मेरी बहुरानी – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

सारे सपने चकनाचूर हो गए थे अक्षता के, जब उसके बेटे साहिल ने शिया को पसंद किया अपनी जीवनसाथी

के लिए।

अक्षता के दिमाग में बहू की एक तस्वीर फिट थी बहुत पहले से,प्यारी सी,छोटे कद की गुडिया

सी,गोरी,शर्मीली,धीमे धीमे बोलने और चलने उठने वाली,संस्कारों वाली बहुरानी पर शिया तो जैसे उससे

बिल्कुल उलट थी।

जब पहली बार साहिल ने उसे शिया से मिलवाया,वो हैरान रह गई…ये लड़की है जिससे तू शादी करना चाहता

है…हाइट में साहिल से भी कुछ ऊंची निकलती हुई,रंग की सांवली,साधारण फीचर्स,मुंह खोला तो वॉल्यूम

इतनी तेज़ कि अक्षता का दिमाग घूम गया,हंसी..तौबा!तौबा!कितनी मुंह फट और हंसोड़ है ये लड़की,पहली

बार मिली है तो ये हाल है,बाकी जिंदगी तो भगवान ही मालिक है अब!ड्रेस भी काफी बिंदास तरीके

की,आधुनिक जमाने से मैच खाती हुई और परिवार का कुछ अता पता नहीं,बचपन से अनाथालय में पली

थी।

अक्षता के दिल में कुछ टूट सा गया था, “हाय!क्या सपने देखे थे,सिर पर पल्लू ढके ,एक नाजुक सी

लड़की,शरमाते हुए आयेगी उसके घर पर लगता है उसका बुरा वक्त शुरू हो गया था।”

साहिल को कुछ समझाना बेकार था वो जानती थी क्योंकि उसे तो शिया में कोई कमी नज़र आयेगी नहीं

और इन दोनो के बिना वो कहां रहेगी ?,ये जानती थी वो,इसलिए दिल के अरमान दिल में घोंट लिए और होंठ

सिल लिए।

धूमधाम से दोनो की शादी हो गई थी,दोनो महीना भर घूम फिर के आ गए थे और अब अगले दिन से उन

दोनो को सुबह नौ बजे साथ ही दफ्तर के लिए निकलना था।

अगले दिन अक्षता ने रोज की तरह अलार्म लगा दिया था सुबह साढ़े पांच का,पहले सोचती थी वो कि जब

बहु आ जायेगी,चैन से सोया करूंगी,जब वो चाय लेकर आएगी मेरे लिए और उठाया करेगी तभी उठूंगी पर

मेरे ऐसे नसीब कहां?सोच वो उठने वाली थी कि “मम्मी जी!चाय ले लें..” का स्वर कान में पड़ा।

चौंक के देखा तो शिया उसके लिए चाय का कप लिए खड़ी थी…

“अरे!तुम…मैं तो लेमन टी लेती हूं इस समय..” वो कॉन्शियस होती हुई बोली।

“वही है मम्मी..साहिल ने बताया मुझे।नाश्ते में आप लोग क्या लेते हैं,मुझे तो बस ब्रेड सैंडविच और पोहा

बनाना ही आता है।”

अक्षता को सरप्राइज पर सरप्राईज मिल रहे थे,”नाश्ता मैं बना लूंगी अभी मेड आने वाली है उसके साथ

मिलकर,तुम तैयार हो,तुम्हें लेट हो जायेगा।”अक्षता ने प्यार से कहा।

“नहीं मम्मी! मैं हमेशा जल्दी उठ जाती हूं, सुबह ही तो किचेन देख सकती हूं,फिर तो सारा दिन ऑफिस में ही

कट जाता है। मैं टिफिन भी तैयार कर लूंगी,मुझे अच्छा लगता है कुकिंग करना।”

अक्षता हैरत से उसे देखती रही,”आज तो इसकी वॉल्यूम भी ज्यादा तेज नहीं लग रही,इतनी सांवली भी कहां

है,काले तो कृष्ण कन्हैया भी थे पर सबके दुलारे थे”,प्यार भरी निगाहों से उसे देखते वो सोचने लगीं।

सबके जाने के बाद वो घर में अकेली थीं तो पड़ोसन राधिका आ गई।

“और कैसी है बहुरानी?”उन्होंने अक्षता से पूछा।

“ठीक है,बल्कि बहुत अच्छी है,कमेरी है बहुत,सारा काम कर के गई है खाने पीने का।”वो गर्व से बोलीं।

“साहिल की मम्मी!आप बहुत भोली हो,शुरू शुरू में सब अच्छी बन के दिखाती हैं,आप सावधान रहना इन

आजकल की बहुओं से।”

उनकी बात सुन वो घबरा गई पर उन्हें बुरा भी लगा कि कोई बाहर वाला उनकी बहू को ऐसा कहे पर शांत

रहीं।

कुछ दिनो बाद ही उनका आंख का ऑपरेशन कराना पड़ा,उनकी इसी मॉडर्न बहु ने घर बाहर का काम इतनी

कुशलता से संभाला कि अक्षता दंग रह गई।डॉक्टर से बात करना,दवाइयां लाना और उन्हें खिलाने से

लेकर,उनका दिन भर ख्याल रखने को देखकर वो आश्चर्य चकित रह गई।

“तू मेरे चक्कर में ऑफिस से विद आउट पे छुट्टी लिए बैठी है…इतना नुकसान क्यों कर रही है बहू!” वो पूछती

तो वो हंस कर जबाव देती…

“आप से बड़ा खजाना हम पर दूसरा नहीं मम्मी जी!साहिल तो आपको प्यार करते ही हैं पर मुझ अनाथ को

जिस तरह आपने अपनाया है,उसकी कोई कीमत नहीं, मै अपना सर्वस्व देकर भी इस एहसान से ऋण मुक्त

नहीं हो सकती।”

“पगली कहीं की…तू क्या मेरी बेटी से कम है?”कहते अक्षता उसे गले लगा लेती हैं।

अक्षता का मन था,जल्दी से मै अच्छी होकर घर पहुंचू ,फिर उस राधिका को कहूं..”अब बताओ, मै अपनी

किस्मत पर नाज़ क्यों न करूं?मुझे बहू नहीं साक्षात देवी मिली है जो मेरा इतना ख्याल रखती है कि खुद मेरा

बेटा भी वैसा नहीं रख सकता।”

प्रिय पाठकों!किसी के बाहरी पहनावे,बातचीत से उसके दिल और आचरण का अंदाजा मत लगाइए,कुछ

लोग बहुत मुंहफट हो सकते हैं पर दिल के अच्छे और सच्चे भी होते हैं।आपको ये कहानी कैसी लगी,अपनी

प्रतिक्रिया में अवश्य बताएं,ये अनुभव मेरा खुद का देखा हुआ है।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

#क्यों न करूं अपनी किस्मत पर नाज़

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