅक्टर को पैसे का लालच देकर ‘नेचुरल डेथ’ का सर्टिफिकेट बनवाकर पुलिस को दे दिया और बेटे को भी दिखा दिया।इसलिए बहू की मृत्यु पर सुलोचना को रोते देख महिलाएँ चकित थीं।( लेखिका- विभा गुप्ता)
एक दिन प्रदीप ने गाँव के लोगों से सुना कि सुलोचना बहू पर बहुत अत्याचार करती थी।घर आकर उसने सुना कि सुलोचना हँसते हुए गजेन्द्र बाबू से कह रही थी,” प्रदीप तो कभी जान ही नहीं पायेगा कि उसकी पत्नी को हमने ही…पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी…।” सुनकर प्रदीप ने गुस्से-से अपनी मुट्ठियाँ भींच ली।उसने नौकरी छोड़ दी और माँ से कहा कि अब से आपके पास रहकर आपकी सेवा करुँगा।
” जियो..मेरे लाल!” कहकर सुलोचना ने बेटे की बलैईयाँ ली।प्रदीप ने घर की छानबीन करके सबूत इकट्ठे किये…डाॅक्टर को धमकाकर सही रिपोर्ट ली और थाने में जाकर बेला के मर्डर की रिपोर्ट दर्ज़ कराई।यह सब उसके आसान नहीं था लेकिन दहेज़-लोभियों को सज़ा दिलाना भी तो ज़रूरी था।
पुलिस जब सुलोचना और गजेन्द्र बाबू को हथकड़ी पहनाकर ले जाने लगी तो सुलोचना बेटे की तरफ़ देखकर रोने लगी।प्रदीप चुपचाप उन्हें देखता रहा जैसे कह रहा हो कि चाहे जितना #घड़ियाली आँसू बहा लो..अब मैं आपकी बातों में आने वाला नहीं।गाँव वाले दबी ज़बान से कहने लगे,” देर से ही सही..करनी का फल तो भुगतना ही पड़ता है।
विभा गुप्ता
स्वरचित
#घड़ियाली आँसू बहाना