अब आगे ••••••••
बिना किसी बाधा और व्यवधान के विवाह सकुशल सम्पन्न हो गया तो महाराज देवकुमार और महारानी यशोधरा के मन में बैठे आशंकाओं के नाग शान्त हो गये। उन्हें विश्वास था कि राजकुमार को परमेश्वर मानकर पूजने वाली उनकी पुत्री कुलवधू की गरिमा पर कभी ऑच नहीं आने देगी।
भारतीय संस्कृति में तो स्त्रियों को प्राण देकर भी परम्पराओं के निर्वाहन की शिक्षा घुट्टी में ही पिला दी जाती है।
विवाह पश्चात महाराज अखिलेन्द्र ने जब बारात सहित संदलपुर प्रस्थान की अनुमति मांगी तो महाराज देव कुमार ने उन्हें कंठ से लगा लिया –
” मित्र मैंने अपनी सबसे अमूल्य वस्तु आपको सौंप दी है। इससे अधिक अमूल्य मेरे पास कुछ नहीं है।”
महाराज अखिलेन्द्र ने उनके कंधों पर हाथ रखकर बेहद आत्मीयता और भावुकता पूर्ण स्वर में कहा –
” आपकी अमूल्य वस्तु मेरे और मेरे पुत्र के लिये दुर्लभ है और हम दोनों के लिये सदैव जीवन और सांसों की तरह आवश्यक रहेगी। आज मेरा और महारानी अनुराधा का स्वप्न साकार हो गया है। महारानी के जाने के बाद प्रथम बार आपके कारण अब राजमहल और राज्य में प्रसन्नता का आगमन होगा। आपका चिर कृतज्ञ रहेगा सन्दलपुर।”
विदा के समय पुत्री के विछोह के ऑसुओं से भीगे कंठ से राजकुमारी को हृदय से लगाकर महारानी यशोधरा ने इतना ही कहा –
” क्षत्रिय ललनायें पति को स्वर्ग में भी एकाकी नहीं रहने देतीं, संग ही चितारोहण करके सती हो जाती हैं। इससे अधिक कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। अब राजकुमार मणिपुष्पक ही तुम्हारे सर्वस्व हैं, वही तुम्हारे लिये रामलला हैं।”
सघन वन प्रान्त में बारात ने विश्राम स्थल का चयन किया तो राजकुमारी ने महाराज अखिलेन्द्र से वन भ्रमण की अनुमति मांगी। आभूषणों की झंकार, अनेक नारी कंठों के कलरव और कोकिल कंठी युवतियों के हास – , परिहास मिश्रित हास्य की मधुर स्वर लहरी ने नीरव वनस्थली को गुंजायमान कर दिया।
श्वेत हंसों, रक्त कमलों, अनेक जलीय पक्षियों से युक्त जलाशय में जब राजकुमारी ने सखियों सहित जलक्रीड़ा प्रारम्भ की तो जैसे सौन्दर्य की परिभाषा मूर्तिमान हो उठी। मानो ऋतुराज बसंत अपने सहचरों के साथ स्वयं साकार रूप धरकर पधारे हों।
वन भ्रमण करते समय सबने देखा कि एक वृक्ष की छाया तले एकाकी बैठा कोई पुरुष चित्र फलक पर तूलिका से कुछ चित्रित कर रहा है –
” इस निर्जन वन में यह एकाकी व्यक्ति कौन है जो इस तरह बैठा है और क्या चित्रित कर रहा है ? ” राजकुमारी की एक सखी ने कहा।
” चलो, इसी व्यक्ति से पता करते हैं।”
उत्सुकता वश सभी उस वृक्ष की दिशा की ओर बढने लगीं। अभी वे सब वृक्ष के समीप पहुंच भी नहीं पाईं थीं कि अनेक नारी कंठों की कलरव ध्वनि से उस युवक का ध्यान भंग हुआ और उसने चित्र फलक से सिर उठाया तो राजकुमारी सहित सभी युवतियों की चीख निकल गई।
यह युवक और कोई नहीं बल्कि राजकुमार मणिपुष्पक थे जो हलचल एवं कोलाहल से ऊबकर अपनी तूलिका और चित्रफलक को लेकर यहॉ आ गये थे और नीरवता में बाह्य आवरणों को अपने तन से उतारकर स्वाभाविक रूप में बैठे थे। शायद उन्हें विश्वास ही नहीं था कि कोलाहल और प्रसन्नता पूर्ण वातावरण के दूर कोई इस नीरव स्थान पर भी आ सकता है।
सभी युवतियॉ राजकुमार के समीप आने के स्थान पर दूर ही ठिठक गईं। भयभीत सखियों को शान्त और आश्वस्त करके राजकुमारी मोहना राजकुमार से काफी दूर जाकर जहॉ से राजकुमार पर दृष्टि न पड़ सके सखियों सहित वृक्ष की छाया तले बैठ गई और अपनी प्रिय एवं अंतरंग सखी को राजकुमार के पास इस संदेश के साथ भेजा –
” मृदुला जाकर उसे पैशाची आकृति वाले पुरुष से पूछो कि वह कौन है तथा इस निर्जन में क्या कर रहा है? यथा शीघ यहाॅ से चला जाये क्योंकि शायद उसे ज्ञात नहीं कि इस समय यह वन प्रान्त संदलपुर के महाराज अखिलेश का विश्राम स्थल है।”
सखी जब वापस आई तो उसकी दशा देख कर राजकुमारी सहित सभी सखियां अवाक रह गई परंतु झरते अश्रु एवं अवरुद्ध वाणी द्वारा मृदुला ने जब यथार्थ से अवगत कराया तो उसकी अपूर्ण बात सुनकर ही राजकुमारी अचेत हो गई। राजवैद्य के अथक प्रयास के पश्चात जब उनकी मूर्छा टूटी तो वह सखी के अंक में गिरकर क्रंदन कर उठी –
” मुझे विष लाकर दे दो सखी, वही मेरे लिये अमृत का रूप होगा। ऐसे पिशाच के संग एक पल भी बिताने से मृत्यु श्रेयष्कर है। राजवैद्य से कहो कि मुझे औषधि नहीं विष की आवश्यकता है। मेरे साथ विश्वासघात किया गया है, पैशाची आकृति वाला यह व्यक्ति राजकुमार मणि पुष्पक नहीं हो सकता।
यदि यह व्यक्ति मेरा पति है तो मुझे एक पल का भी जीवन नहीं चाहिये । हर क्षण की मृत्यु से तो एक बार की मृत्यु अधिक लाभदायक है। मुझे इस व्यक्ति से बचा लो। ” इतना कहकर राजकुमारी पुनः अचेत हो गई।
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एक भूल …(भाग-12) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर