लाजवंती – शालिनी श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

लाजवंती ,तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है ….सत्तू का टेलीफोन आया था ,बंसी की दुकान पर… वह कल शहर से लौट रहा है… अपनी पढ़ाई पूरी करके …

अरे ..शीतल जी… यह तो बहुत अच्छी बात है…. कब से इस दिन का इंतजार था कि हमारा सत्तू पहले की तरह हमारे साथ रहे ….बच्चों के बिना मां-बाप कितने अधूरे से हो जाते हैं …सत्तू तो वहां अपनी पढ़ाई और नए दोस्तों में मस्त हो गया था …

परंतु यहां मुझे एक-एक पल यह महसूस होता था कि मेरा बच्चा मुझसे दूर है ….रोज खाने को लेकर मुझसे झगड़ा करता था ..मां मुझे यह बनाकर दो …मां मुझे वह बना कर दो… मैं तो यह सोच सोच कर ही परेशान थी कि बेचारा शहर में अब किससे जिद करता होगा …

अब देखना कल आ रहा है ना ,सारी उसकी पसंद की चीज बनाऊंगी… कितना कमजोर हो गया होगा शहर जाकर…. अपनी मनपसंद का खाना भी नहीं खा पाता होगा ….अब हमारे साथ रहेगा तो रोज उसे उसकी पसंद का खाना बना कर दूंगी….

हां – हां ..लाजवंती ..अब तुम्हारा बेटा तुम्हारे पास ही रहेगा… जितना मन उतना लाड प्यार करना, अपने बच्चे को…. परंतु मुझे तुमसे जरुरी बात करनी है …देखो जब हमारा सत्तू शहर में पढ़ने के लिए गया था तो ,हमारे पास दो खेत थे…

एक खेत तो उसे शहर भेजने के लिए ही गिरवी रख दिया था …मुझे लगा था कि धीरे-धीरे कर्ज उतार कर जमींदार से अपना खेत वापस ले लूंगा ….परंतु कभी सूखा ,कभी बाढ़ और कभी कोई बीमारी आन पड़ी ,जिस वजह से खेतों का कामकाज ढीला ही रहा और उधर सत्तू को पढ़ाई के लिए और पैसे भी भेजने पड़ते थे …

उसके वहां रहने का खर्च, खाने-पीने का खर्च ,उसमें मुझे फिर दूसरा खेत भी गिरवी रखना पड़ा और इस चक्कर में मैं दोनों ही खेत गवा बैठा… अब जैसे-तैसे मजदूरी करता हूं, दूसरों के खेतों में और अपना गुर्जर बसर कर रहा हूं ….परंतु लाजवंती तुम यह बात सत्तू को बिल्कुल भी नहीं बताना… वरना उसे बहुत बुरा लगेगा…

क्योंकि बहुत मुश्किल से हमने उसे मनाया था शहर जाने के लिए…. वह तो मान भी नहीं रहा था ,परंतु मैं नहीं चाहता था कि वह भी मेरी तरह मजदूर बने…

जी हां. शीतल जी, यह बात तो आपकी ठीक है… अगर उसे यह बात पता चली तो उसे बहुत बुरा लगेगा… हम उसे यह बात बिल्कुल नहीं बताएंगे …परंतु जब वह यहां रहेगा तो उसे मालूम पड़ जाएगा कि हमारे खेत बिक चुके हैं …

अरे लाजवंती.. मैं उसे कह दूंगा कि अब मुझसे काम नहीं होता… इसलिए मैंने खेत किसी और को बेच दिए बस….

मेरी और लाजवंती की बातें यूं ही चलती रही …जब तक सत्तू घर नहीं आया…  फिर क्या था… अगले दिन मैं बस स्टैंड पर सत्तू को लेने चला गया …जब उसे देखा तो पूरा शहरी बाबू बन गया था मेरा सत्तू …जब घर से गया था तो ,मां के हाथ से बना हुआ बैग था

और जब लौटा है, तो शहरी सूटकेस लेकर… नजर ना लगे मेरे सत्तू को … मैंने साइकिल पर उसका सूटकेस रखा और घर की तरफ चलना शुरू किया… पहले जब मैं साइकिल पर बिठाकर सत्तू को गांव घूमाता था तो वह 1 मिनट भी चुप नहीं करता था …अब सत्तू बड़ा हो गया है,

बहुत कम बोलता है… बस स्टैंड से लेकर घर तक उसने मेरे पांव छूने के इलावा कोई और बात नहीं की…. हां लड़का शहरी बाबू हो गया है… हम ठहरे गांव वाले …

लाजवंती भी बेसब्री से हमारा इंतजार कर रही थी… हम घर पहुंचे तो भाग कर सत्तू को उसने अपने गले लगा लिया… सत्तू ने अपनी मां के पांव छुए… हम सब भीतर चले गए… वास्तव में जब सत्तू गया था ,तो जैसा घर छोड़ कर गया था ,

आज भी वैसा ही था …जैसा का तैसा… लाजवंती सत्तू के सर पर हाथ फेरने लगी और लाड प्यार से कहने लगी… मेरा सत्तू कितना कमजोर हो गया है… शहर में मां थोड़ी थी, जो अपने बेटे का ध्यान रखती…. सत्तू ने अपनी मां का हाथ अपने सर से हटा दिया

और कहने लगा , मां ..बस करो …अब मैं छोटा बच्चा नहीं रहा… शहर में अकेला रहता था… अपना ध्यान भी रखता था और मैं कमजोर नहीं हो गया हूं ,मैं तो वहां जिम भी जाता हूं… मुझे सत्तू का यह लेजा अच्छा नहीं लगा …परंतु अभी उसे आए हुए कुछ ही पल हुए थे …

तो मैं कुछ नहीं बोला… मैंने लाजवंती की तरफ देखा और उसे बुरा ना लगे तो बात को पलटते हुए कहा… अरे, बेटा इतनी दूर से आया है… कुछ जलपान की व्यवस्था करो …लाजवंती रसोई घर में चली गई… मैंने सत्तू से कहा कि तुम भी उठकर कपड़े बदल लो,,

नहा लो …फिर आराम से बैठकर खाना खा लेना …तुम थक गए होंगे… सत्तू ने कहा कि उसे कोई जरूरी बात करनी है.. इसीलिए वह गांव आया है और उसे वापस शहर जाना है… मैं यह बात सुनकर हैरान रह गया… अरे ,सत्तू तू अपने घर नहीं रहेगा???

सत्तू ने कहा पिताजी शहर में पढ़ाई करने के बाद, अब मैं शहर में ही नौकरी करूंगा …यहां गांव आकर क्या करूंगा बताओ ???लाजवंती ने जब यह बात सुनी तो, भाग कर हमारे पास आ गई…. अरे सत्तू ,तुम वापस चले जाओगे??? सत्तू ने कहा ,हां मां …

यहां गांव में मैं नहीं रह पाऊंगा …शहर में बहुत सारी सुख सुविधाएं हैं …अब मुझे उनकी आदत हो गई है…

बेचारी लाजवंती का तो चेहरा ही उतर गया… मैं भी मन ही मन परेशान हो गया सत्तू की इन बातों को सुनकर… बचपन से जहां वह रहा,आज वह जगह पसंद नहीं रहने के लिए ….खैर जीवन ने इतना तजुर्बा तो दे ही दिया था कि मुझे पता था ,सत्तू से इस विषय पर बहस करना लाभदायक नहीं होगा …

इसलिए मैं लाजवंती को आवाज लगाकर बाहर की ओर ले गया और उसे समझाने लगा कि हमारा बेटा शहरी बाबू हो गया है… मैं तो बस स्टैंड पर देख कर ही समझ गया था ….खैर हम अपने बच्चों की खुशी चाहते हैं ..वह जहां भी रहे खुश रहे …मां-बाप इससे ज्यादा और क्या ही कहेंगे… हम जबरदस्ती उसे अपने पास नहीं रख सकते …जहां उसका मन है ,वहां उसे जाने दो …

लाजवंती की आंखों में आंसू आ गए और अपनी साड़ी के पल्लू से अपनी आंखें पोछती हुई रसोई घर में चली गई और एक थाली में खाना परोस कर लाई और सत्तू को कहने लगी.. बेटा बहुत मन से तुम्हारी मां ने तुम्हारे लिए ,तुम्हारी पसंद का खाना बनाया है …

हो सके तो आखरी बार खा लो …और थाली को सत्तू के पास रखकर रसोई में चली गई और खूब रोने लगी …मैने सत्तू के कंधे पर हाथ रखकर कहा, बेटा जैसी तुम्हारी इच्छा …हम तुम्हारे मां-बाप हैं… दुश्मन थोड़े ना है… तुम जहां भी रहो खुश रहो, स्वस्थ रहो और जीवन में खूब तरक्की करो…. जब मन हो, आ जाया करना हमसे मिलने …

जी पिताजी …मैं कौन सा आपसे रिश्ता खत्म कर रहा हूं… मैं तो बस अपनी बात रख रहा हूं… वहां पर नौकरी करूंगा… पैसा कमाऊंगा …तो अपने घर के लिए ही तो करूंगा… कौन सा किसी बाहर वाले के लिए करूंगा… मुझे भी पता है, आपकी अब उम्र हो गई है …तो मुझे ही सब देखना है…

मैंने बहुत शालीनता के साथ सत्तू के सर पर हाथ फेरते हुए कहा, बेटा तुम बहुत अच्छे हो…. अपने मां-बाप के लिए इतना सोच रहे हो …परंतु कोई बात नहीं ,जहां अब तक चला है ,आगे भी चल जाएगा… वैसे भी हम दो बूढ़े लोगों का खर्चा है ही क्या … बस दो वक्त की रोटी है… उसका गुजर बसर चल रहा है …

फिर सत्तू मेरे पांव छूकर आशीर्वाद लेने लगा और कहने लगा पिताजी शहर में एक छोटा सा मकान देखा है… हमारे पास दो खेत है …क्या आप एक खेत बेचकर मुझे कुछ पैसे दे सकते हैं ???क्योंकि किराए के मकान में मुझे अब नहीं रहना है …मेरे साथ एक लड़की पढ़ती थी …

जिससे मुझे शादी करनी है… परंतु उसके घर वालों का कहना है कि वह गांव में आकर नहीं रह सकती… इसलिए मुझे शहर में ही मकान लेना होगा और मेरी नौकरी से अभी इतनी तनख्वा नहीं मिलेगी कि मैं घर खरीद सकूं..

मैंने सत्तू की तरफ देखा और मुस्कुरा कर कहा …बेटा तुम अभी शहर जाकर नौकरी करना शुरू करो …कुछ ही दिनों में मैं पैसों की व्यवस्था कर दूंगा… फिर तुम बंसी की दुकान पर टेलीफोन करके मुझसे बात कर लेना और आकर पैसे ले जाना… बस इतनी बात हुई …

सत्तू ने थाली में से कुछ भोजन खाया और कहने लगा पिताजी अब मुझे निकलना होगा …अगर मैं सुबह निकलूंगा तो पूरा दिन सफर में ही रहूंगा …अभी यहां से बस पकड़ूंगा और आगे मुझे रेलगाड़ी मिल जाएगी और सुबह तक मैं शहर पहुंच जाऊंगा ….मैंने साइकिल उठाया और सत्तू का सूटकेस वापस साइकिल पर रखा और चल पड़ा ….

लाजवंती रसोई से बाहर नहीं आई… वही रोती रही… मैंने सत्तू को बस स्टैंड छोड़कर ,उसे हंसते-हंसते बिदा किया और वापस घर आ गया… लाजवंती मेरे गले लग कर बहुत रोई… मैंने लाजवंती को समझाया …अरे पगली मैंने कहा था ना ,हम दोनों एक दूसरे के साथी है… जीवन भर एक दूसरे का साथ देंगे… हम अपनी खुशी के लिए बच्चों को बांधकर अपने साथ नहीं रख सकते… उन्हे आजाद अपना जीवन जीने दो….

शालिनी श्रीवास्तव

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