तूलिका – भगवती सक्सेना गौड़   : Moral Stories in Hindi

तूलिका ने जैसे ही फेसबुक खोला, फिर वही महाशय जी का  फ्रेंड रिक्वेस्ट देखकर परेशान हो गयी। एक महीने से वो नजरअंदाज कर रही थी,

पर वो शख्स मानने को तैयार ही नही थे। आखिर उसने सोचा चलो, एक दिन के लिए उसकी बात मान लेती हूँ, क्या कहना चाहता है, फिर ब्लॉक कर दूंगी।

“तूलिका जी, मैं एक आर्टिस्ट हूँ, मेरा नाम स्वेतराज है। मुझपर विश्वास करिए, सिर्फ आपकी एक तस्वीर आपके सामने बैठकर बनाने की इच्छा है। उसके बाद आप चाहे तो मुझे ब्लॉक कर दीजिएगा।

“आपकी डीपी बहुत सुंदर है, नैना जैसे दो चंद्रमा धरती पर उतर के रोशनी फैला रहे। बुरा मत मानियेगा, मैं बिना कोई भूमिका के आपको अपने कैनवास पर उतारना चाहता हूं।”

उसको आज जवाब मिला, “तुम जो भी हो मिस्टर, कल बुद्धा पार्क में आकर मिलो और खामोशी से मेरा चित्र बना कर चलते बनो, उससे ज्यादा कुछ सोचने की जुर्रत भी नही करना।”

बुद्धा पार्क में दूसरे दिन दोनों मिले, स्वेतराज उसको देखकर विश्वास ही नहीं कर पाया कि ये वही फ़ोटो वाली ही तूलिका है। रंग सांवला है,

पर नयन नक्श उसकी उम्मीद पर पूरे खरे उतरे, जैसा सोचा था, वैसा ही पाया। चित्र बनाने की बात हुई थी,

काम समाप्त करके स्वेतराज धन्यवाद देकर चले गए। पर  दो जवां दिलो में फूल खिल चुके थे।

स्वेतराज अपनी बात रखने की खातिर फिर बात नहीं कर पा रहे थे। पर तूलिका भी मिलने के लिए परेशान थी, फिर एक दिन बहाने से उसने फोन किया,

“सुनो स्वेतराज, वो तस्वीर एक मुझे भी चाहिए, मिल सकती है क्या?”

“उसी जगह आओ जहाँ हम मिले थे।”

इसी तरह मिलते जुलते दोनों को खबर ही नही हुई कब दोनों बहुत आगे बढ़ गये थे। बड़ो की आज्ञा से दोनों की शादी हो गयी। दो प्रेमी विवाह के बन्धन में बंधे और एक वर्ष इश्क़ प्यार मोहब्बत में पंछी बन उड़ता रहा। 

एक दिन आफिस गयी तूलिका तो उसकी सहेली ने फ़ोन किया, “ये स्वेतराज रोज उसके मोहल्ले में एक आंटी के घर आते हैं कौन है वह?”

“मुझे नही पता, वह तो आफिस में बहुत व्यस्त रहते हैं, कोई और होगा। वह कहीं भी जाते हैं, तो मुझे बताते हैं।”

उसके बाद से ही तूलिका थोड़ा नजर रखने लगी, ये कहाँ जाते हैं।

जब पूछती तो स्वेतराज बात बदल देते।

रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है। अब तूलिका का विश्वास डगमगाने लगा था, लगता है इनके जीवन मे कोई और लड़की ने कदम रखा है।

अब उसने अपनी उसी सहेली से कहा, “अब अगर ये वहाँ दिखे, तो तुम जरा देखना ये कहाँ जाते हैं।”

दूसरे दिन ही तूलिका को फ़ोन मिला सहेली का, स्वेतराज आये थे और एक वयस्क महिला को बाइक में बैठाकर कहीं लेकर गए।

तूलिका का मूड ऑफ हो गया, किसी तरह आंसुओ को रोक कर घर पहुँची।  दो घंटे बाद स्वेतराज घर आये। तूलिका ने बिना कोई भूमिका बांधे पूछ लिया, “कौन है वह महिला, जिसके साथ आजकल घूम रहे हो।”

“क्या बोल रही हो, तुम्हे किसने बताया? तुम गलत समझ रही हो। शांत हो जाओ, सब बताता हूँ।”

पापा की जॉब इसी शहर में थी, अब गांव चले गए मम्मी के पास। पर यहां जॉब लगने पर सुचित्रा ऑन्टी के घर किराए पर रहते थे। कई वर्ष रहे और दोनों के बीच पति पत्नी के संबंध बन गए।

पर गांव में किसी को नही मालूम, सिर्फ मुझे ही पता है। उनके बहुत एहसान भी हैं हमपर। अभी दो महीने पहले मुझे बुलाया, हालत बहुत ख़राब थी,

बेहोश हो जाती थी। डॉक्टर को बताया तो फोर्थ स्टेज का कैंसर बताया। रोज उनको कीमोथेरेपी के लिए हॉस्पिटल ले जाता हूँ।

“हे भगवान, तो मुझे ये सब क्यों नही बताया?”

स्वेतराज ने कहा, “हिम्मत नही पड़ी।”

“कल सुबह हमदोनो जाकर उनको यहीं ले आएंगे।”

“तूलिका तुम बहुत अच्छी हो।”

और दूसरे दिन सुचित्रा को इज्जत से तूलिका घर ले आयी।

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बेंगलुरु

#रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है।

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