सुखिया और उसका पुत्र दीनू रजनीश बाबू के यहाँ काम करते थे। सुखिया को इस घर पर काम करते हुए लगभग बीस साल हो गए थे। रजनीश बाबू के दो बेटे थे, जिनकी शादी हो गई थी। सुखिया सुबह ठीक आठ बजे आ जाती थी,और रात को आठ बजे घर जाती थी,
जब दीनू छोटा था, वह उसे भी साथ लेकर आती थी।सुखिया का पति मजदूरी करता था। दोनों मेहनत करते और दीनू को पढ़ा रहै थे। अच्छा सुखी परिवार था, मगर विधाता को कुछ और मंजूर था । तीन साल पूर्व एक दुर्घटना में हरिया की मृत्यु हो गई।
उस समय दीनू ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ रहा था। हरिया की मृत्यु के बाद सुखिया अन्दर से पूरी तरह टूट गई थी, अब दीनू भी पढ़ाई के साथ रजनीश बाबू के यहाँ काम करने लगा था। उनके बगीचे में पानी देना, बाजार से सौदा लाना,
गाढ़ी साफ करना और भी कुछ जरूरी काम वह कर देता था, इस तरह कुछ पैसा मिल जाता, और माँ बेटे का जीवन यापन हो जाता था। सब कुछ सामान्य चल रहा था कि अचानक रजनीश बाबू की पत्नी शांति जी का स्वास्थ बिगड़ गया,
सुखिया अपने नियमित कार्य के साथ उनकी सेवा भी मन लगाकर करती थी। काम का बोझ ज्यादा पड़ गया था,एक दिन सुखिया की तबियत बिगड़ गई, उसने छुट्टी मांगी तो रजनीश बाबू ने मना कर दिया, वह चढ़े बुखार में काम करती रही और नतीजा यह हुआ
कि घर आने के बाद वह चक्कर खाकर गिर गई, और पैर की हड्डी में फ्रेक्चर हो गया, पट्टा चढ़ा और डॉक्टर ने बिस्तर से उठने के लिए मना कर दिया। दीनू ने रजनीश बाबू से छुट्टी मांगी तो वे नाराज हो गए, बोले ‘तुम्हें काम पर क्यों रखा है, कि तुम मुसीबत में मदद करो,
तुम्हारी मालकिन की तबियत ठीक नहीं है।तुम्हारी माँ आ नहीं सकती और अगर तुम भी नहीं आओगे तो कैसे काम चलेगा’ दीनू को बुरा लगा बोला ‘मेमसाहेब के पास तो पूरा परिवार है साहेब, आप हैं, बेटे- बहू हैं, मेरी माँ के पास तो कोई भी नहीं है, वह उठ नहीं सकती है।
मुझे मेरी माँ को सम्हालना पड़ेगा।’ रजनीश बाबू को गुस्सा आ गया और वे बोले ‘तेरी यह मजाल मुझसे जबान लड़ाता है, कल से काम पर मत आना।’रजनीश बाबू के व्यवहार से दीनू का मन खट्टा हो गया था। उसने कहा -‘नहीं आऊंगा और मेरी माँ भी नहीं आएगी।’ वह घर आ गया,
उसने सोच लिया था कि वह उस घर में काम नहीं करेगा, जहाँ मानवता का भाव ही नहीं है, न मॉं को जाने देगा। सुखिया और दीनू के न आने पर रजनीश बाबू के घर की पूरी व्यवस्था गड़बड़ा गई, उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वे सुखिया के घर गए, उन्हें उम्मीद थी
कि वे पैसो के बल पर दीनू को मना लेंगे। उन्होंने दीनू को उनके काम के अतिरिक्त और पैसे दिए और कहा कि ‘तुम्हारी माँ ठीक हो जाए तो फिर काम पर आ जाना।’ दीनू ने अपने काम के पैसे लिए और अतिरिक्त पैसे लेने से इन्कार कर दिया
और हाथ जोड़कर कहा- ‘अब यह सम्भव नहीं हैं, अब हम दोनों आपके यहाँ काम नहीं कर पाऐंगे, हम उसे अपना घर समझकर काम करते थे, आपने एक पल में हमें पराया बना दिया।’ रजनीश बाबू लौट गए।दीनू ने सोच लिया था कि वह किसी दूसरी जगह काम करेगा, अब रजनीश बाबू के घर नहीं जाएगा।उसके दिल पर चोट लगी थी, उसका जी खट्टा हो गया था।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित