भूख – कंचन श्रीवास्तव

मुजेक, मार्वल ,टाइल्स और आधुनिक संसाधनों से संपन्न घर देख आंखें चौंधिया जाए।

क्या कुछ नहीं है चाची के घर में ईश्वर का दिया धन दौलत रूपया पैसा सब कुछ तो है खाना पीना ऐसा की रजवाड़ों को भी मात दे ,कुल मिलाकर आज की स्थिति उनकी पिछली जिंदगी की से बहुत बेहतर है सभी के  रहन सहन से लगता है।

उनके बहू बेटे के पच्चीसवीं वर्षगांठ पर दावत से लौटकर आई हाथ हिलाते हुए रीना काकी ने बगल वाली भाभी जी से कहा।

आपको याद है न जब ये लोग इस कालोनी में आए थे तो रोज खरीद कर आता तो चुल्हा जलता , कपड़े तो ऐसे पहनते कि मानों किसी ने दिए हो ।

अरे!

इसी गरीबी से तंग आकर तो बेटा घर छोड़कर  चला गया था। और जब चला गया तो सारे रिश्तेदार थू  थू कर रहे थे पर इन सबको कोई फर्क न पड़ता ,मानों कान में तेल डाल लिए हो ,तब तो रिश्तेदार भी बहुत आते थे , माना गरीब थे पर व्यवहारी बहुत थे।

और सही में उसके बाहर जाते ही घर की काया ही पलट गई।

कहां एक कमरे में रहते थे वहां चार तल्ला मकान बन गया सब तरह का  ऐशों आराम हो गया।

पर एक बात समझ नहीं आती कि चाची को क्या हो गया।जब कुछ नहीं था तो मस्त रहती थी और अब जब सब चीज से सम्पन्न है तो चेहरे से रौनक चली गई कुछ माजरा समझ नहीं आता।

इस कहानी को भी पढ़ें:

बदरंग रिश्ते – संजय मृदुल : Moral stories in hindi



अच्छा देखो रिश्तेदारों ने भी तो आना जाना कम कर दिया।

बात क्या हुई आज तक कानों कान खबर नहीं जबकि हमारी भाभी तो इनकी खास रिश्तेदार है पर वो भी कुछ नहीं बताती।

हम देखते हैं की बहुरिया बड़ा ध्यान रखती है सेवा सत्कार से लेके खाना पीना, कपड़ा लत्ता गहना जेवर से लैस रखती है फिर भी चेहरे पे उदासी झलकती है।

लगता है कोई गहरा दुख है जो भीतर ही भीतर खाएं जा रहा है।

इतने में भाभी ने आकर पीछे से उनकी आंख बंद कर ली और कहा क्या बात हो  रही है पड़ोसन से ।

तो बोली अरे कुछ नहीं वहीं कल जो हम लोग एनिवर्सरी में गए थे ।

कितना अच्छा फग्शन हुआ बबुआ ने ढाई तीन लाख रूपए खर्चे।पर सब दोस्त यार आस पड़ोस वाले ही थे।

इक्का दुक्का रिश्तेदार नजर आ रहे थे।

यहां तक की इनकी अपनी बड़ी बेटी भी नहीं आई रही।

कुछ तो है गहरी बात वरना ऐसे थोड़े होता कि कोई आता ही ना।कहती हुई गेट खोल चाची के घर चली गई।

और अंदर जाकर देखा तो वो बिस्तर पर पड़ी थी।और सब उनके आस पास ।

और पास गई तो देखा बहुएं कुछ खिलाने का प्रयास कर रही थी पर वो थी कि बिट्टी बिट्टी की रट लगाए थी।

अब भला कोई कैसे बुलाता उनको

ग़लतफहमियों के कारण उनसे रिश्ते जो खराब हो गए है।

इस कहानी को भी पढ़ें:

तकरार – डाॅ संजु झा : Moral stories in hindi



पर इनकी हालत देखकर लोग एक दूसरे को देखते हुए चुप है मानों कह रहे हैं बुला दो वरना गर  कुछ हो गया तो हमेशा के लिए कहने को हो जाएगा। इस पर वो सोचने लगी 

कि यहां एक से नहीं सभी से  रिश्ते खराब लगते हैं इनके क्योंकि पहले जैसा अब कोई नहीं आता इनके यहां।

खैर फिर हाल तो उस बिट्टी की बात हो रही है जिसके बिना इनके यहां पत्ता तक नहीं हिलता था।

पर कुछ लेना देना का माजरा ही लगता है जिससे रिश्ते खराब हुए पर स्थिति ऐसी है कि बुलाना ही पड़ेगा।

मैने देखा मन मसोस कर छोटे बेटे ने फोन किया।तो फोन उठा उठते ही इसने दुआ न सलाम बस इतना ही कहा मां बहुत बीमार है अंतिम इच्छा तुम्हें देखने की है अगर आप जाओ तो अच्छा होगा।

ये सुन उधर से कोई जवाब तो नहीं आया।

पर वो  तीन चार घंटे का सफर तय करके आ गई।

आते ही मां के गले लग कर रोने लगी।

और पास खड़े भाई भाभी से आई गलतफहमियों के लिए बैठकर दूर करने को कहा।

इस तरह उसने देखा बेटी को देखते ही उनका चेहरा खिल गया।साथ ही जो कुछ बहू ने किया मन से खाया।

इसे देख उसे लगा।

कुछ लोग रिश्ते के भूखे होते है।

बने रहे तो नमक रोटी खाकर भी खुश रहते हैं और न रहे तो पकवान भी बेकार है।

जैसा की चाची के चेहरे से लग रहा क्योंकि कल दावत में उदास बैठी थी  लाख बहुएं कह के रह गई पर इन्होंने कुछ भी नहीं खाया ।

और आज देखो दूध वाली दरिया बेटी को देख कितने चाव से खा रही।

सच ही कहा गया है कि जिन्हें रिश्तों की भूख होती है उन्हें पकवान भी फीके लगते हैं।

 

स्वरचित

कंचन आरज़ू

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!